समाज विज्ञान या विकास के क्षेत्र में जब कोई योजना, नीति या कार्यक्रम केवल उन परिणामों को ध्यान में रखकर बनाए और लागू किए जाते हैं जिन्हें हासिल करके मापा जा सके. हम ऐसे कार्यक्रमों को ‘उपकरणवादी’ कहते हैं.

उपकरणवाद किसी सिद्धांत के अंतिम योगदान को ही महत्त्व देता है. इसमें ‘प्रक्रियाओं’ यानी काम करने के तरीके के बजाए ‘अंतिम परिणामों’ पर ज़ोर दिया जाता है. उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति शिक्षा के बारे में उपकरणवादी रुझान रखता है तो उसे इस प्रक्रिया में हासिल किए गए ज्ञान के बजाए प्राप्त हुए अंकों से खुशी मिलती है. उसे इस बात से खुशी नहीं मिलती कि उसने जो सीखा है उससे उसकी सोच, जीवन, पसंद-नापसंद, संबंधों में क्या फर्क पड़ा है.

उपकरणवाद ऐसी प्रक्रियाओं पर ध्यान देने के लिए ज़्यादा गुंजाइश नहीं छोड़ता जिनके परिणामों को मापा नहीं जा सकता, जैसे सीखने का आनंद या लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ जुड़ा सशक्तीकरण.

उपकरणवाद (इंस्ट्रूमेंटलिज़्म) शब्द दरअसल दर्शनशास्त्र से निकला है. यह इस मान्यता पर आधारित है कि किसी सिद्धांत विशेष का मूल्य इस बात से तय नहीं होता कि वह ‘सत्य’ को पकड़ पाने में कितना सक्षम है. वह इस बात पर ज़ोर देता है कि किसी घटना या परिस्थिति को समझने और उसका पूर्व अनुमान लगाने के लिए कोई भी उपकरण कितना उपयोगी है.

विकास की दुनिया में जिस तरह के कार्यक्रम और प्रोजेक्ट पर काम किया जाता है उनमें उस ‘लक्ष्य समूह’ की ज़रूरतों का ध्यान नहीं रखा जाता जिनकी उन्हें ज़रूरत है बल्कि केंद्र में दूसरे हितों को रखा जाता है. उदाहरण के लिए अगर किशोरावस्था शिक्षा में उपकरणवाद के चलते एच.आई.वी. एड्स की ही समझ बनाने का ही एजेंडा है तो अन्य मुद्दों पर किशोर-किशोरियों की समझ बनाने की शैक्षणिक ज़रूरतों और रुचि को नज़रअंदाज़ किया जाएगा.

उपकरणवादियों के लिए सिद्धांतों का सबसे ज़्यादा उपयोग ऐसे ‘उपकरणों’ के रूप में देखा जाता है जो हमें लगातार बदल रही दुनिया में ‘विकसित’ होने में मदद देते हैं.

संदर्भ:


द थर्ड आई पोर्टल जेंडर, यौनिकता, हिंसा टेक्नोलॉजी, और शिक्षा पर काम करने वाली एक नारीवादी विचारमंच (थिंकटैंक) है.