आवर्तनशील कृषि, कृषि की एक पद्धति है जो बुन्देलखण्ड में प्रचलित है। इस पद्धति में एक बड़े जोत को इस प्रकार बाँटा जाता है कि उसमें सब्जियाँ व अनाज उगाने, पशुपालन, मछलीपालन तथा बागवानी आदि के लिये पर्याप्त स्थान मौजूद हो। कृषि की यह पद्धति सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांत पर आधारित है। इसके अनुसार, पृथ्वी पर उपस्थित सभी पशु-पक्षी, वृक्ष, कीड़े व अन्य सूक्ष्म जीवों के जीवन का एक निश्चित क्रम है। यदि मानव इनके क्रम को नुकसान न पहुँचाए तो ये कभी नष्ट नहीं होंगे। कृषि की इस पद्धति में इन सभी जीवों का समन्वय तथा सहयोग आवश्यक है जिससे कृषि को धारणीय, वहनीय एवं प्राकृतिक वातावरण के अनुकूल बनाया जा सके।

इसके अतिरिक्त इस पद्धति में एकल कृषि (Monoculture) के स्थान पर मिश्रित कृषि (Mixed Farming) तथा मिश्रित फसल (Mixed Cropping) पर बल दिया जाता है। कृषि की इस पद्धति में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर गोबर, सब्जियों के छिलके, बचा हुआ खाना व अन्य जैव अपशिष्ट पदार्थों के प्रयोग से बनी जैविक खाद, कंपोस्ट, वर्मीकंपोस्ट व नाडेप विधि से बनी खाद का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार की कृषि में सिंचाई के लिये जल का सीमित उपयोग तथा वर्षा के जल का संरक्षण किया जाता है। आवर्तनशील कृषि में इस बात पर विशेष बल दिया जाता है कि कृषि उत्पादों को सीधे बाज़ार में बेचने की बजाय लघु स्तर पर प्रसंस्करण (Processing) किया जाए। इससे न केवल इन उत्पादों का मूल्यवर्द्धन होगा बल्कि किसानों को उनके उत्पाद की उचित कीमत भी मिलेगी। इस पद्धति के अंतर्गत उत्पादित अनाज के एक हिस्से को संरक्षित किया जाता है ताकि अगली फसल की बुआई के लिये बाज़ार से बीज खरीदने की आवश्यकता न पड़े।[1]

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