इरोम चानू शर्मिला
इरोम चानू शर्मिला(जन्म:14 मार्च 1972) मणिपुर की मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, जो पूर्वोत्तर राज्यों में लागू सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम, १९५८ को हटाने के लिए लगभग १६ वर्षों तक (4 नवम्बर 2000[1] से 9 अगस्त 2016 [2]) भूख हड़ताल पर रहीं।
इरोम चानू शर्मिला | |
---|---|
इरोम चानू शर्मिला | |
जन्म |
14 मार्च 1972 कोंगपाल, इम्फाल, मणिपुर, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
पेशा | मानवाधिकार कार्यकर्ता, कवयित्री |
प्रसिद्धि का कारण | सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम, १९५८ को हटाने के लिए भूख हड़ताल |
माता-पिता |
इरोम नंदा (पिता) इरोम ओंग्बी सखी (माता) |
पृष्ठभूमि
संपादित करेंइरोम ने अपनी भूख हड़ताल तब की थी जब 2 नवम्बर के दिन मणिपुर की राजधानी इंफाल के मालोम में असम राइफल्स के जवानों के हाथों 10 बेगुनाह लोग मारे गए थे। उन्होंने 4 नवम्बर 2000 को अपना अनशन शुरू किया था, इस उम्मीद के साथ कि 1958 से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, असम, नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा में और 1990 से जम्मू-कश्मीर में लागू आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (एएफएसपीए) को हटवाने में वह महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चल कर कामयाब होंगी।[1]
पूर्वोत्तर राज्यों के विभिन्न हिस्सों में लागू इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को किसी को भी देखते ही गोली मारने या बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार है। शर्मिला इसके खिलाफ इम्फाल के जस्ट पीस फाउंडेशन नामक गैर सरकारी संगठन से जुड़कर भूख हड़ताल करती रहीं। सरकार ने शर्मिला को आत्महत्या के प्रयास में गिरफ्तार कर लिया था। क्योंकि यह गिरफ्तारी एक साल से अधिक नहीं हो सकती अतः हर साल उन्हें रिहा करते ही दोबारा गिरफ्तार कर लिया जाता था।[3] नाक से लगी एक नली के जरिए उन्हें खाना दिया जाता था तथा इस के लिए पोरोपट के सरकारी अस्पताल के एक कमरे को अस्थायी जेल बना दिया गया था।[4]
आम आदमी पार्टी द्वारा राजनीति में आने का निमंत्रण
संपादित करेंजस्ट पीस फाउंडेशन ट्रस्ट (जेपीएफ) के जरिए शर्मिला को आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण ने मणिपुर की लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी (आप) के टिकट पर २०१४ के लोकसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया किंतु उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।[5]
अनशन का अंत
संपादित करेंजुलाई २०१६ में उन्होंने अचानक घोषणा की कि वे शीघ्र ही अपना अनशन समाप्त कर देंगी। उन्होंने अपने इस निर्णय का कारण आम जनता की उनके संघर्ष के प्रति बेरुखी को बताया।[6] ९ अगस्त २०१६ को लगभग १६ साल के पश्चात् उन्होंने अपना अनशन तोड़ा तथा राजनीति में आने की घोषणा की।[2] उन्होंने कहा कि वे मणिपुर की मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं।[2]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ "इस बहादुर बेटी पर देश कब ध्यान देगा?". नवभारत टाईम्स. 8 मार्च 2013. मूल से 16 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 फ़रवरी 2014.
- ↑ अ आ इ "अनशन तोड़ते वक्त आंसू नहीं रोक पाईं इरोम शर्मिला, बोलीं- मैं मणिपुर की मुख्यमंत्री बनना चाहती हूं". एनडीटीवी खबर. अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2016.[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 31 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अगस्त 2011.
- ↑ "आखिरकार इरोम शर्मिला को रिहा किया गया". नवभारत टाईम्स. 21 अगस्त 2014. मूल से 21 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अगस्त 2014.
- ↑ "इरोम शर्मिला ने ठुकराई 'आप' की पेशकश". नवभारत टाईम्स. 15 फ़रवरी 2014. मूल से 24 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 फ़रवरी 2014.
- ↑ "तो इस वजह से मजबूर होकर इरोम शर्मिला ने किया 16 साल से जारी अनशन खत्म करने का ऐलान". एनडीटीवी खबर. मूल से 1 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2016.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंयह जीवनचरित लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |