एस्पिरिन (यूएसएएन)(USAN), जिसे एसिटाइलसैलिसाइलिक एसिड (उच्चारित/əˌsɛtəlˌsælɨˈsɪlɨk/ ə-SET-əl-sal-i-SIL-ik, संक्षिप्त में एएसए), भी कहते हैं, एक सैलिसिलेट औषधि है, जो अकसर हल्के दर्दों से छुटकारा पाने के लिये दर्दनिवारक के रूप में, ज्वर कम करने के लिये ज्वरशामक के रूप में और शोथ-निरोधी दवा के रूप में प्रयोग में लाई जाती है।

एस्पिरिन
सिस्टमैटिक (आईयूपीएसी) नाम
2-acetoxybenzoic acid
परिचायक
CAS संख्या 50-78-2
en:PubChem 2244
en:DrugBank DB00945
en:ChemSpider 2157
रासायनिक आंकड़े
सूत्र C9H8O4 
आण्विक भार 180.157 g/mol
SMILES eMolecules & PubChem
समानार्थी 2-acetyloxybenzoic acid
acetylsalicylate
acetylsalicylic acid
O-acetylsalicylic acid
भौतिक आंकड़े
घनत्व 1.40 g/cm³
गलनांक 135 °C (275 °F)
क्वथनांक 140 °C (284 °F) (decomposes)
जल में घुलनशीलता 3 मि.ग्रा/मि.ली (२० °से.)
फ़ार्मओकोकाइनेटिक आंकड़े
जैव उपलब्धता Rapidly and completely absorbed
प्रोटीन बंधन 99.6%
उपापचय Hepatic
अर्धायु 300–650 mg dose: 3.1–3.2 h
1 g dose: 5 h
2 g dose: 9 h
उत्सर्जन Renal

एस्पिरिन का एक प्लेटलेट-विरोधी प्रभाव भी होता है, जो थ्राम्बाक्सेन उत्पादन के अवरोध से उत्पन्न होता है, जो सामान्य परिस्थितियों में प्लेटलेटों के अणुओं को आपस में बांधकर रक्त नलिकाओं के भीतर की भित्तियों पर हुई चोट पर एक चकत्ते का निर्माण करता है। चूंकि प्लेटलेटों का चकत्ता काफी बड़ा होकर रक्त-प्रवाह में उस स्थान पर या आगे कहीं भी रूकावट पैदा कर सकता है, इसलिये रक्त के थक्कों के विकास के अधिक जोखम वाले लोगों में एस्पिरिन का प्रयोग लंबे समय के लिये कम मात्रा में हृदयाघात, मस्तिष्क-आघात और रक्त के थक्कों की रोकथाम के लिये भी किया जाता है।[1] यह भी पाया गया है कि हृदयाघात के तुरंत बाद थोड़ी मात्रा में एस्पिरिन देकर एक और हृदयाघात या हृदय के ऊतक की मृत्यु का जोखम कम किया जा सकता है।[2][3]

एस्पिरिन के, विशेषकर अधिक मात्रा में लेने पर, मुख्य अवांछित दुष्प्रभावों में आमाशय व आंतों में छाले, आमाशय में रक्तस्राव और कानों में आवाज आना शामिल हैं। बच्चों और किशोरों में रेइज़ सिंड्रोम के जोखम के कारण, फ्लू जैसे लक्षणों या छोटी चेचक (चिकनपॉक्स) या अन्य वाइरस रोगों के लक्षणों के नियंत्रण के लिये अब एस्पिरिन का इस्तेमाल नहीं किया जाता.[4]

एस्पिरिन नॉनस्टीरॉयडल एंटीइनफ्लेमेटरी ड्रग्स (एनएसएआईडी) नामक वर्ग का सबसे पहला सदस्य है, जिनमें से सभी सैलिसिलेट नहीं होते, हालांकि सभी के एक समान प्रभाव होते हैं और अधिकांशतः एंजाइम साइक्लोआक्सीजनेज़ का अवरोध करते हैं। आज, एस्पिरिन दुनिया की सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली औषधियों में से एक है, जिसकी अनुमानित 40,000 टन मात्रा प्रतिवर्ष खाई जाती है।[5] जिन देशों में एस्पिरिन बेयर का रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क है, वहां उसका जेनेरिक नाम एसिटाइल सेलेसिलिक एसिड (एएसए) है।[6][7]

