एशिया के लिए जापानी मुनरो सिद्धांत

उत्तरी चीन और कोरिया में यूरोपीय शक्तियों के विस्तार को रोकने के एशिया के लिए जापानी मुनरो सिद्धांत पर विचार करते हुए, अमेरिकी राष्ट्रपति थिओडोर रूजवेल्ट ने 1905 में जापानी आगंतुकों के साथ व्हाइट हाउस और अपने ओएस्टर बे, लॉन्ग आईलैंड एस्टेट में अनौपचारिक रूप से बात की। उन्होंने सुझाव दिया कि जिस प्रकार मुनरो सिद्धांत के लिए "रूजवेल्ट कोरोलरी" ने पश्चिमी गोलार्ध में यूरोपियों को बाहर रखा था, ठीक वैसे ही आने वाले समय में कभी जापान को भी एशिया के लिए एक जापानी मुनरो सिद्धांत अपनाना चाहिए, ताकि यूरोपीय उपनिवेशवादियों को दूर रखा जा सके।[1][2]


ऐसा करने के पीछे वजह यह हो सकती है कि अमेरिका और जापान दोनों ही उस वक़्त उभरती हुई शक्तियाँ थे, किंतु वैश्विक राजनीति पर यूरोप का वर्चस्व क़ायम था। इसे कम करने में जापान और अमेरिका एक-दूसरे के सहायक बन सकते थे।

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नोट्स और संदर्भ संपादित करें

  1. Smith, Gaddis (1995). The Last Years of the Monroe Doctrine, 1945-1993. Farrar, Straus and Giroux. पृ॰ 35. मूल से 27 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अगस्त 2019.
  2. Saaler, Sven; Koschmann, J. Victor (2007). Pan-Asianism in Modern Japanese History: Colonialism, Regionalism and Borders. Routledge. पृ॰ 26. मूल से 27 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अगस्त 2019.