उद्यमिता

एक नया व्यवसाय डिजाइन करने, लॉन्च करने और चलाने की प्रक्रिया

उद्यमिता (entrepreneurship) नये संगठन आरम्भ करने की भावना को कहते हैं। किसी वर्तमान या भावी अवसर का पूर्वदर्शन करके मुख्यतः कोई व्यावसायिक संगठन प्रारम्भ करना उद्यमिता का मुख्य पहलू है। उद्यमिता में एक तरफ भरपूर लाभ कमाने की सम्भावना होती है तो दूसरी तरफ जोखिम,अनिश्चितता और अन्य खतरे की भी प्रबल संभावना होता है। उद्यम की सफलता के लिए भविष्य के जोखिम आंकलन कर उनसे निपटने के लिए तैयारी रखना आवश्यक है।

एमिल जेलिनेक मर्सीडीज (1853–1918) यूरोप के उद्यमी थे जिन्होने आधुनिक कार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इस चित्र में अपनी गाड़ी के स्टीयरिंग-चक्र को थामे हुए

जीवित रहने के लिए पैसा कमाना आवश्यक होता है। अध्यापक स्कूल में पढ़ाता है, श्रमिक कारखाने में काम करता है, डॉक्टर अस्पताल में कार्य करता है, क्लर्क बैंक में नौकरी करता है, मैनेजर किसी व्यावसायिक उपक्रम में कार्य करता है - ये सभी जीविका कमाने के लिए कार्य करते हैं। ये उन लोगों के उदाहरण हैं, जो कर्मचारी हैं तथा वेतन अथवा मजदूरी से आय प्राप्त करते हैं। यह मजदूरी द्वारा रोजगार कहलता है। दूसरी ओर एक दुकानदार, एक कारखाने का मालिक, एक व्यापारी, एक डॉक्टर, जिसका अपना दवाखाना हो इत्यादि अपने व्यवसाय से जीविका उपार्जित करते हैं। ये उदाहरण हैं स्वरोजगार करने वालों के। फिर भी, कुछ ऐसे भी स्वरोजगारी लोग हैं, जो न केवल अपने लिए कार्य का सृजन करते हैं बल्कि अन्य बहुत से व्यक्तियों के लिए कार्य की व्यवस्था करते हैं। ऐसे व्यक्तियों के उदाहरण हैं : टाटा, बिरला आदि जो प्रवर्तक तथा कार्य की व्यवस्था करने वाले तथा उत्पादक दोनों हैं। इन व्यक्तियों को उद्यमी कहा जा सकता है।

उद्यमिता का अर्थ

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उद्यम करना एक उद्यमी का काम है जिसकी परिभाषा इस प्रकार है

‘‘एक ऐसा व्यक्ति जो नवीन खोज करता है, बिक्री और व्यवसाय चतुरता के प्रयास से नवीन खोज को आर्थिक माल में बदलता है। जिसका परिणाम एक नया संगठन या एक परिपक्व संगठन का ज्ञात सुअवसर और अनुभव के आधार पर पुनः निर्माण करना है। उद्यम की सबसे अधिक स्पष्ट स्थिति एक नए व्यवसाय की शुरुआत करना है। सक्षमता, इच्छाशक्ति से कार्य करने का विचार संगठन प्रबंध की साहसिक उत्पादक कार्यों व सभी जोखिमों को उठाना तथा लाभ को प्रतिपफल के रूप में प्राप्त करना है।’’

उद्यमी मौलिक (सृजनात्मक) चिन्तक होता है। वह एक नव प्रवर्तक है जो पूंजी लगाता है और जोखिम उठाने के लिए आगे आता है। इस प्रक्रिया में वह रोजगार का सृजन करता है। समस्याओं को सुलझाता है गुणवत्ता में वृद्धि करता है तथा श्रेष्ठता की ओर दृष्टि रखता है।

अपितु हम कह सकते हैं उद्यमीता वह है जिसमें निरंतर विश्वास तथा श्रेष्ठता के विषय में सोचने की शक्ति एवं गुण होते हैं तथा वह उनको व्यवहार में लाता है। किसी विचार, उद्देश्य, उत्पाद अथवा सेवा का आविष्कार करने और उसे सामाजिक लाभ के लिए प्रयोग में लाने से ही यह होता है। एक उद्यमी बनने के लिए आपके पास कुछ गुण होने चाहिए। लेकिन, उद्यम शब्द का अर्थ कैरियर बनाने वाला उद्देश्य पूर्ण कार्य भी है, जिसको सीखा जा सकता है। उद्यमशीलता नये विचारों को पहचानने, विकसित करने एवं उन्हें वास्तविक स्वरूप प्रदान करने की क्रिया है। ध्यान रहे देश के आर्थिक विकास के अर्थ में उद्यमशीलता केवल बड़े व्यवसायों तक ही सीमित नहीं हैं। इसमें लघु उद्यमों को सम्मलित करना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। वास्तव में बहुत से विकसित तथा विकासशील देशों का आर्थिक विकास तथा समृद्धि एवं सम्पन्नता लघु उद्यमों के आविर्भाव का परिणाम है।

उद्यमी होने का महत्त्व

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उद्यमशीलता और उद्यम की भूमिका का आर्थिक व सामाजिक विकास में अक्सर गलत अनुमान लगाया जाता है। सालों से यह स्पष्ट हो चुका है कि उद्यमशीलता लगातार आर्थिक विकास में सहायता प्रदान करती है। एक सोच को आर्थिक रूप में बदलना उद्यमशीलता के अंतर्गत सबसे महत्वपूर्ण विचारशील बिन्दु हैं। इतिहास साक्षी है कि आर्थिक उन्नति उन लोगों के द्वारा सम्भव व विकसित हो पाई है जो उद्यमी हैं व नई पद्धति को अपनाने वाले हैं, जो सुअवसर का लाभ उठाने वाला तथा जोखिम उठाने के लिए तैयार है। जो जोखिम उठाने वाले होते हैं तथा ऐसे सुअवसर का पीछा करते हैं जो कि दूसरों के द्वारा मुश्किल या भय के कारण न पहचाना गया हो। उद्यमशीलता की चाहे जो भी परिभाषा हो यह काफी हद तक बदलाव, सृजनात्मक, निपुणता, परिवर्तन और लोचशील तथ्यों से जुड़ी हैं जो कि संसार में बढ़ती हुई एक नई अर्थव्यवस्था के लिए प्रतियोगिता के मुख्य स्रोत हैं।

यद्यपि उद्यमशीलता का लगाने का अर्थ है व्यवसाय की प्रतियोगिता को बढ़ावा देना। उद्यमशीलता का महत्त्व निम्न बिन्दुओं से समझा जा सकता है :

  • लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना : अक्सर लोगों का यह मत है कि जिन्हें कहीं रोजगार नहीं मिलता वे उद्यमशीलता की ओर जाते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि आजकल अधिकतर व्यवसाय उन्हीं के द्वारा स्थापित किए जाते हैं, जिनके पास दूसरे विकल्प भी उपलब्ध हैं।
  • अनुसंधन और विकास प्रणाली में योगदान : लगभग दो तिहाई नवीन खोज उद्यमी के कारण होती है। अविष्कारों का तेजी से विकास न हुआ होता तो संसार रहने के लिए शुष्क स्थान के समान होता। अविष्कार बेहतर तकनीक के द्वारा कार्य करने का आसान तरीका प्रदान करते हैं।
  • राष्ट्र व व्यक्ति विशेष के लिए धन-सम्पत्ति का निर्माण करना : सभी व्यक्ति जो कि व्यवसाय के सुअवसर की तलाश में है, उद्यमशीलता में प्रवेश करके संपत्ति का निर्माण करते हैं। उनके द्वारा निर्मित संपत्ति राष्ट्र के निर्माण में अहम भूमिका अदा करती है। एक उद्यमी वस्तुएं और सेवाएं प्रदान करके अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देता है। उनके विचार, कल्पना और अविष्कार राष्ट्र के लिए एक बड़ी सहायता है।

सफल उद्यमी के गुण

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राजनैतिक परिवेश तथा उद्यमिता का सम्बन्ध
वर्ष 2008 में राजनीतिक शासन-व्यवस्था के आधार पर नए व्यवसाय सृजन की संख्या (प्रति १० हजार लोगों में)
लाल : सत्तावादी शासन ( authoritarian regime)
पीला : मिश्रित शासन-व्यवस्था
नीला : अर्द्ध लोकतंत्र
गहरा नीला : लोकतंत्र

उद्यम को सफलतापूर्वक चलाने के लिए बहुत से गुणों की आवश्यकता पड़ सकती है। फिर भी निम्नलिखित गुण महत्वपूर्ण माने जाते हैं :

  • पहल : व्यवसाय की दुनिया में अवसर आते जाते रहते हैं। एक उद्यमी कार्य करने वाला व्यक्ति होना चाहिए। उसे आगे बढ़ाकर काम शुरू कर अवसर का लाभ उठाना चाहिए। एक बार अवसर खो देने पर दुबारा नहीं आता। अतः उद्यमी के लिए पहल करना आवश्यक है।
  • जोखिम उठाने की इच्छाशक्ति : प्रत्येक व्यवसाय में जोखिम रहता है। इसका अर्थ यह है कि व्यवसायी सफल भी हो सकता है और असफल भी। दूसरे शब्दों में यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक व्यवसाय में लाभ ही हो। यह तत्त्व व्यक्ति को व्यवसाय करने से रोकता है। तथापि, एक उद्यमी को सदैव जोखिम उठाने के लिए आगे बढ़ना चाहिए और व्यवसाय चला
  • अनुभव से सीखने की योग्यता : एक उद्यमी गलती कर सकता है, किन्तु एक बार गलती हो जाने पर फिर वह दोहराई न जाय। क्योंकि ऐसा होने पर भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। अतः अपनी गलतियों से सबक लेना चाहिए। एक उद्यमी में भी अनुभव से सीखने की योग्यता होनी चाहिए।
  • अभिप्रेरणा : अभिप्रेरणा सफलता की कुंजी है। जीवन के हर कदम पर इसकी आवश्यकता पड़ती है। एक बार जब आप किसी कार्य को करने के लिए अभिप्रेरित हो जाते हैं तो उस कार्य को समाप्त करने के बाद ही दम लेते हैं। उदाहरण के लिए, कभी-कभी आप किसी कहानी अथवा उपन्यास को पढ़ने में इतने खो जाते हैं कि उसे खत्म करने से पहले सो नहीं पाते। इस प्रकार की रूचि अभिप्रेरणा से ही उत्पन्न होती है। एक सफल उद्यमी का यह एक आवश्यक गुण है।
  • आत्मविश्वास : जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए अपने आप में आत्मविश्वास उत्पन्न करना चाहिए। एक व्यक्ति जिसमें आत्मविश्वास की कमी होती है वह न तो अपने आप कोई कार्य कर सकता है और न ही किसी अन्य को कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
  • निर्णय लेने की योग्यता : व्यवसाय चलाने में उद्यमी को बहुत से निर्णय लेने पड़ते हैं। अतः उसमें समय रहते हुए उपयुक्त निर्णय लेने की योग्यता होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में उचित समय पर उचित निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए। आज की दुनिया बहुत तेजी से आगे बढ़ रही हैं यदि एक उद्यमी में समयानुसार निर्णय लेने की योग्यता नहीं होती है, तो वह आये हुए अवसर को खो देगा और उसे हानि उठानी पड़ सकती है।

उद्यमी के कार्य

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उद्यमी के कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं :

  • उद्यम के अवसरों की पहचान : विश्व में व्यवसाय करने के बहुत से अवसर हैं। इनका आधर मानव की आवश्यकताएं हैं, जैसे : खाना, फैसन, शिक्षा आदि, जिनमें निरंतर परिवर्तन हो रहे हैं। आम आदमी को इन अवसरों की समझ नहीं होती, किन्तु एक उद्यमी इनको अन्य व्यक्तियों की तुलना में शीघ्रता से भांप लेता है। अतः एक उद्यमी को अपनी आंखें और कान खुले रखने चाहिए तथा विचार शक्ति, सृजनात्मक और नवीनता की ओर अग्रसर रहना चाहिए।
  • विचारों को कार्यान्वित करना : एक उद्यमी में अपने विचारों को व्यवहार में लाने की योग्यता होनी चाहिए। वह उन विचारों, उत्पादों, व्यवहारों की सूचना एकत्र करता है, जो बाजार की मांग को पूरा करने में सहायक होते हैं। इन एकत्र सूचनाओं के आधर पर उसे लक्ष्य प्राप्ति के लिए कदम उठाने पड़ते हैं।
  • संभाव्यता अध्ययन : उद्यमी अध्ययन कर अपने प्रस्तावित उत्पाद अथवा सेवा से बाजार की जांच करता है, वह आनेवाली समस्याओं पर विचार कर उत्पाद की संख्या, मात्रा तथा लागत के साथ-साथ उपक्रम को चलाने के लिये आवश्यकताओं की पूर्ति के ठिकानों का भी ज्ञान प्राप्त करता है। इन सभी क्रियाओं की बनायी गयी रूपरेखा, व्यवसाय की योजना अथवा एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट (कार्य प्रतिवेदन) कहलाती है।
  • संसाधनों को उपलब्ध कराना : उद्यम को सपफलता से चलाने के लिए उद्यमी को बहुत से साधनों की आवश्यकता पड़ती है। ये साधन हैं : द्रव्य, मशीन, कच्चा माल तथा मानव। इन सभी साधनों को उपलब्ध कराना उद्यमी का एक आवश्यक कार्य है।
  • उद्यम की स्थापना : उद्यम की स्थापना के लिए उद्यमी को कुछ वैधनिक कार्यवाहियां पूरी करनी होती हैं। उसे एक उपयुक्त स्थान का चुनाव करना होता है। भवन को डिजाइन करना, मशीन को लगाना तथा अन्य बहुत से कार्य करने होते हैं।
  • उद्यम का प्रबंधन : उद्यम का प्रबंधन करना भी उद्यमी का एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। उसे मानव, माल, वित्त, माल का उत्पादन तथा सेवाएं सभी का प्रबंधन करना है। उसे प्रत्येक माल एवं सेवा का विपणन भी करना है, जिससे कि विनियोग किए धन से उचित लाभ प्राप्त हो। केवल उचित प्रबंध के द्वारा ही इच्छित परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
  • वृद्धि एवं विकास : एक बार इच्छित परिणाम प्राप्त करने के उपरांत, उद्यमी को उद्यम की वृद्धि एवं विकास के लिए अगला ऊंचा लक्ष्य खोजना होता है। उद्यमी एक निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के पश्चात् संतुष्ट नहीं होता, अपितु उत्कृष्टता प्राप्ति के लिए सतत प्रयत्नशील बना रहता है।

लघु उद्यम की स्थापना

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एक लघु व्यवसाय की इकाई कोई भी व्यक्ति स्थापित कर सकता है। वह पुराना अथवा नवीन उद्यमी हो सकता है , उसे व्यवसाय चलाने का अनुभव हो सकता है और नहीं भी, वह शिक्षित भी हो सकता है अथवा अशिक्षित भी, उसकी पृष्ठभूमि ग्रामीण भी हो सकती है अथवा शहरी भी।

