आलोक धन्वा
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आलोक धन्वा का जन्म 2 जुलाई 1948 ई० में मुंगेर (बिहार) में हुआ। वे हिंदी के उन बड़े कवियों में हैं, जिन्होंने 70 के दशक में कविता को एक नई पहचान दी। उनका पहला संग्रह है- दुनिया रोज बनती है। ’जनता का आदमी’, ’गोली दागो पोस्टर’, ’कपड़े के जूते’ और ’ब्रूनों की बेटियाँ’ हिन्दी की प्रसिद्ध कविताएँ हैं। अंग्रेज़ी और रूसी में कविताओं के अनुवाद हुए हैं। उन्हें पहल सम्मान, नागार्जुन सम्मान, फ़िराक गोरखपुरी सम्मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान, भवानी प्रसाद मिश्र स्मृति सम्मान मिले हैं। पटना निवासी आलोक धन्वा महात्मागांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में कार्यरत थे।
कविता संग्रह
दुनिया रोज बनती
कविताएँ
संपादित करें- आम का पेड़
- नदियाँ
- बकरियाँ
- पतंग
- कपड़े के जूते
- नींद
- शरीर
- एक ज़माने की कविता
- गोली दागो पोस्टर
- जनता का आदमी
- भूखा बच्चा
- शंख के बाहर
- भागी हुई लड़कियाँ
- जिलाधीश
- फ़र्क़
- छतों पर लड़कियाँ
- चौक
- पानी
- ब्रूनो की बेटियाँ
- मैटिनी शो
- पहली फ़िल्म की रोशनी
- क़ीमत
- आसमान जैसी हवाएँ
- रेल
- जंक्शन
- शरद की रातें
- रास्ते
- सूर्यास्त के आसमान
- विस्मय तरबूज़ की तरह
- थियेटर
- पक्षी और तारे
- रंगरेज़
- सात सौ साल पुराना छन्द
- समुद्र और चाँद
- पगडंडी
- मीर
- हसरत
- किसने बचाया मेरी आत्मा को
- कारवाँ
- अपनी बात
- सफ़ेद रात