ऋभु बहुत प्राचीन शब्द है जिसका अर्थ समय के साथ परिवर्तित होता गया है।

वैदिक साहित्य के आरम्भिक ग्रन्थों में ऋभु का अर्थ सूर्य होता था। [1] बाद में ऋभु का अर्थ 'वायु देवता' हो गया। कालान्तर में, उत्तर वैदिक काल में, तीन शिल्पकारों के लिये यह सामूहिक शब्द बन गया। ये शिल्पकार 'ऋभवः' नाम से अभिहित हैं और इनकी क्षमता और तप के कारण उनको देवों की श्रेणी प्राप्त है।[2][3] ये 'अर्ध देवता' कहे जाने वाले सुधन्वा के तीन पुत्र ऋभु, वाज और विभ्वन् (या विभु) हैं जिनका बोध ज्येष्ठ ऋभु के नाम से होता है और सम्मिलित रूप से इन्हें 'ऋभवः' (ऋभु का बहुवचन) कहा जाता है। ऋभु का शाब्दिक अर्थ है- बुद्धिमान, कौशलपूर्ण, शोधकर्ता, नवाचारी, शिल्पी, रथकार आदि है।

शं नो ऋभवः सुकृतः सुहस्ताः
( उत्तम साधनों वाले चतुर शिल्पीजन ऋभुगण हमारे लिये सुखकारी हों।)

कुछ वैदिक साहित्यों में ऋभुओं को शरण्यु (प्रातःकाल के प्रकाश के देवता) एव्ं इन्द्र का पुत्र कहा गया है। अन्य कथाओं, जैसे अथर्ववेद में, उन्हें सुधन्वन् (शाब्दिक अर्थ : अच्छे धनुष चलाने वाले) के पुत्र के रूप में अभिहित किया गया है। किन्तु सभी कथाओं में ये तीनों (ऋभवः) अपनी सर्जनात्मक क्षमता, नवाचार के लिये प्रसिद्ध हैं। वे रथ बनाते हैं, कामधेनु, नदी के मर्ग, इन्द्र और अन्य देवताओं के लिये अस्त्र-शस्त्र बनाते हैं।

बाद की पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि ऋभवों ने धरती पर मानव रूप में जन्म लिया और अपनी कला एवं शिल्प का धरती पर प्रसार किया। वे अत्यन्त सरल एवं दयालु हैं। इससे कुछ देवता रुष्ट हो गये और उन्होने ऋभवों को पुनः स्वर्ग में लेना स्वीकार नहीं किया। किन्तु अन्य देवताओं ने इसमें हस्तक्षेप किया और ऋभवों को अमर बना दिया। ऋभवों को ऋषि, नक्षत्र, या सूर्य की किरणों के रूप में माना गया है।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. [ Charles Russell Coulter; Patricia Turner (2013). "Ribhus". Encyclopedia of Ancient Deities. Routledge. p. 918. ISBN 978-1-135-96397-2. ]
  2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; CoulterTurner2013p918 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  3. HH Wilson (1866). Rig-Veda-Sanhita, The First Ashtaka or Book (2nd संस्करण). London: Trubner & Co. पपृ॰ 46–48 with footnotes, 284–285.

इन्हें भी देखें संपादित करें