उपभोक्ता

उपभोग करने वाला
(उपभोक्ताओं से अनुप्रेषित)

उपभोक्ता उस व्यक्ति को कहते हैं, जो विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं का या तो उपभोग करता है अथवा उनको उपयोग में लाता है। वस्तु ओं में उपभोक्ता वस्तुएं (जैसे गेहूं, आटा, नमक, चीनी, फल आदि) एवं स्थायी वस्तुएं (जैसे टेलीविजन, रेफरीजरेटर, टोस्टर, मिक्सर, साइकिल आदि) सम्मिलित है। जिन सेवाओं का हम क्रय करते हैं, उनमें बिजली, टेलीफोन, परिवहन सेवाएं, थियेटर सेवाएं आदि सम्मिलित है।

ध्यान रखने योग्य बात है कि उपभोक्ता वह है, जो मानद) खरीदता है, तो वह उपभोक्ता नहीं है क्योंकि वह तो वस्तुओं का क्रय पुनः विक्रय के

क्या यह आवश्यक है कि एक क्रेता (जो केवल एक उपभोक्ता है) ही वस्तुओं का उपयोग करे? यह सदा नहीं होता। यदि आप अपने लिखने के लिए एक कापी खरीदते हैं तो आप क्रेता भी हैं और उपभोक्ता भी। माना आपके पिता खाद्य सामग्री का क्रय करते हैं, जिसका उपभोग परिवार के सभी सदस्य करते हैं या फिर जब वह कपड़े धोने का डिटरजैन्ट पाउडर खरीदते हैं तो इसका प्रयोग परिवार के सभी सदस्य कर सकते हैं तथा अन्य कोई भी (जो कपड़े धोने का कार्य कर रहा है) कर सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि एक उपभोक्ता जिन वस्तुओं का क्रय करता है उनका उपभोग उसके परिवार के सदस्य कर सकते हैं अथवा क्रेता की ओर से कोई अन्य व्यक्ति कर सकता है।

उपभोक्ता वह व्यक्ति है, जो वस्तुओं अथवा सेवाओं को अपने अथवा अपनी ओर से अन्य के प्रयोग अथवा उपभोग के लिए खरीदता है। वस्तुओं में दैनिक उपभोग की तथा स्थायी वस्तुएँ सम्मिलत है। जबकि सेवाएँ जिनके लिए भुगतान किया जाता है, में यातायात, बिजली, फिल्म देखना इत्यादि शामिल है।

उपभोक्ता को इस प्रकार से भी परिभाषित किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति, जो वस्तुओं एवं सेवाओं का चयन करता है, उन्हें प्राप्त करने के लिए पैसा खर्च करता है तथा अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु उनका उपयोग करता है उपभोक्ता कहलाता है।

वस्तुओं के उपभोक्ता एवं सेवाओं के उपभोक्ता की स्थिति में क्या अन्तर है? जिन सेवाओं का हम क्रय करते हैं, उनमें हम परिवहन सेवा को सम्मलित कर सकते हैं जैसे- जब हम किसी स्थान पर जाने के लिए टैक्सी अथवा ऑटोरिक्शा लेते हैं, सार्वजनिक बस में यात्रा करते हैं अथवा रेल से यात्रा करते हैं तो हम परिवहन सेवा का उपभोग करते हैं। यदि आपके पास अपनी साइकिल अथवा स्कूटर या फिर मोटर साइकिल है तो आपको इसकी मरम्मत की आवश्यकता हो सकती है और आप इसे मरम्मत करने वाली दुकान पर ले जाते हैं। जो व्यक्ति मरम्मत करता है आप उसे उसकी सेवाओं के बदले भुगतान करते हैं। आप उस समय सेवा का उपभोक्ता हैं। हम घर पर अथवा कार्य स्थल पर बिजली अथवा टेलीफोन का प्रतिदिन उपयोग करते हैं, ये भी सेवाएं हैं, जिनका हम उपभोग करते हैं तथा बदले में भुगतान करते हैं। सिनेमा घर में मनोरंजन के लिए सिनेमा देखना भी सेवा का एक उदाहरण है।

