ईति, खेती को हानि पहुँचानेवाले उपद्रव। इन्हें छह प्रकार का बताया गया है :

अतिवृष्टिरनावृष्टि: शलभा मूषका: शुका:।
प्रत्यासन्नाश्च राजान: षडेता ईतय: स्मृता:।।
(अर्थात् अतिवृष्टि, अनावृष्टि, टिड्डी पड़ना, चूहे लगना, पक्षियों की अधिकता तथा दूसरे राजा की चढ़ाई।)

भारतीय विश्वास के अनुसार अच्छे राजा के राज्य में ईति भय नहीं सताता। तुलसीदास ने इसका उल्लेख किया है:

दसरथ राज न ईति भय नहिं दुःख दुरित दुकाल।
प्रमुदित प्रजा प्रसन्न सब सब सुख सदा सुकाल।।

सूरदास ने कुराज में ईतिभय की संभावना दिखाई है :

अब राधे नाहिनै ब्रजनीति।
सखि बिनु मिलै तो ना बनि ऐहै कठिन कुराजराज की ईति।