उत्तराध्ययन सूत्र जैन धर्म के श्वेताम्बर पन्थ का धर्मग्रन्थ है। कहते हैं कि महावीर स्वामी के निर्वाण के कुछ समय पहले दिए गये उपदेश इसमें संग्रहित हैं।

इस शास्त्र को जैन जगत में भगवान महावीर की अन्तिम वाणी माना जाता है जिसका मौलिक आधार यह है कि इन अध्ययनों का प्राचीन नाम 'महावीर भासियाइ' था। उसी के साथ अतिम देशना श्रद्धा से जुड़ जाने से भगवान की अन्तिम वाणी मोक्ष जाते समय उपदिष्ट अध्ययन कहलाये जाने लगे।

उत्तराध्ययनसूत्र में ३६ अध्याय हैं, जिनके नाम क्रमशः ये हैं-

  1. विनयश्रुत
  2. परिषह प्रविभक्ति
  3. चतुरंगीय अध्ययन
  4. असंस्कृत अध्ययन
  5. अकाम मरणीय अध्ययन
  6. क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय अध्ययन
  7. उरभ्रीय अध्ययन
  8. कापिलीय अध्ययन
  9. नमि प्रव्रज्या अध्ययन
  10. द्रुम पत्रक अध्ययन
  11. बहुश्रुत पूजा अध्ययन
  12. हरिकेशीय अध्ययन
  13. चित्र संभूतीय अध्ययन
  14. इषुकारीय अध्ययन
  15. सभिक्षु अध्ययन
  16. ब्रह्मचर्य समाधि स्थान अध्ययन
  17. पाप श्रमणीय अध्ययन
  18. संयतीय अध्ययन
  19. मृगापुत्रीय अध्ययन
  20. महानिर्ग्रंथीय अध्ययन
  21. समुद्र पालीय अध्ययन
  22. रथनेमीय अध्ययन
  23. केशी गौतमीय अध्ययन
  24. प्रवचनमाता अध्ययन
  25. यज्ञीय अध्ययन
  26. सामाचारी अध्ययन
  27. खलुंकीय अध्ययन
  28. मोक्ष मार्ग गति अध्ययन
  29. सम्यक्त्व पराक्रम अध्ययन
  30. तपो मार्ग गति अध्ययन
  31. चरण विधि अध्ययन
  32. प्रमाद स्थान अध्ययन
  33. कर्म प्रकृति अध्ययन
  34. लेश्या अध्ययन
  35. अणगार मार्ग गति अध्ययन
  36. जीवाजीव विभाग अध्ययन

बाहरी कड़ियाँ

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