वित्त का प्रबन्ध

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उद्यमी को विश्लेषण कर यह ज्ञात करना होगा कि व्यवसाय में कितने पूंजी की आवश्यकता होगी और कितने समय के लिए होगी। भूमि, भवन, संयंत्र, कच्चा माल आदि खरीदने तथा श्रमिकों की मजदूरी आदि चुकाने के लिए उसे धन की आवश्यकता पड़ती है। मशीनरी, भवन, उपकरण आदि क्रय करने के लिए खर्च किया धन स्थायी पूंजी कहलाती है। दूसरी ओर, कच्चा माल क्रय करने तथा मजदूरी तथा वेतन, किराया, बिजली बिल, ब्याज का भुगतान करने के लिए खर्च किया धन कार्यशील पूँजी कहलाती है। एक उद्यमी को दोनों ही प्रकार की पूंजी जुटानी होती है। यह धन अपने संसाधन, शासकीय अनुदान, बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेकर किया जा सकता है। मित्रों तथा संबंधियों से भी धन उधार लिया जा सकता है।


व्यवसाय का चुनाव

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व्यवसाय करने की प्रक्रिया तब से प्रारम्भ हो जाती है जब उद्यमी सोचना शुरू कर देता है कि वह किस उत्पाद या सेवा का व्यवसाय करें। वह बाजार की मांग को देखते हुए व्यावसायिक अवसरों पर सोच सकता है। वह विद्यमान वस्तु अथवा उत्पाद के लिए निर्णय ले सकता है अथवा किसी नये उत्पाद / उत्पादों पर विचार कर सकता है। किन्तु कोई भी कदम उठाने से पहले उसे व्यवसाय का लाभ, लाभप्रदता और पूंजी निवेश और पूंजी की उपलब्धता पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। लाभप्रदता तथा जोखिम की स्थिति पर विचार कर लेने के पश्चात ही व्यवसाय की कौन सी क्षमता ठीक रहेगी इसके बारे में उद्यमी को उचित निर्णय लेना चाहिए।

संगठन के स्वरूप का चयन

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संगठन के विभिन्न स्वरूपों के विषय में आप जानकारी प्राप्त कर चुके हैं। अब आपको अपनी आवश्यकता के अनुसार सर्वश्रेष्ठ रूप से चयन करना होगा। सामान्यतः एक लघु उद्यम को चुनना ठीक होगा, जो एकल व्यवसायी अथवा साझेदारी का रूप ले सकती है।

व्यवसाय कहाँ शुरू किया जाय? - इस स्थान के चुनाव में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। उद्यमी अपने स्थान पर अथवा किराये के स्थान पर व्यवसाय शुरू कर सकता है। वह स्थान किसी बाजार अथवा व्यापारिक कांप्लेक्स अथवा किसी औद्योगिक भूमि (स्टेट) में हो सकता है। स्थान-विषयक निर्णय लेते समय उद्यमी को बहुत से कारकों जैसे : बाजार की निकटता, श्रम की उपलब्धता, यातायात की सुविधा, बैंकिंग तथा संवहन की सुविधाएं आदि पर विचार कर लेना चाहिए। कारखाने की स्थापना ऐसे स्थान पर करनी चाहिए, जहां पर पूरी तरह से संसाधन की उपलब्धता, कच्चे माल की प्राप्ति का स्रोत हो तथा वह स्थान रेल सड़क यातायात की सुविधा से भी जुड़ा हुआ हो। फुटकर व्यवसाय मोहल्ले अथवा बाजार में शुरू किया जाना चाहिए।

श्रम की उपलब्धि

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एक उद्यमी अकेला ही व्यवसाय को नहीं चला सकता। उसे अपनी सहायता के लिए कुछ व्यक्तियों को कार्य पर रखना होगा। विशेष रूप से विनिर्माण कार्य के लिए उसे प्रशिक्षित तथा अर्ध-प्रशिक्षित कारीगरों को रखना होगा। उद्यम शुरू करने से पूर्व उद्यमी को यह निश्चित कर लेना चाहिए कि क्या उसे किये जाने वाले कार्यों के लिए उचित प्रकार के अनुभवी कर्मचारी मिल पायेंगे?

इन्हे भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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