वस्तुओं एवं सेवाओं के उपभोग करने में मुख्य अंतर है कि क्रय से पहले वस्तुओं की तो भौतिक रूप से जांच की जा सकती है, जबकि सेवाओं की विश्वसनीयता एवं निरन्तरता की पहले से जांच नहीं की जा सकती। उदाहरण के लिए यदि आप टेलीविजन खरीदते हैं तो आप इसका प्रदर्शन करा सकते हैं और देख सकते हैं कि यह कैसे काम कर रहा है तथा इसकी तस्वीर, गुणवत्ता, आवाज आदि कैसी है। लेकिन आप यह जाँच नहीं कर सकते कि बिजली की वोल्टेज हर समय स्थिर रहेगी या नहीं। आप किसी खाने की वस्तु को पहले नमूने के तौर पर उसका स्वाद जानकर उसका क्रय कर सकते हैं या फिर फलों का क्रय करने से पहले उनकी जाँच कर सकते हैं कि वह अधिक पके हुए तो नहीं है। लेकिन आप इसकी जाँच नहीं कर सकते कि एक स्कूटर अथवा टैक्सी का ड्राइवर चौकन्ना रहेगा, कोई दुर्घटना नहीं होगी अथवा सिनेमा देखते समय चलचित्रा में तस्वीर और आवाज पूरे समय ठीक रहेगी अथवा नहीं।

इसके साथ-साथ जिन वस्तुओं का हम क्रय करते हैं, तो हम उनका उपभोग भी तुरंत कर सकते हैं अथवा कुछ समय के पश्चात् भी। हम अनाज का हफ्रतों, महीनों तक संग्रहण कर सकते हैं। एक रेफरीजरेटर की यदि समय-समय पर आवश्यक मरम्मत कराते रहें, तो उसका कई वर्षों तक उपयोग कर सकते हैं। लेकिन हम परिवहन सेवाओं अथवा मरम्मत, बिजली की आपूर्ति अथवा टेलीफोन सेवा अथवा फिल्म शो के सम्बंध में ऐसा नहीं कर सकते।

उपभोक्तावाद

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यदि उपभोक्ता चौकन्ने हो जाएं एवं इस प्रकार के गलत कार्यों के विरूद्ध मिलकर सामना करें तो इस प्रकार के शोषण को कम किया जा सकता है। अपनी रक्षा में स्वयं उपभोक्ताओं द्वारा किया गया प्रयत्न उपभोक्तावाद कहलाता है।

उपभोक्तावाद से अभिप्राय उपभोक्ताओं के आंदोलन से है जिसका उद्देश्य निर्माता, व्यापारी, विक्रेता एवं सेवा प्रदान करने वालों के उपभोक्ताओं के प्रति उचित एवं ईमानदारीपूर्ण (नैतिक) व्यवहार को सुनिश्चित करना है। यह आंदोलन बाजार में व्याप्त दुराचार के संबंध में उपभोक्ता में जागरूकता पैदा करने एवं उनके हितों की रक्षा के लिए मार्ग खोजने की दिशा में किसी उपभोक्ता आंदोलनकारी अथवा उपभोक्ता समितियों का प्रयत्न माना जा सकता है।

यह आंदोलन तभी सफल होगा, जब उपभोक्ता वस्तुओं एवं सेवाओं का उपयोग करते समय अपने अधिकार एवं उत्तरदायित्वों के प्रति सचेत होंगे।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 : उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, अन्य कानूनों की अपेक्षा उपभोक्ताओं को अधिक संरक्षण प्रदान करता है। उपभोक्ता अधिक विस्तार से अथवा विस्तृत तरह से बैंकिग, बीमा, वित्त, ट्रांसपोर्ट, होटल, टेलीफोन, बिजली की आपूर्ति या अन्य ऊर्जा, आवास, मनोरंजन अथवा अमोद-प्रमोद आदि में अधिक संरक्षण प्राप्त कर सकता है। यह अधिनियम राज्य व केन्द्रीय स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परामर्श समितियां बनाने का प्रावधान करती है। उपभोक्ता के विवादों का शीघ्र और उचित निपटारा करने के लिये अर्ध न्यायिक पद्धति को बनाया गया है। इसमें जिला फोरम, राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग को शामिल करते हैं। इन्हें उपभोक्ता न्यायालय कहा जाता है।