इतिहास संपादित करें

एक फ्रेंच केमिस्ट, चार्ल्स फ्रेड्रिक जेरहार्ट ने पहली बार 1853 में एसिटाइलसेलिसिलिक एसिड बनाई। विभिन्न एसिड एनहाइड्रों के संश्लेषण और गुणों पर उसके कार्य के दौरान उसने एसिटाइल क्लोराइड को सैलिसिलिक एसिड के सोडियम लवण (सोडियम सैलिसिलेट) के साथ मिश्रित किया। एक जोरदार प्रतिक्रिया हुई और पिघला हुआ यौगिक जल्दी ही जम कर ठोस में परिणीत हो गया।[8] चूंकि उन दिनों में कोई रचनात्मक सिद्धांत नहीं हुआ करता था, इसलिये जेरहार्ट ने उस यौगिक का नाम सैलिसिलिक-एसिटिक एनहाइड्राइड रखा। (wasserfreie Salicylsäure-Essigsäure). एस्पिरिन (सैलिसिलिक-एसिटिक एनहाइड्राइड) का यह उत्पादन जेरहार्ट द्वारा एनहाइड्रों पर उसके पेपर के लिये की गई अनेक प्रतिक्रियाओं में से एक था और उसने इसके आगे और कुछ नहीं किया।

 
एस्पिरिन, हेरोइन, ल्य्सटोल, सलोफेन के लिए विज्ञापन

छह वर्षो के बाद, 1859 में वॉन गिल्म ने सैलिसिलिक एसिड और एसिटाल क्लोराइड की प्रतिक्रिया द्वारा विश्लेषणात्मक रूप से शुद्ध एसिटाइलसैलिसिलिक एसिड (जिसे उसने एसिलाइटेड सैलिसिलिक एसिड का नाम दिया) प्राप्त की। [9] 1869 में, श्रौयडर, प्रिंज़हार्न और क्रौट ने जेरहार्ट (सोडियम सैलिसिलेट से) और वॉन गिल्म (सैलिसिलिक एसिड से), दोनों के संश्लेषणों को दोबारा किया और बताया कि इन दोनों प्रतिक्रियाओँ से एक ही यौगिक –एसिटाइल सैलिसिलिक एसिड प्राप्त होता है। उन्होंने पहली बार इसकी सही रचना–फिनॉलिक आक्सीजन से जुड़े एसिटाइल समूह–के रूप में दर्शाई.[10]

1897 में, औषधि और डाई की फर्म बेयर के वैज्ञानिकों ने एसिटाइल सैलिसिलिक एसिड के उन दिनों आम सैलिसिलेट दवाईयों के कम-विक्षोभक प्रतिस्थापन के रूप में जांच शुरू की। 1899 तक बेयर ने इसका नाम एस्पिरिन रख दिया था और दुनिया भर में विक्रय करने लगी थी।[11] एस्पिरिन नाम एसिटाइल और स्पिरसौर–सैलिसिलिक एसिड का एक पुराना (जर्मन) नाम – से प्राप्त किया गया है।[12] एस्पिरिन की लोकप्रियता बीसवीं शताब्दी में 1918 के स्पैनिश फ्लू की विश्वमहामारी में इसके संभावित प्रभाव के कारण बढ़ गई। लेकिन हाल में किये गए शोध से लगता है कि 1918 के फ्लू में अधिक मृत्यु दर कुछ हद तक एस्पिरिन के कारण थी, क्यौंकि उस समय प्रयुक्त एस्पिरिन की मात्रा विषाक्तता, फेफड़ों में द्रव और कुछ मामलों में द्वितीयक बैक्टीरिया संक्रमण उत्पन्न कर सकती है और घातक हो सकती है।[13] एस्पिरिन से हुए लाभ ने तीव्र स्पर्धा उत्पन्न कर दी और विशेषकर 1917 में बेयर के अमरीकी पेटेंट के खत्म होने के बाद, अनेकों ब्रांड और उत्पाद बाजार में आ गए।[14][15]

1956 में पैरासिटामाल और 1969 में इबुप्रोफेंन के बाजार में आने के बाद एस्पिरिन की लोकप्रियता घटने लगी। [16] 1960 और 1970 के दशकों में जॉन वेन और अन्य ने एस्पिरिन के प्रभावों की आधारभूत प्रक्रिया की खोज की, जबकि नैदानिक खोजों और अन्य अध्ययनों से एस्पिरिन के थक्का-विरोधी प्रभाव का पता चला जिससे थक्के वाले रोगों के जोखम को कम किया जा सकता है।[17] बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में एस्पिरिन की बिक्री हृदयाघात और मस्तिष्काघात की रोकथाम के लिये उसके व्यापक प्रयोग के कारण फिर से काफी बढ़ गई।[18]

