उच्चैःश्रवा

पौराणिक पशू

उच्चैःश्रवा हिन्दू ग्रंथों में वर्णित समुद्र मन्थन के दौरान निकले चौदह रत्नों में से एक था।[1] पौराणिक आख्यानों के अनुसार यह सफ़ेद रंग का और सात मुख वाला घोड़ा था जो देवताओं (इन्द्र) को प्राप्त हुआ।

उच्चैःश्रवा का चित्रात्मक निरूपण
उच्चैःश्रवा तथा समुद्र मन्थन निकले कुछ अन्य रत्न

गीता में कृष्ण ने श्रेष्ठतम वस्तुओं से अपनी तुलना के क्रम में अपने को अश्वों में उच्चैःश्रवा बताया है।[2][3] कुमारसंभवम् में कालिदास, इसे इन्द्र से तारकासुर द्वारा छीन लिये जाने का वर्णन करते हैं।[4]

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. शर्मा, महेश (२०१३). हिन्दू धर्म विश्वकोश. प्रभात प्रकाशन. पृ॰ ५२. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 अगस्त 2015.
  2. "उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम्" - श्रीमद्भगवद्गीता १०.२७।।
  3. "श्रीमद्भगवद्गीता।। १०.२७।।". मूल से 24 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 अगस्त 2015.
  4. देवधर, सी॰ आर॰, संपा॰ (1997). "2.47". Kumāra-Sambhava of Kālidāsa [कालिदास कृत कुमारसम्भवम्]. मोतीलाल बनारसीदास. पृ॰ 25.