इतिहास-लेख
इतिहास-लेख या इतिहास-शास्त्र (Historiography) से दो चीजों का बोध होता है- (१) इतिहास के विकास एवं क्रियापद्धति का अध्ययन तथा (२) किसी विषय के इतिहास से सम्बन्धित एकत्र सामग्री। इतिहासकार इतिहासशास्त्र का अध्ययन विषयवार करते हैं, जैसे- भारत का इतिहास, जापानी साम्राज्य का इतिहास आदि। इतिहास लेखन निरन्तर चलने वाली एक प्रक्रिया है। प्राचीन काल से से लेकर आधुनिक कल तक समय के साथ इतिहास लेखन की अवधारणा सतत और परिवर्तनशील रही है । विभिन्न कालों में इतिहास को लेकर अवधारणाएं अलग अलग रही जहाँ एक और इतिहास लेखन में वस्तुनिष्ठता और तथ्यपरकता पर जोड़ दिया गया वहीं कुछ इतिहासकारों ने इसे नाटकीय ,वर्णनात्मक और मानवीय पहलुओं पर बल दिया । मानव समाज के क्रिया-कलापों का क्रमबद्ध विवरण हमें 500 ई. पूर्व से ही प्राप्त हो सका है। सबसे पहले इतिहास लेखन का क्रमबद्ध विवरण यूनानी विद्वान हेरोडोट्स के द्वारा किया गया था। उसने 500 ई.पू. से लेखन कार्य शुरू किया था। इस प्रकार हेरोडोट्स को ही प्रथम ऐतिहासिक लेखक के रूप में जाना जाता हैं। हेरोडोट्स के बाद यूनान में लेखक थ्यूसीडाइड्स का नाम

विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वही 19वीं शताब्दी में 'रैन्क' नामक शख्स ने इतिहास को वैज्ञानिक आधार पर लिखकर अपनी रचना को जर्मनी में प्रकाशित करवाया था। फिर दुनिया के अन्य देशों विशेषकर भारत, फ्रांस, , इटली,अरब आदि में इतिहास लेखन चालू हुआ, वर्तमान में ऑगस्ट कामप्टे का प्रत्यक्षवाद इतिहास लेखन प्रचलन में हैं, क्योंकि इसमें वैज्ञानिक आधार पर इतिहास लेखन किया जाता हैं।
परिचय
संपादित करेंइतिहास के मुख्य आधार युगविशेष और घटनास्थल के वे अवशेष हैं जो किसी न किसी रूप में प्राप्त होते हैं। जीवन की बहुमुखी व्यापकता के कारण स्वल्प सामग्री के सहारे विगत युग अथवा समाज का चित्रनिर्माण करना दु:साध्य है। सामग्री जितनी ही अधिक होती जाती है उसी अनुपात से बीते युग तथा समाज की रूपरेखा प्रस्तुत करना साध्य होता जाता है। पर्याप्त साधनों के होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि कल्पनामिश्रित चित्र निश्चित रूप से शुद्ध या सत्य ही होगा। इसलिए उपयुक्त कमी का ध्यान रखकर कुछ विद्वान् कहते हैं कि इतिहास की संपूर्णता असाध्य सी है, फिर भी यदि हमारा अनुभव और ज्ञान प्रचुर हो, ऐतिहासिक सामग्री की जाँच-पड़ताल को हमारी कला तर्कप्रतिष्ठत हो तथा कल्पना संयत और विकसित हो तो अतीत का हमारा चित्र अधिक मानवीय और प्रामाणिक हो सकता है। सारांश यह है कि इतिहास की रचना में पर्याप्त सामग्री, वैज्ञानिक ढंग से उसकी जाँच, उससे प्राप्त ज्ञान का महत्त्व समझने के विवेक के साथ ही साथ ऐतिहासक कल्पना की शक्ति तथा सजीव चित्रण की क्षमता की आवश्यकता है। स्मरण रखना चाहिए कि इतिहास न तो साधारण परिभाषा के अनुसार विज्ञान है और न केवल काल्पनिक दर्शन अथवा साहित्यिक रचना है। इन सबके यथोचित संमिश्रण से इतिहास का स्वरूप रचा जाता है।
इतिहास न्यूनाधिक उसी प्रकार का सत्य है जैसा विज्ञान और दर्शनों का होता है। जिस प्रकार विज्ञान और दर्शनों में हेरफेर होते हैं उसी प्रकार इतिहास के चित्रण में भी होते रहते हैं। मनुष्य के बढ़ते हुए ज्ञान और साधनों की सहायता से इतिहास के चित्रों का संस्कार, उनकी पुरावृत्ति और संस्कृति होती रहती है। प्रत्येक युग अपने-अपने प्रश्न उठाता है और इतिहास से उनका समाधान ढूंढ़ता रहता है। इसीलिए प्रत्येक युग, समाज अथवा व्यक्ति इतिहास का दर्शन अपने प्रश्नों के दृष्टिबिंदुओं से करता रहता है। यह सब होते हुए भी साधनों का वैज्ञानिक अन्वेषण तथा निरीक्षण, कालक्रम का विचार, परिस्थिति की आवश्यकताओं तथा घटनाओं के प्रवाह की बारीकी से छानबीन और उनसे परिणाम निकालने में सर्तकता और संयम की अनिवार्यता अत्यंत आवश्यक है। उनके बिना ऐतिहासिक कल्पना और कपोलकल्पना में कोई भेद नहीं रहेगा।