अधिकांश देशों में ट्रेडमार्क संपादित करें

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी के आत्मसमर्पण के बाद 1919 की वर्सेल्स संधि में दिये गए युद्ध के पुनर्वास के भाग के अनुसार, फ्रांस, रूस, युनाइटेड किंगडम और युनाइटेड स्टेट्स में रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क के रूप में एस्पिरिन (हीरोइन के साथ) की प्रतिष्ठा का अंत हो गया, जहां यह जेनेरिक नाम रह गया।[19][20][21] आजकल एस्पिरिन आस्ट्रेलिया, फ्रांस, भारत, आयरलैंड, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, फिलीपीन, दक्षीण अफ्रीका, युनाइटेड किंगडम और युनाइटेड स्टेट्स में जेनेरिक शब्द है।[22] कैपिटल ए के साथ एस्पिरिन जर्मनी, कनाडा, मेक्सिको और 80 अन्य देशों में बेयर का रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क है। सभी बाजारों में समान रसायनिक फार्मूले का प्रयोग किया जाता है लेकिन प्रत्येक में अपने पैकिंग और भौतिक पहलू हैं।[23][24][25]

औषधिक उपयोग संपादित करें

सिरदर्द संपादित करें

एस्पिरिन माइग्रेन के इलाज के लिये प्रयुक्त मुख्य औषधियों में से एक है, जो 50-60% मामलों में आराम पहुंचाती है।[26]

 
1923 विज्ञापन

यह नई ट्रिप्टान दवा सुमाट्रिप्टान (आइमिट्रेक्स)[27] और अन्य दर्दनिवारकों जैसे पैरासिटामाल (एसिटअमाइनोफेन)[28] या इबुप्रोफेन जितनी ही असरकारक है।[29] एस्पिरिन, पैरासिटामाल (एसिटअमाइनोफेन) और कैफीन (एक्सेड्रिन) का संयोग और भी अधिक प्रभावशाली है। माइग्रेन सिरदर्द के लिये यह फार्मूला अपने तीनों अंशों को अलग-अलग लेने से बेहतर,[28] और इबुप्रोफेन[30] व सुमाट्रिप्टान से भी बेहतर काम करता है। माइग्रेन के अन्य उपचारों की तरह ही एस्पिरिन भी सिरदर्द के पहले लक्षणों के शुरू होते ही ले लेनी की सलाह दी जाती है और तुलनात्मक नैदानिक अध्ययनों में भी ये दवाईयां इसी तरह दी गई थीं।[31]

प्रासंगिक तनाव सिरदर्दों में एस्पिरिन 60-75% रोगियों का दर्द दूर करती है।[32][33] इस दृष्टि से, आमाशय व आंतों में दुष्प्रभावों की अधिकता के सिवा, यह पैरासिटामाल के बराबर है।[33] तुलनात्मक नैदानिक अध्ययनों में पाया गया कि मेटामिजोल और इबुप्रोफेन एस्पिरिन की बनिस्बत अधिक तेजी से दर्द से राहत ला सकते हैं, लेकिन यह अंतर करीब 2 घंटों बाद नगण्य हो जाता है। एस्पिरिन में 60-130 मिग्रा कैफीन मिला देने पर सिरदर्द में दर्दनिवारक असर बढ़ जाता है।[32][34] एस्पिरिन, पैरासिटामाल (एसिटअमाइनोफेन) और कैफीन (एक्सेड्रिन) का संयोग और भी असरकारी होता है लेकिन अधिक पेट की तकलीफ, घबराहट और चक्कर आते हैं।[35]

दर्द संपादित करें

सामान्यतः एस्पिरिन हल्के, स्पंदनयुक्त दर्द में अच्छा काम करती है। यह अधिकांश मांसपेशियों की ऐंठनों, पेट फूलने, अठरीय फैलाव और त्वचा के क्षोभ से हुए दर्दों में असरकारी नहीं होती.[36] सबसे अधिक अध्ययन किया गया दर्द का उदाहरण शल्यक्रिया के बाद का दर्द जैसे दांत निकालने के बाद का दर्द है, जिसके लिये एस्पिरिन की सबसे अधिक अनुमतिप्राप्त मात्रा (1 ग्राम) 1 ग्राम पैरासिटामाल (एसिटअमाइनोफेन), 60 मिग्रा कोडीन और 5 मिग्रा आक्सीकोडोन के बराबर होती है। अकेले एस्पिरिन के मुकाबले एस्पिरिन और कैफीन का संयोग दर्द से अधिक राहत पहुंचाता है। एफरवेसेंट एस्पिरिन गोलियों वाली एस्पिरिन से अधिक तेजी से दर्द कम करती है। (15-30 मि.के मुकाबले 45-60 मि.)[37]

फिर भी, शल्यक्रिया के बाद प्रयुक्त दर्दनिवारक के रूप में एस्पिरिन इबुप्रोफेन से कम असरदार है। एस्पिरिन के कारण इबुप्रोफेन की अपेक्षा अधिक आमाशय व आंतों में विषाक्तता होती है। एस्पिरिन की अधिकतम मात्रा (1 ग्राम) इबुप्रोफेन की मध्यम मात्रा (400मिग्रा) से कम दर्दनिवारक क्षमता रखती है और यह राहत उससे कम देर तक बनी रहती है।[37] एस्पिरिन और कोडीन के संयोग में अकेले एस्पिरिन से जरा सी अधिक दर्दनिवारण की क्षमता होती है, लेकिन नैदानिक रूप से यह अंतर अधिक मायने नहीं रखता.[38] ऐसा लगता है कि इबुप्रोफेन कम से कम इस संयोग के बराबर, या संभवतः अधिक असरदार होता है।[39]

माहवारी के दर्द के लिये किये गए नैदानिक अध्ययनों के एक विश्लेषण के अनुसार एस्पिरिन प्लेसिबो की अपेक्षा अधिक लेकिन इबुप्रोफेन या नैप्राक्सेन की अपेक्षा कम प्रभावकारी पाया गया, हालांकि इन अध्ययनों में एस्पिरिन की अधिकतम मात्राओं का प्रयोग कभी नहीं किया गया। लेखकों ने पाया कि इबुप्रोफेन में सबसे अच्छा जोखम-लाभ अनुपात है।[40]

साइकिल चलाने की कसरत के समय एस्पिरिन से दर्द में आराम नहीं आया,[41] जबकि आश्चर्यजनक रूप से कैफीन बहुत असरदार थी।[42][43] इसी तरह, कसरत के बाद पेशियों में होने वाले दर्द में एस्पिरिन, कोडीन या पैरासिटामाल (एसिटअमाइनोफेन) प्लेसिबो से बेहतर नहीं थीं।[44]

हृदयाघातों और मस्तिष्काघातों की रोकथाम संपादित करें

ह्रदवाहिनी से संबद्ध घटनाओं की रोकथाम के लिये एस्पिरिन के दो स्पष्ट उपयोग हैं – प्राथमिक रोकथाम और द्वितीयक रोकथाम. प्राथमिक रोकथाम का संबंध उन लोगों में मस्तिष्काघात और हृदयाघात कम करने से है जिनमें हृदय या नलिकाओं की समस्याओं का कभी निदान न हुआ हो। द्वितीयक रोकथाम पहले से ह्रदवाहिनी से संबंधित रोगों से ग्रस्त लोगों से संबंध रखती है।[45]

मस्तिष्काघातों और हृदयाघातों की द्वितीयक रोकथाम के लिये कम मात्रा में एस्पिरिन की सिफारिश की जाती है। ह्रदवाहिनी के रोगों से निदान हुए पुरूषों और महिलाओं दोनों में एस्पिरिन हृदयाघात और रक्त प्रवाह के अवरूद्ध होने से होने वाले मस्तिषकाघात की संभावना 20 प्रतिशत तक कम कर देती है। इसका अर्थ ह्रदवाहिनी रोगों से पहले से ग्रस्त लोगों में ऐसी घटनाएं होने की परम दर में 8.2% से 6.7% प्रतिवर्ष की कमी आना है। हालांकि एस्पिरिन रक्तस्राव से होने वाले मस्तिषकाघात और अन्य बड़े रक्तस्रावों के जोखम को दोगुना कर देती है, ऐसी घटनाएं बुत कम होती हैं और एस्पिरिन के प्रभाव कुल मिला कर सकारात्मक होते हैं। इस तरह द्वितीयक रोकथाम अध्ययनों में एस्पिरिन द्वारा मृत्युदर में 10 प्रतिशत तक कमी लाई गई।[45]

