एन. गोपालस्वामी अयंगर
नरसिंह अयंगर गोपालस्वामी अयंगर (31 मार्च 1882 – 10 फरवरी 1953), संविधान सभा की निर्मात्री समिति के सदस्य, राज्य सभा के नेता, भारत की पहली मन्त्रिपरिषद में कैबिनेट मन्त्री थे।[1] सन १९३७ से १९४३ तक वे जम्मू कश्मीर के प्रधानमन्त्री थे। स्वतन्त्र भारत में पहले जब वे बिना विभाग के मन्त्री थे तब वे कश्मीर से सम्बन्धित मामले देखा करते थे। ये आयंगर ही थे जिन्होंने अनुच्छेद ३७० के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने का काम किया था।[2]
एन. गोपालस्वामी अयंगर | |
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रेलवे तथा यातायात मन्त्री
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पद बहाल 22 सितम्बर 1948 – 13 मई 1952 | |
राजा | किंग जॉर्ज षष्ट (1936-1950) |
राष्ट्रपति | राजेन्द्र प्रसाद |
प्रधानमंत्री | जवाहरलाल नेहरू |
उत्तरा धिकारी | लाल बहादुर शास्त्री |
जम्मू और कश्मीर के प्रधानमन्त्री
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पद बहाल 1937–1943 | |
राजा | हरि सिंह |
उत्तरा धिकारी | कैलाश नाथ हस्कर |
जन्म | 31 मार्च 1882 तंजावुर जिला, मद्रास प्रेसिडेन्सी |
मृत्यु | 10 फ़रवरी 1953 मद्रास (अब चेन्नै) | (उम्र 70 वर्ष)
जन्म का नाम | नरसिंह अयंगर गोपालस्वामी अयंगर |
जीवन परिचय
संपादित करेंगोपालस्वामी आयंगर का जन्म दक्षिण भारत में मद्रास (अब तमिलनाडु) के तंजावुर जिले में 31 मार्च 1882 को हुआ था। उन्होंने वेस्टले स्कूल तथा प्रेसिडेंसी कॉलेज और मद्रास लॉ कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। उनकी पत्नी का नाम कोमलम था। उनके बेटे जी पार्थसारथी एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
1904 में, थोड़े समय के लिए, उन्होंने चेन्नई के पचयप्पा कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में भी काम किया। 1905 में मद्रास सिविल सेवा में भर्ती हुए। सन् 1919 तक वे डिप्टी कलेक्टर रहे । 1920 से जिला कलेक्टर के रूप में काम किया। 1932 में उन्हें लोक सेवा विभाग के सचिव के पद पर पदोन्नति मिली। 1937 में वे राजस्व बोर्ड के सदस्य बने।
सन् 1937 में ही आयंगर को जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री बना दिया गया। तब जम्मू-कश्मीर के अपने प्रधानमंत्री और सदर-ए-रियासत होते थे। सदर-ए-रियासत की भूमिका राज्यपाल के समकक्ष होती थी। लेकिन प्रधानमंत्री की शक्तियाँ और उत्तरदायित्व समय के अनुसार बदलते रहते थे। गोपालस्वामी आयंगर के कार्यकाल के दौरान उनके पास सीमित शक्तियां ही थीं। अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद भी उन्होंने कश्मीर के लिए काम करना जारी रखा।
२६ अक्टूबर १९४७ को जब कश्मीर का भारत में विलय हुआ तब जवाहरलाल नेहरू कश्मीर मामले को देख रहे थे। परन्तु वे सीधे तौर पर खुद इससे नहीं जुड़े थे बल्कि इसकी जिम्मेदारी आयंगर को ही सौंप दी थी जो उस समय बिना विभाग के मंत्री थे।
जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार किए जाने के बाद गोपालस्वामी आयंगर के ऊपर उस मसौदे को संसद में पारित कराने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। जब वल्लभ भाई पटेल ने इस पर सवाल उठाया तो नेहरू ने जवाब दिया, "गोपालस्वामी आयंगर को विशेष रूप से कश्मीर मसले पर मदद करने के लिए कहा गया है क्योंकि वे कश्मीर पर बहुत गहरा ज्ञान रखते हैं और उनके पास वहां का अनुभव है। नेहरू ने यह भी कहा कि अयांगर को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए। नेहरू ने कहा था- "मुझे यह नहीं समझ आता कि इसमें आपका (गृह) मन्त्रालय कहां आता है, सिवाए इसके कि आपके मंत्रालय को इस बारे में सूचित किया जाए। यह सब मेरे निर्देश पर किया गया है और मैं अपने उन कामों को रोकने पर विचार नहीं करता जिसे मैं अपनी ज़िम्मेदारी मानता हूं। आयंगर मेरे सहकर्मी हैं।"
इसके बाद, आयंगर ने कश्मीर विवाद पर संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को बताया कि भारतीय सेना राज्य के लोगों की सुरक्षा के लिए वहां गई है और एक बार घाटी में शांति स्थापित हो जाए तो वहां जनमत संग्रह कराया जाएगा। गोपालस्वामी आयंगर और संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रतिनिधि ज़फ़रुल्लाह ख़ान के बीच कश्मीर मुद्दे पर जुबानी जंग चली। गोपालस्वामी ने तर्क दिया कि "कबायली अपने-आप भारत में नहीं घुसे, उनके हाथों में जो हथियार थे वो पाकिस्तानी सेना के थे।"
बाद में गोपालस्वामी भारत के रेल और परिवहन मंत्री भी बने। 71 साल की आयु में फरवरी 1953 में चेन्नई में उनका निधन हो गया।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Archived copy". मूल से 2012-05-29 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-05-26.सीएस1 रखरखाव: Archived copy as title (link)
- ↑ "गोपालस्वामी आयंगर: वो जिसने अनुच्छेद ३७० के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिलाया". मूल से 13 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 अगस्त 2019.