एकियूरा (Echiura ; एकवचन : एकियूरस) या 'सर्पपुच्छ' समुद्री जन्तुओं का एक छोटा समूह है। इस जन्तु-समूह को पहले एनेलिडा संघ के अन्तर्गत माना जाता था किन्तु अब इन्हें एक अलग संघ के रूप में मान्यता प्राप्त है। तथापि डीएनए के जातिवृत्‍तीय (phylogenetic) विश्लेषण से यही निष्कर्ष निकलता है कि इन्हें एनेलिडा के अन्तर्गत ही रखा जाना चाहिए।

कोरिया के बाजार में एकियूरा

एकियूरा सामान्यत: केवल समुद्र में रहते हैं और अधिकतर उष्णकटिबंधी (tropical) और उपोष्णकटिबंधी (subtropical) प्रदेश में समुद्रतल पर चट्टानों के सुराख में और पत्थरों के बीच पतली फाँक में छिपे रहते हैं। एकियूरस बालू या कीचड़ में दो मुँह वाली नलियों का निर्माण करता है और उसी में रहता है। सर्पपुच्छों की आदत है कि ये अपना निवासस्थान बारंबार बदलते रहते हैं।

शरीर रचना

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इस समूह के जंतु कृमि के रूप के होते हैं। सर्पपुच्छों में एक विशिष्ट मुखपूर्वी पालि (preoral lobe) होती है, परंतु खंडीभवन (segmentation) के केवल चार शेष चिह्न रहते हैं। इनका शरीर रंगीन, थैलीनुमा या बेलनाकार होता है। शरीर के अग्रिम मुखपूर्वी भाग में एक अत्यधिक संकुंचनशील शुंड (proboscis) होता है, जो आसानी से खंडयुक्त हो जाता है। शुंड के अधर (ventral) भाग में एक रोमाभ खाँच (ciliated groove) होती है, जिसके पिछले भाग में उस स्थान पर जहाँ से शुंड देह से निकलता है, मुखद्वार होता है। बोनेलिया (Bonellia) में यह शुंड लंबा होता है और छोर पर दो फाँकों में बँटा होता है। एकियूस (Echiurus) में शुंड छोटा और लटकता हुआ होता है। सामान्यत: एक जोड़ा ऐंठे हुए सांकुश शूक अधर भाग में मुँह के थोड़ा पीछे स्थित होते हैं। एकियूरस में एक या दो पंक्ति सांकुश शूक (hooked setae) देह के पश्च (posterier) भाग में भी होते हैं। इन्हें गुदा शूक (Analsetae) कहते हैं।

देहभित्ति की मांसपेशियाँ एक पत्तर के समान होती हैं, या कई पूलों (bundles) में संगृहीत रहती हैं। त्वचा पर अनेक छोटे छोटे पैपिला (papillae) होते हैं। देह गुहा के पश्च छोर में दो विशिष्ट रचनाएँ होती हैं, जिन्हें गुदा आशय (anal vesicles) कहते हैं। गुदा आशय लंबी नलियों के आकार के होते हैं और कई शाखाओं में विभक्त रहते हैं। ये गुदा आशय देहगुहा में फैले रहते हैं और उत्सर्जन अंगों का काम करते हैं। गुदा आशय की भित्ति में अनेक पक्षाभिकामय छिद्र होते हैं, जो देहगुहा में खुलते हैं। इन्हें परिमित वृक्कक (nephridia) माना जाता है।

देहगुहा में कोई विशेष आंत्र योजनी (mesentery) नहीं होती, परंतु देहभित्ति के प्रत्येक भाग से ऊतक सूत्र (stands of tissue) देहगुहा में एक तरफ से दूसरी तरफ फैले रहते हैं और आहार नली की भित्ति से जुड़े रहते हैं। देहगुहा विस्तीर्ण होती है और इसमें तरल होता है, जिसमें बहुत से कण होते हैं। ऐसा समझा जाता है कि इन कणों में हीमोग्लोबिन होता है।

सर्पपुच्छों की आहारनली एक लंबी ऐंठी हुई नली की तरह होती है और कई पृथक् भागों में विभाजित रहती है। एक सहायक आँत (accessory intestine) या साइफन भी होता है। सहायक आँत आहारनली के अग्रभाग (anterior) से निकलती है और आंत्र के पश्चभाग में खुलती है। मलाशय की भीतरी उपकला (epithelium) में अनेक एककोशिक ग्रंथियाँ होती हैं। दोनों गुहा आशय मलाशय के दोनों तरफ खुलते हैं। गुदा देह के अग्रिम भाग में होते है।

संवहन तंत्र (vascular system) में एक पृष्ठवाहिका (dorsal vessel) आहार नली के अग्र भाग में होती है और एक अधर अधितंत्रिकीय वाहिका (ventral supra-neural vessel) होती है। इन दोनों वाहिकाओं में अग्र भाग और पिछले भाग में संबंध रहता है।

एकियूरस में लिंग पृथक् होते हैं। नर और मादा बाहर से समरूप होते हैं। बोनेलिया में नर और मादा का बाह्य स्वरूप बहुत भिन्न होता है। बोनेलिया में नर बहुत छोटे होते हैं और ये मादा के शरीर पर, या शरीर के अंदर, परजीवी की तरह रहते हैं। नर के शुक्राणु (spermatozoa), देहगुहा की उपकल के अस्तर (epithelial lining) के उस भाग में जो अधर अधितंत्रिकीय वाहिका के ऊपर रहता है, उत्पन्न या उद्भूत होते हैं। ये युग्मक (gametes) देहगुहा में स्फुटित होते हैं, जहाँ वे परिपक्व होते हैं और अग्र वृक्कक के रास्ते बाहर निकलते हैं। अग्र वृक्कक शरीर के अगले भाग में सूराख द्वारा बाहर खुलते हैं। नर की आहार नली बाहर नहीं खुलती। बोनेलिया का रंग हरा होता है। यह हरा रंग एक वर्णक के कारण होता है, जिसको बोनेलिन कहते हैं। बोनेलिन क्लोरोफिल से बहुत भिन्न होता है।

सर्पपुच्छों की केंद्रीय तंत्रिका में एक अधर तंत्रिका रज्जु (ventral nerve cord) होती है, जो पूर्णरूप से देहभित्ति के भीतर होती है। अग्र भाग में यह रज्जु दो भागों में विभाजित हो जाती है और दोनों भाग ग्रासनली (oesophagus) को घेरकर शुंड के अग्र भाग में जुड़ जाते हैं। तंत्रिकाओं की विशेषता यह होती है कि इनमें गुच्छिका शोथ (ganglionic swellings) नहीं होते हैं और तंत्रिका कोशिकाएँ (nerve cells) पूरे तंत्र में एक रूप से वितरित रहती हैं। रज्जु के अधर भाग में एक पतली नली होती है। यह नली रज्जु के पश्च भाग और अधिग्रसिका गुच्छिका (supra oesophageal ganglion) में नहीं होती है। सर्पपुच्छ में कोई विशेष ज्ञानेंद्रिय नहीं होती।

वर्गीकरण

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एकियूरोइडिया और साइपनकुलोइडिया में कुछ समानतओं के कारण दोनों समूहों को मिलाकर एक वर्ग (class), फ़ाइरिया (Gephyrea), बना दिया गया था। इन दोनों समूहों की समानताएँ, विशेष रूप से वृक्ककों की रचना, देहगुहा के विस्तीर्ण लक्षण और अधर तंत्रिका रज्जु के अकेलेपन में, हैं। परंतु ऊपर दी हुई समानताओं के बावजूद कई गहरी असमानताएँ भी हैं, जैसे साइपनकुलोइडिया में मुखपूर्वी पालि तथा गुदा आशय और सांकुश शूक का पूर्ण अभाव। एकिपूरोइडिया और साइपनकुलोइडिया में डिंभ और प्रौढ़ दोनों में खंडीभवन का पूर्ण अभाव होता है। इन कारणों से दोनों वर्गों को एक वर्ग में रखना उचित नहीं है और बहुत से लेखकों ने साइपनकुलोइडिया को एक अलग संघ माना है।

सर्पपुच्छ वर्ग तीन गणों में विभाजित हैं :

  • (१) एकियूरोइनिया (Echiuroinea),
  • (२) ज़ेनोप्नूस्त (Xenopneusta) तथा
  • (३) हिटरोमायोटा (Heteromyota)।

एकियूरोइनिया में २३ वंश (genus) और ९७ जातियाँ हैं। ज़ेनोप्नूस्त में चार जातियाँ हैं और हिंटरामायोटा में केवल एक जाति है।