उपभोक्ता के अधिकार

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आज उपभोक्ता को बाजार में प्रतियोगिता, गुमराह करने वाले विज्ञापन, घटिया वस्तुएं एवं सेवाएं तथा अन्य बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए उपभोक्ता के हितों की रक्षा करना सरकार एवं सार्वजनिक संस्थाओं के लिए एक गम्भीर चिंता का विषय बन गया है। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए सरकार ने उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को मान्यता प्रदान की है। दूसरे शब्दों में यदि उपभोक्ता अपने आपको शोषण एवं धोखे से बचाना चाहते हैं तो उन्हें कुछ अधिकारों को मान्यता प्रदान करनी होगी। दूसरे शब्दों में यदि उपभोक्ता अपने आपको शोषण एवं धोखे से बचाना चाहते हैं तो उन्हें कुछ अधिकार देने होंगे ताकि वे ऐसी स्थिति में हो कि वे वस्तुओं के विक्रेता एवं सेवा प्रदान करने वालों से व्यवहार करते समय सतर्क रह सकें। उदाहरण के लिए उपभोक्ताओं के अधिकारों में से एक अधिकार चयन का अधिकार है। यदि आप इस अधिकार की जानकारी रखते हैं तो आप दुकानदार से एक ही वस्तु के विभिन्न किस्में दिखाने के लिए कह सकते हैं, जिससे कि आप अपनी पसंद की वस्तु का चयन कर सकें। कभी-कभी दुकानदार उस ब्रांड की वस्तु को बेचने का प्रयत्न करता है जिस पर उसे अधिक कमीशन मिलता है। हो सकता है कि यह सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाली वस्तु न हो या फिर यह अपेक्षाकृत कम मूल्य पर उपलब्ध हो। इस व्यवहार को आप रोक सकते हैं। यदि आप अपने चयन के अधिकार का उपयोग करें तथा यदि एक दुकान पर अधिक किस्म के उत्पाद उपलब्ध नहीं है तो आप दूसरी दुकान पर जा सकते हैं।

  • सुरक्षा का अधिकार : उपभोक्ताओं को ऐसी वस्तुओं की बिक्री से सुरक्षा का अधिकार है, जो स्वास्थ्य एवं जीवन के लिए हानिकारक है। उपभोक्ता के रूप में यदि आप इस अधिकार के सम्बन्ध में सचेत हैं तो हानि को रोकने के लिए कदम उठा सकते हैं और यदि सतर्कता के बाद भी हानि होती है तो आप विक्रेता की शिकायत कर सकते हैं तथा क्षतिपूर्ति का दावा भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए माना आपने कोई दवा खरीदी है तो दवा के हानिकारक होने की दशा में आप दवा विक्रेता को उत्तरदायी ठहरा सकते हैं। इसी प्रकार से यदि आप खाना पकाने के लिए गैस के सिलेन्डर का प्रयोग करते हैं तो आपूर्ति के समय जांच कर लें कि यह रिस तो नहीं रहा है। यदि बाद में यह रिसने लगता है तो इसके कारण आग लगने पर यदि कोई चोट आती है या किसी की मृत्यु हो जाती है तो आपूर्ति कर्ता का क्षतिपूर्ति का दायित्व होगा।
  • सूचना पाने का अधिकार : उपभोक्ता को उपलब्ध वस्तुओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, स्तर या श्रेणी तथा मूल्य के सम्बंध में जानने का अधिकार है, जिससे कि वह किसी वस्तु अथवा सेवा का क्रय करने से पहले सही चुनाव कर सके। इसके साथ ही वस्तु के उपभोग के समय उससे होने वाली क्षति अथवा चोट से बचने के लिए उपभोक्ता को सुरक्षा के किन उपायों का ध्यान रखना चाहिए इस सम्बंध में जहां भी आवश्यकता हो उपभोक्ता को सूचना प्रदान करानी चाहिए। उदाहरण के लिए गैस सिलेन्डर को लें, पूर्तिकर्ता को उपभोक्ता को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि ‘‘जब गैस का प्रयोग न हो तो रेगुलेटर की सहायता से गैस के प्रवाह को बंद कर देना चाहिए।’’
  • चयन का अधिकार : प्रत्येक उपभोक्ता को अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को उनकी विभिन्न किस्मों में से चयन का अधिकार है। कई बार विक्रेता एवं व्यापारी घटिया गुणवत्ता वाली वस्तु को बेचने के लिए दबाव के हथकन्डे अपनाता है। कभी-कभी उपभोक्ता भी टी.वी पर विज्ञापनों से प्रभावित हो जाता है। उपभोक्ता यदि अपने चयन के अधिकार के प्रति सचेत है तो इन सम्भावनाओं से बचा जा सकता है।
  • सुनवाई का अधिकार : सुनवाई का अधिकार : इस अधिकार को तीन विभिन्न अर्थों में समझा जा सकता है। व्यापक अर्थ में इसका अर्थ है कि जब भी सरकार एवं सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा उपभोक्ता के हितों को प्रभावित करने वाले निर्णय लिए जाएं तो उपभोक्ता से सलाह ली जाय। उपभोक्ताओं का यह भी अधिकार है कि निर्माता, विक्रेता एवं विज्ञापनकर्ता उत्पादन एवं विपणन सम्बन्धी निर्णय लेते समय उनके विचार जानें। तीसरे, उपभोक्ताओं की शिकायतों की सुनवाई के समय अदालती कार्यवाही के मध्य उनकी सुनवाई का भी उनका अधिकार है।
  • निवारण का अधिकार : जब भी किसी उपभोक्ता को अनुचित व्यापार व्यवहार, जैसे अधिक मूल्य वसूलना, घटिया गुणवत्ता वाले अथवा असुरक्षित उत्पादों को बेचना, वस्तु एवं सेवाओं की आपूर्ति में नियमितता की कमी के सम्बंध में कोई शिकायत है या फिर उसे दोषपूर्ण अथवा मिलावटी वस्तुओं के कारण कोई हानि हुई है अथवा चोट पहुंची है तो उसे उनके निवारण का अधिकार है। उसे दोषपूर्ण वस्तुओं के स्थान पर दूसरी वस्तु अथवा विक्रेता द्वारा मूल्य वापसी को प्राप्त करने का अधिकार है। उसे उचित न्यायालय में वैधानिक समाधान पाने का भी अधिकार है। यह अधिकार उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाता है कि उनकी शिकायत पर उचित ध्यान दिया जायेगा। इस अधिकार में यदि आपूर्तिकर्ता अथवा विनिर्माता की गलती के कारण उन्हें कोई हानि होती है अथवा किसी कठिनाई का सामना करना पड़ता है तो उपभोक्ता के लिए उचित क्षतिपूर्ति का भी प्रावधान है।
  • उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार : बाजार में दोषपूर्ण कार्यों एवं उपभोक्ताओं के शोषण को रोकने के लिए उपभोक्ताओं में जागरूकता पैदा करना एवं उनको शिक्षित करना बहुत आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उपभोक्ता संगठन, शैक्षणिक संस्थान एवं सरकारी नीति निर्धारकों से अपेक्षा है कि वे उपभोक्ताओं को निम्नलिखित विषयों से अवगत कराएं और उनके विषय में शिक्षित करें।
  • अनुचित व्यापार कार्यों को रोकने के उद्देश्य से बनाए गये प्रासंगिक कानून,
  • बेईमान व्यापारियों एवं उत्पादनकर्ताओं द्वारा अपनाये जाने वाली वे विधियां जिनके द्वारा वह उपभोक्ताओं को धोखा देने के लिए बाजार के व्यवहार को तोड़ मरोड़ करने का प्रयत्न करता है,
  • उपभोक्ता किस प्रकार से अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं,
  • शिकायत करते समय उपभोक्ताओं द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया इत्यादि।

बहुत से उपभोक्ता संगठन उपभोक्ताओं को पर्चें, पत्रिकाओं एवं पोस्टरों के द्वारा शिक्षित करने की दिशा में पहले ही कदम उठा चुके हैं। इस सम्बन्ध में टी.वी. पर कार्यक्रम भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

उपभोक्ता के उत्तरदायित्व

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कहावत है कि बिना उत्तरदायित्व के अधिकार नहीं हो सकते। उपभोक्ताओं के अधिकारों एवं इन अधिकारों के उद्देश्यों का मूल्यांकन करने के पश्चात यह समझ लेना आवश्यक है कि क्या उपभोक्ता के कुछ उत्तरदायित्व होने चाहिए, जिससे कि वे अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें। उदाहरण के लिए उपभोक्ता यदि यह चाहते हैं कि वे अपनी सुनवाई के अधिकार का प्रयोग कर सकें तो उनका यह भी उत्तरदायिव है कि वह अपनी समस्याओं को जानें तथा उनके सम्बन्ध में सूचनाओं को प्राप्त करते रहें। अपनी शिकायतों के निवारण के अधिकार का उपयोग करने के लिए उपभोक्ताओं को सही वस्तु को ही मूल्य पर चुनने के सम्बन्ध में सावधानी बरतनी चाहिए तथा उन्हें यह भी सीखना चाहिए कि किसी प्रकार की चोट अथवा हानि को रोकने के लिए उन वस्तुओं का कैसे उपयोग करें। उपभोक्ता के दायित्वों में विशेष रूप से निम्न दायित्व सम्मलित हैं :

  • स्वयं सहायता का दायित्व : उपभोक्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि जहां तक संभव हो वस्तु के सम्बंध में सूचना एवं चुनाव के लिए वह विक्रेता पर निर्भर न रहें। एक उपभोक्ता के नाते, आप से यह अपेक्षित है कि स्वयं को धोखे से बचाने के लिए आपका व्यवहार उत्तदायित्वपूर्ण हो। एक सजग उपभोक्ता दूसरों की अपेक्षा अपने हितों का अधिक ध्यान रख सकता है। शुरू से ही जागरूक हो जाना एवं अपने आपको तैयार कर लेना हानि होने अथवा क्षति पहुंचाने के पश्चात उसका निवारण करने से, सदा श्रेष्ठ होता है।
  • लेन-देन का प्रमाण : उपभोक्ता का दूसरा दायित्व क्रय का प्रमाण एवं स्थायी वस्तुओं के क्रय से सम्बन्धित प्रपत्रों को प्राप्त करना एवं उन्हें सुरक्षित रखना है। उदाहरण के लिए वस्तुओं के क्रय पर रोकड़ पर्ची (कैश मेमो) को प्राप्त करना आवश्यक है। याद रहे कि यदि आप वस्तु में किसी कमी के सम्बन्ध में शिकायत करना चाहते हैं तो क्रय का प्रमाण होने पर आप वस्तु की मरम्मत अथवा उसके प्रतिस्थापन का दावा कर सकते हैं। इसी प्रकार टी.वी., रेफरीजरेटर आदि स्थायी वस्तुओं के क्रय पर विक्रेता आश्वासन/गारंटी कार्ड देते हैं। यह कार्ड आपको क्रय के पश्चात मरम्मत अथवा नुकसान के प्रतिस्थापन की सेवा मुफ़्त प्राप्त करने का अधिकार देता है।
  • उचित दावा : उपभोक्ता का एक और दायित्व, जो उसे मस्तिष्क में रखना चाहिए, है कि शिकायत करते समय एवं हानि अथवा क्षति होने पर उसकी पूर्ति का दावा करते समय अनुचित रूप से बड़ा दावा नहीं करना चाहिए। कभी-कभी उपभोक्ता अपने निवारण के अधिकार का उपयोग न्यायालय में करता है। ऐसे भी मामले सामने आये हैं जिनमें उपभोक्ता ने बिना किसी उचित कारण के क्षतिपूर्ति की बड़ी राशि का दावा किया है। यह एक अनुचित कार्य है, जिससे बचना चाहिए।
  • उत्पाद अथवा सेवाओं का उचित उपयोग : उत्पाद अथवा सेवाओं का उचित उपयोग : कुछ उपभोक्ता विशेष रूप से गारंटी अवधि के दौरान यह सोचकर वस्तुओं तथा सेवाओं का दुरूपयोग करते हैं कि इस अवधि में इसका प्रतिस्थापन तो हो ही जायेगा। उनके लिए ऐसा करना उचित नहीं है। उन्हें वस्तुओं का अपनी स्वयं की वस्तु समझकर प्रयोग करना चाहिए।

इन दायित्वों के अतिरिक्त उपभोक्ता के अन्य दायित्व भी हैं। उन्हें विनिर्माता, व्यापारी एवं सेवा प्रदानकर्ता के साथ अपने अनुबंध का सख्ती से पालन करना चाहिए। उधार क्रय की स्थिति में उसे समय पर भुगतान करना चाहिए। उन्हें सेवा के माध्यम जैसे बिजली एवं पानी के मीटर, बस एवं रेल गाड़ियों की सीटों के साथ छेड़-छाड़ नहीं करनी चाहिए। उन्हें याद रखना चाहिए कि वह अपने अधिकारों का उपयोग तभी कर सकते हैं जब वह अपने दायित्वों को निभाने के लिए तैयार अथवा इच्छुक हैं।

इन्हें भी देखें

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