पर्यावरण निगरानी के लिए सीएसआईआर-नीरी और सी-डैक ने इलेक्ट्रॉनिक नाक विकसित की है।

नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) और प्रगत संगणन विकास केंद्र (सी-डैक) ने संयुक्त रूप से एक इलेक्ट्रॉनिक नाक (ई-नाक) को विकसित किया है। इसकी घोषणा 8 जुलाई 2015 को सीएसआईआर-नीरी और सी-डैक द्वारा की गई। ई-नाक प्रौद्योगिकी के माध्यम से नुकसानदेह गैसों को सूंघ कर पर्यावरण पर नज़र रखने में मदद मिलेगी।

ई-नाक की मुख्य विशेषताएं

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  • यह एक पोर्टेबल यंत्र है जिसके मध्यम से गंध संकेन्द्रण और गंध की तीव्रता को मापा जा सकता है।
  • इस नाक में कई तरह के सेंसरों का इस्तेमाल किया है जो मनाव द्वारा गंध सूंघने और उसकी पहचान करने के सिद्धांत पर आधारित है।
  • यह भारत की पहली तकनीक है जिसमें ऐसे सॉफ्टवेर का प्रयोग किया गया है जिसमें गंध को समझने की क्षमता है।

ई-नाक की उपयोगिता

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  • ई-नाक की मदद से लुगदी और कागज उद्योगों में उत्पन्न हो रहे वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों और अन्य विशैली गैसों को पहचानना संभव है जिससे इस उद्योग में लगे हजारों श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है।
  • लुगदी और कागज उद्योग में हाइड्रोजन सल्फाइड, मिथाइल मरकेप्टन, डाइमिथाइल सल्फाइड, और डाइमिथाइल डाइसल्फाइड जैसी गैसों का उत्सर्जन होता है जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
  • उद्योगों द्वारा इन विशैली गैसों के स्तर की निगरानी रखने के लिए प्रयोग किए जाने वाले महंगे उपकरणों की तुलना में यह सस्ता है।
  • यह कर्नाटक में भदारावती की मैसूर पेपर मिल लिमटेड और तमिलनाडु पेपर मिल में सफलतापूर्वक स्थापित की जा चुकी है।
  • वैज्ञानिक इस ई नाक के अन्य अनुप्रयोगों पर कार्य कर रहे हैं।