इतिहास की रचना में यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि उससे जो चित्र बनाया जाए वह निश्चित घटनाओं और परिस्थितियों पर दृढ़ता से आधारित हो। मानसिक, काल्पनिक अथवा मनमाने स्वरूप को खड़ा कर ऐतिहासिक घटनाओं द्वारा उसके समर्थन का प्रयत्न करना अक्षम्य दोष होने के कारण सर्वथा वर्जित है। यह भी स्मरण रखना आवश्यक है कि इतिहास का निर्माण बौद्धिक रचनात्मक कार्य है अतएव अस्वाभाविक और असंभाव्य को प्रमाणकोटि में स्थान नहीं दिया जा सकता। इसके सिवा इतिहास का ध्येयविशेष यथावत् ज्ञान प्राप्त करना है। किसी विशेष सिद्धांत या मत की प्रतिष्ठा, प्रचार या निराकरण अथवा उसे किसी प्रकार का आंदोलन चलाने का साधन बनाना इतिहास का दुरुपयोग करना है। ऐसा करने से इतिहास का महत्त्व ही नहीं नष्ट हो जाता, वरन् उपकार के बदले उससे अपकार होने लगता है जिसका परिणाम अंततोगत्वा भयावह होता है।
इतिहास लेखन प्रमुख शैलियाँ
संपादित करेंइतिहास लेखन की कुछ शैलियाँ निम्नलिखित है -
१) यूनानी - रोमन इतिहास लेखन शैली
२) चीनी इतिहास लेखन शैली
३) प्राचीन भारतीय इतिहास लेखन शैली
४) अरब इतिहास लेखन शैली
५) पश्चिमी इतिहास लेखन शैली
यूनानी - रोमन इतिहास लेखन शैली
संपादित करेंइतिहास लेखन की परंपरा का प्रारंभ प्राचीन यूनान में हुआ, जहाँ इसे एक विधिवत अध्ययन के रूप में विकसित किया गया। यूनानी इतिहासकारों ने इतिहास को केवल घटनाओं का संकलन मानने के बजाय, तर्क और विश्लेषण के आधार पर घटनाओं की व्याख्या करने का प्रयास किया।
हिकेटियस (Hecataeus) (550-476 ई.पू.)
संपादित करेंयूनान का प्रथम तर्कसंगत इतिहासकार माना जाता है। प्रमुख रचनाएँ: Travels Around the World : इस ग्रंथ में उन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन किया।
-Book of Local Genealogies : इसमें उन्होंने स्थानीय वंशावलियों का विश्लेषण प्रस्तुत किया।
-हेकाटेयस ने मिथकों की आलोचना की और ऐतिहासिक घटनाओं को तर्कसंगत रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया।
-उद्धरण: "I write what I deem true, for the stories of the Greeks are manifold and seem to me ridiculous."
खेमेन्द्र सिंह भी [1] हेकेटेयस को प्रथम यथार्थवादी इतिहास यूनानी लेखक मानते हैं , क्योंकि उन्होंने मिथकों और काल्पनिक कथाओं से परे जाकर तर्कसंगत और प्रमाणिक ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास किया।
हेरोडोटस (Herodotus)
संपादित करेंजन्म: एशिया माइनर के हेलिकारनेसस (Halicarnassus) में। हेरोडोटस को 'इतिहास का पिता' (Father of History) कहा जाता है। (संदर्भ: Cicero, De Legibus) इतिहास लेखन की विशेषता: ऐतिहासिक घटनाओं के पीछे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भौगोलिक कारणों को समझाने का प्रयास किया। विभिन्न सभ्यताओं की परंपराओं, युद्धों एवं शासकों के कार्यों का विस्तृत वर्णन किया।
प्रमुख योगदान:
उनकी प्रमुख रचना Histories (Ἱστορίαι) थी, जिसमें ग्रीक-फारसी युद्धों (Persian Wars) का विस्तृत विवरण मिलता है।
478 ई.पू. में उन्होंने फारसी राजा ज़र्क्सेस (Xerxes) के आक्रमण का विवरण प्रस्तुत किया।
उन्होंने विभिन्न सभ्यताओं की तुलना करते हुए सांस्कृतिक अंतरों को उजागर किया।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- भारतीय इतिहास के स्रोत - civilservicesstrategist.com पर (हिन्दी में)।
- मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत - www.vivacepanorama.com पर (हिन्दी में)।
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- ↑ Singh, Khemendra (2022). Colonial Mindset :Hampering India's Development. India: Notion Press. ISBN 9798885910828. OCLC 1302579465.