इल्वल

इल्वल और वातपी वे थे राक्षस थे बादामी द्वार शासित

इल्वल नाम क एक दैत्य था। इसका नाम 'आतापि' भी था। अपने छोटे भाई वातापि के साथ यह मणिमती नगरी में रहता था।वह महर्षि शुक्राचार्य के शिष्य था और मृत संजीवनी विद्या के ज्ञाता था.

वैशम्पायन द्वारा वर्णित कथा संपादित करें

ऋषि वैशम्पायन द्वारा वर्णित एक कथा प्रचलित है जो इल्वल से सम्बन्धित है.एक बार इल्वल ने इंद्र के समान प्रतापी पुत्र की प्राप्ति के लिए एक ब्राह्माण (ऋषि) से प्रार्थना की। ब्राह्मण ने इसकी प्रार्थना को अमान्य कर दिया। तभी से यह ब्राह्मणद्रोही हो गया। किसी भी ब्राह्मण के आने पर यह फल बने हुए अपने भाई वातापि को को प्रस्तुत करता और ब्राह्मण को खिला देता था। खा पीकर ब्राह्मण जाने लगता तो यह वातापि को पुकारता था। वातापि उक्त ब्राह्मण का पेट फाड़कर सशरीर बाहर निकल आता था। ब्राह्मण मर जाता था। इस प्रकार सहस्रों ब्राह्मणों को इसने मार डाला। एक बार द्रव्य की आवश्यकता पड़ने पर अगस्त्य इसके यहाँ आए। इसने पूर्ववत् की तरह शुुदध शााकाहारी भोजन पकाकर उन्हें खिलाया। वे वातापि को पचा गए। पुकारने पर वातापि जब ऋषि अगस्त्य के पेट को फाड़कर बाहर न निकला तो वास्तविकता जानने पर (महाभारत, वनवर्ष ९४ के अनुसार) इल्वल ने अगस्त्य से प्राणदान की प्रार्थना की। ऋषि ने इसे अभय दिया और इससे अभीष्ट द्रव्य लेकर चले गए। पंरतु वाल्मीकि रामायण (अरण्यकांड ११-६८) में वार्णित कथा के अनुसार अगस्त्य ने इल्वल को अपनी दृष्टि से भस्म कर दिया।