एकजुट नादिरा बब्बर द्वारा संचालित नाट्य संस्था है। सन १९७१ में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से पास होकर निकली, स्वर्ण पदक प्राप्त नादिरा ने १९८० में मुंबई में अपना थिएटर ग्रुप एकजुट तैयार किया। वे कहती हैं, एकजुट हुए बिना रंगमंच को निभाना आसान नहीं है इसलिए मैंने अपने ग्रुप का नाम एकजुट रखा। यहूदी की लड़की से अपना सफर शुरू करने वाली एकजुट थिएटर ग्रुप की संस्थापक नादिरा अभी तक संध्या छाया, लुक बैक इन एंगर, बल्लभपुर की रूपकथा, बात लात की हालात की, भ्रम के भूत और बेगम जान सहित कितने ही नाटकों का मंचन कर चुकी हैं। इसके अलावा दयाशंकर की डायरी, शक्कुबाई, सुमन और साना, जी जैसी आपकी मर्जी सहित कितने ही नाटक उन्होंने खुद लिखे हैं। एकजुट के अंतर्गत ७०-८० नाटकों का मंचन कर चुकीं नादिरा के लिए रंगमंच सबसे अजीज दोस्त है। वे मानती हैं कि एक रंगकर्मी के लिए जरूरी है कि वह ऐसे नाटकों का मंचन करे जिससे दर्शकों का मनोरंजन हो। साथ ही घर जाकर उन्हें कुछ सोचने को भी मिले।[1]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "नादिरा बब्बर की नई प्रस्तुति १८५७ : एक सफरनामा" (एचटीएमएल). याहू जागरण. अभिगमन तिथि २५ दिसंबर २००८. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]