उत्पादन फलन (अंग्रेज़ी: Production function) अर्थशास्त्र में उपादानों (Inputs) एवं उत्पादनों (Outputs) के फलनात्मक सम्बन्ध (Functional Relationship) को दर्शाता है। उत्पादन फलन के द्वारा हमें यह पता चलता है कि समय की एक निश्चित अवधि में दिए गए उपादानों का प्रयोग करके हम कितना उत्पादन कर सकते हैं। उत्पादन फलन मुख्यधारा के नवशास्त्रीय सिद्धांतों की प्रमुख अवधारणाओं में से एक है, जिसका उपयोग सीमांत उत्पाद को परिभाषित करने और आवंटन दक्षता को अलग करने के लिए किया जाता है। यह अर्थशास्त्र के प्रमुख केंद्रों में से एक है।

कुल, औसत और सीमांत उत्पाद का ग्राफ

कई उत्पादन और कई उपादान के मामले के प्रतिरूपण के लिए अक्सर तथाकथित शेफर्ड के दूरी फलन या वैकल्पिक रूप से दिशात्मक दूरी फलन का उपयोग करते हैं, जो अर्थशास्त्र में सरल उत्पादन फलन के सामान्यीकरण हैं।[1]

मैक्रोइकॉनामिक्स में, कुल उत्पादन कार्यों का अनुमान एक रूपरेखा तैयार करने के लिए लगाया जाता है जिसमें कारक आवंटन (जैसे भौतिक पूंजी का संचय) में बदलाव के लिए कितना आर्थिक विकास होता है और प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के लिए कितना श्रेय दिया जाता है। हालांकि कुछ गैर-मुख्यधारा के अर्थशास्त्री उत्पादन फलन की कुल अवधारणा को अस्वीकार करते हैं।[2][3]

द्विघात उत्पादन फलन

उत्पादन फलन को हम गणितीय फलन के रूप में इस प्रकार दर्शाते हैं :

यहां पर उत्पादन की मात्रा है और उपादान कारकों की मात्रा हैं (जैसे पूंजी, श्रम, भूमि या कच्चा माल). यदि हुआ तो होगा क्योंकि बिना आगत के हम कुछ भी उत्पादन नहीं कर सकते।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. आर. सिकल, और वी. ज़ेलेन्युक, (2019)। उत्पादकता और दक्षता का मापन : सिद्धांत और व्यवहार। कैम्ब्रिज: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस। doi:10.1017/9781139565981
  2. एच. डैली (1997). "जॉर्जेसकू-रोगेन बनाम सोलो/स्टिग्लिट्ज़ पर फोरम". पारिस्थितिक अर्थशास्त्र. 22 (3): 261–306. डीओआइ:10.1016/S0921-8009(97)00080-3.
  3. कोहेन, ए. जे.; हरकोर्ट, जी. सी. (2003). "पुनरावलोकन : कैम्ब्रिज कैपिटल थ्योरी विवादों का जो कुछ भी हुआ?". जर्नल ऑफ इकोनॉमिक पर्सपेक्टिव्स. 17 (1): 199–214. डीओआइ:10.1257/089533003321165010.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें