ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोष
ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोष (अंग्रेज़ी: Rigbhashya Padarth Kosh) प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री द्वारा सम्पादित ऋग्वेद के पदों का एक ऐसा विश्वकोशात्मक शब्दकोश (Encyclopaedic Dictionary) है जिसमें ऋग्वेद के पदों को अकारादि (alphabetical) क्रम से रखते हुए महर्षि यास्क से लेकर स्वामी दयानन्द सरस्वती तक भारतवर्ष के समस्त प्रख्यात भाष्यकारों द्वारा किये गये अर्थों को क्रमशः दिया गया है।
उद्देश्य एवं क्रियान्वयन
संपादित करेंवैदिक साहित्य के अनेक अनुसन्धाता एवं अध्येता की यह स्वाभाविक जिज्ञासा और अभिलाषा रही है तथा प्रयत्न भी रहा है कि वैदिक साहित्य का ऐसा कोष हो जिसमें प्राचीन समय से लेकर आधुनिक समय तक के प्रख्यात भाष्यकारों के द्वारा किये गये प्रत्येक पद का अर्थ एकत्र रूप से सुलभ हो। स्वामी विश्वेश्वरानन्द एवं स्वामी नित्यानन्द ने 'विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान' की स्थापना मुख्य रूप से इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए की थी। उनकी इच्छा मूलतः इसी प्रकार के कोष-निर्माण की थी।[1] हालाँकि इस तरह के कोष-निर्माण के लिए आवश्यक पद-सूचियाँ एवं अनुक्रमणिका तैयार करने के प्राथमिक कार्य में ही उक्त दोनों स्वामियों के अतिरिक्त आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री का स्तुत्य योगदान रहा।[2] आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री ने अनेक विद्वानों की सहायता से सोलह खण्डों में निर्मित 'वैदिक-पदानुक्रम-कोष' के अतिरिक्त 'चतुर्वेद वैयाकरण पद सूची' भी दो खण्डों में तैयार की है तथा प्राचीन भारतीय भाष्यकारों में प्रख्यात स्कन्दस्वामी, उद्गीथ एवं वेंकटमाधव के भाष्य सहित ऋग्वेद का एक परिपूर्ण संस्करण भी तैयार किया। परन्तु, इन कार्यों के मूल में निहित समस्त प्रख्यात भाष्यकारों द्वारा किये गये अर्थो के कोष (encyclopaedic dictionary) निर्माण की इच्छा पूरी नहीं हो पायी थी। 'ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः' (यास्कतः दयानन्दपर्यन्तम्) के रूप में प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री ने यही कार्य लगभग पूरा कर दिया है।[3] आठ भागों में प्रकाशित इस कोष में ऋग्वेद के पदों (विभक्तियुक्त शब्दों) को वर्णानुक्रम से रखते हुए वैदिक शब्दार्थों के सर्वाधिक प्राचीन उपलब्ध अन्वेषक महर्षि यास्क द्वारा किये गये निरुक्त में उपलब्ध शब्दार्थ से लेकर आधुनिक युग के स्वामी दयानन्द सरस्वती तक कुल ग्यारह मनीषियों द्वारा किये गये भाष्यों अथवा वृत्तियों से ऋग्वेद के पदों (शब्दों) के अर्थ क्रमशः दिये गये हैं।
कोश में सम्मिलित भाष्यकार
संपादित करेंप्रस्तुत कोश में निम्नांकित क्रम से कुल ग्यारह भाष्यकारों एवं वृत्तिकारों द्वारा किये गये अर्थ सम्मिलित किये गये हैं[4] :
- यास्क
- दुर्गाचार्य
- स्कन्दस्वामी
- स्कन्द महेश्वर
- आचार्य उद्गीथ
- वररुचि
- वेंकटमाधव
- आत्मानन्द
- आचार्य सायण
- आचार्य मुद्गल
- स्वामी दयानन्द सरस्वती
सामग्री-संयोजन एवं वैशिष्ट्य
संपादित करेंप्रस्तुत 'ऋग्भाष्य पदार्थ कोष' में वर्णानुक्रमिक (alphabetical) रूप में ऋग्वेद के पद (विभक्तियुक्त शब्द) देते हुए पूर्वोक्त ग्यारह भाष्यकारों द्वारा किये गये अर्थ के उपलब्ध अंश को क्रमशः दिया गया है। परन्तु उपसर्गयुक्त पदों को उपसर्ग के अक्षरक्रम में न रखकर आख्यातपद (जिसके साथ उपसर्ग जुड़ता है उस शब्द) के अक्षरक्रम में दिया गया है। उदाहरण के लिए 'नि अहासत' पद को न' अक्षर के अंतर्गत नहीं रखकर 'अहासत' के क्रम में दिया गया है।[5] इसी प्रकार 'प्रति अहन्' को 'प' अक्षर के अन्तर्गत न देकर 'अहन्' के क्रम में रखा गया है।[6] उपसर्गयुक्त पदों के सन्दर्भ में इस क्रम को अपनाने के मूल में यह कारण रहा है कि पाठक को एक ही स्थान पर उपसर्गरहित और उपसर्गयुक्त आख्यातपद का सम्पूर्ण विवरण उपलब्ध हो सके। इससे जो लोग आख्यातपद के सम्बन्ध में शोधकार्य करना चाहते हैं, उन्हें तो सुविधा होगी ही, साथ ही अध्येता की जिज्ञासा भी पूर्ण हो सकेगी।[7]
प्रस्तुत कोष में किसी भाष्यकार के द्वारा किसी पद के एक से अधिक अर्थ किये गये हैं तो उन समस्त अर्थों को प्रयोग-स्थल के क्रम से पर्याप्त सन्दर्भसूची देते हुए वाक्यांश के साथ (संस्कृत भाषा में) प्रस्तुत किया गया है। इस कारण से कई शब्दों (पदों) के अर्थ कई पृष्ठों में आ पाये हैं। उदाहरण के लिए 'अग्ने' पद का अर्थ लगभग ११ पृष्ठों में दिया गया है।[8]
भाष्यकारों के नाम के सन्दर्भ में एक तथ्य ध्यातव्य है कि इसमें स्कन्दस्वामी एवं स्कन्द महेश्वर के नाम से दो भिन्न भाष्यकारों के अर्थ प्रस्तुत किये गये हैं। कई ऐसे पद हैं जिन पर इन दोनों के भाष्य उपलब्ध हैं और उन्हें अलग-अलग क्रमशः दिया गया है। इन दोनों के अर्थों में भिन्नता भी है। उदाहरण के लिए 'ईळे'[9], 'हिरण्ययम्'[10], 'होतारम्'[11] आदि पद देखे जा सकते हैं जहाँ क्रमशः इन दोनों के भाष्य उपलब्ध हैं।
इस विश्वकोशात्मक ग्रन्थ की हिन्दी में लिखी गयी बृहद् भूमिका[12] कुल ८१२ पृष्ठों के एक स्वतंत्र ग्रन्थ के रूप में 'ऋग्वेद के भाष्यकार और उनकी मन्त्रार्थदृष्टि' नाम से 'महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन' से प्रकाशित है, जिसमें उपर्युक्त समस्त भाष्यकारों के अतिरिक्त टी॰वी॰ कपाली शास्त्री को मिलाकर बारह भाष्यकारों के सम्बन्ध में गवेषणात्मक एवं आलोचनात्मक विवेचन विस्तार से वर्णित हैं।[13] बाद में उन्होंने इस ग्रन्थ के परिशिष्ट में ऋग्वेद के एक और भाष्यकार पं॰ रामनाथ वेदालंकार का विवेचन भी जोड़ दिया।[14] इस प्रकार इसमें विवेचित भाष्यकारों की कुल संख्या तेरह हो गयी।
परियोजना
संपादित करेंप्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री ने आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री द्वारा निर्मित 'वैदिक पदानुक्रम कोष' के अगले चरण के रूप में यह परियोजना प्रस्तुत की कि ऋग्वेद के प्रत्येक पद के साथ समस्त भाष्यकारों के अर्थ दे दिये जायें ताकि उनमें से पाठक को जो उचित लगे उसे ग्रहण कर सके। इस निष्कर्ष को आधार बनाकर उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नयी दिल्ली से 'ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोष' के गठन हेतु बृहद् शोधपरियोजना प्रस्तुत की, जो सन् २००८ में स्वीकृत हुई तथा २०११ में यह कार्य पूर्ण हुआ एवं परिमल पब्लिकेशंस, शक्तिनगर, दिल्ली से सन् २०१३ में आठ भागों में प्रकाशित हुआ।[2] इससे पूर्व उन्हीं के द्वारा 'यजुर्वेद-पदार्थ-कोष' प्रकाशित हो चुका था।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान परिचय पुस्तिका (HISTORY IN HINDI) Archived 2019-04-06 at the वेबैक मशीन, पृष्ठ-2,13,21.
- ↑ अ आ प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, महाभारत-पदानुक्रम-कोष, प्रथम खण्ड, परिमल पब्लिकेशंस, शक्तिनगर, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-2017, (प्रस्तावना में उल्लिखित)।
- ↑ ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, प्रथम भाग, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, परिमल पब्लिकेशन्स, शक्तिनगर, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2013 ई॰, पृष्ठ-V.
- ↑ ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, प्रथम भाग, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, परिमल पब्लिकेशन्स, शक्तिनगर, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2013 ई॰, पृष्ठ-V,VI एवं 52-56 ('अग्निम्' पद)।
- ↑ ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, प्रथम भाग, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, परिमल पब्लिकेशन्स, शक्तिनगर, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2013 ई॰, पृष्ठ-773.
- ↑ ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, प्रथम भाग, पूर्ववत्, पृष्ठ-766.
- ↑ ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, प्रथम भाग, पूर्ववत्, पृष्ठ-vii.
- ↑ ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, प्रथम भाग, पूर्ववत्, पृष्ठ-59-69.
- ↑ ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, द्वितीय भाग, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, परिमल पब्लिकेशन्स, शक्तिनगर, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2013 ई॰, पृष्ठ-1078.
- ↑ ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, अष्टम भाग, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, परिमल पब्लिकेशन्स, शक्तिनगर, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2013 ई॰, पृष्ठ-5675.
- ↑ ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, अष्टम भाग, पूर्ववत्, पृष्ठ-5702.
- ↑ ऋग्भाष्य-पदार्थ-कोषः, प्रथम भाग, पूर्ववत्, पृष्ठ-v.
- ↑ ऋग्वेद के भाष्यकार एवं उनकी मन्त्रार्थ दृष्टि, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन, द्वितीय संस्करण-२०१५, पृष्ठ-iv (प्राथम्यङ्किञ्चित्).
- ↑ ऋग्वेद के भाष्यकार एवं उनकी मन्त्रार्थ दृष्टि, प्रो॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन, द्वितीय संस्करण-२०१५, पृष्ठ-७६२.