ऐसे लोगों में जो ह्रदवाहिनीरोगों से ग्रस्त नहीं हैं, एस्पिरिन के लाभ स्पष्ट नहीं हैं। प्राथमिक रोकथाम के प्रयोगों में एस्पिरिन ने हृदयाघात और कम रक्तप्रवाह से उत्पन्न मस्तिष्काघात की कुल घटनाओं में 10 प्रतिशत की कमी लाई। लेकिन, चूंकि ये घटनाएं विरल हैं, उनकी दर में परम कमी कम थी-0.57% से 0.51% प्रतिवर्ष. इसके अलावा, रक्तस्राविक मस्तिष्काघात और आमाशय व आंतों के रक्तस्राव के जोखम एस्पिरिन के फायदों को लगभग पूरी तरह से नगण्य वना देते हैं। इस तरह प्राथमिक रोकथाम प्रयोगों में एस्पिरिन से कुल मृत्युदर में कोई कमी नहीं आई.[45] इन विषयों पर वैज्ञानिक समुदाय में लगातार विमर्श और बहस जारी है।[46]

प्राथमिक रोकथाम के लिये एस्पिरिन के प्रयोग के बारे में विशेषज्ञ संस्थाओं की राय में भिन्नता है। यूएस गवर्नमेंट प्रिवेंटिव सर्विसेज टास्क फोर्स अनुमानित भविष्य के जोखम और रोगी की पसंद के आधार पर हर मामले में विशिष्ट चुनाव करने की सिफारिश की है।[47][48] दूसरी ओर, एंटीथ्राम्बोटिक ट्रायलिस्ट कोलाबोरेशन ने तर्क प्रस्तुत किया है कि ऐसी सिफारिशें अनुचित हैं क्यौंकि एस्पिरिन के प्राथमिक रोकथाम के प्रयोगों में आपेक्षिक जोखम की कमी अधिक और कम जोखम वाले लोगों में समान थी और रक्तचाप पर निर्भर नहीं थी। कोलाबोरेशन ने वैकल्पिक और अधिक असरकारी रोकथामक दवा के रूप में स्टैटिनों के प्रयोग की सलाह दी। [45]

करोनरी और कैरोटीड धमनियां, बाईपास और स्टेंट संपादित करें

करोनरी धमनियां हृदय को रक्त की आपूर्ति करती हैं। करोनरी धमनियों में स्टेंट लगाने के बाद 1 से 6 महीनों तक और करोनरी धमनी बाईपास ग्राफ्ट के बाद कई वर्षों तक एस्पिरिन लेने की सलाह दी जाती है।

कैरोटिड धमनियां मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति करती हैं। कैरोटिड धमनी के हल्के संकरेपन के रोगियों को एस्पिरिन से लाभ होता है। कैरोटिड एंडआर्टरेक्टमी या कैरोटिड धमनी स्टेंट के बाद एस्पिरिन की सिफारिश की जाती है।

निचले पैरों की रक्त नलिकाओं की शल्य क्रिया के बाद, जिसमें रक्त आपूर्ति सुधारने के लिये धमनियों में कृत्रिम ग्राफ्ट लगाए जाते हैं, ग्राफ्टों को खुला रखने के लिये एस्पिरिन का प्रयोग किया जाता है।

अन्य उपयोग संपादित करें

हालांकि आम सर्दी-जुकाम से होने वाले ज्वर और दर्दों के इलाज के लिये एस्पिरिन का प्रयोग 100 से भी अधिक वर्षों से किया जा रहा है, इसका असर वयस्कों पर किये गए नियंत्रित अध्ययनों में कुछ समय पहले ही निश्चित किया गया। औसत रूप से 1 ग्राम एस्पिरिन से मौखिक शारीरिक तापमान 3 घंटों बाद 37.6 °से. (99.7 °फ़ै) से 39.0 °से. (102.2 °फ़ै) हुआ। राहत 30 मिनट बाद शुरू हुई और 6 घंटों के बाद भी तापमान 101 से कम रहा। 37.8 °से. (100.0 °फ़ै) एस्पिरिन से दर्द, तकलीफ और सिरदर्द और जिन्हें गले मे दर्द था[49] उन्हें उसमें भी लाभ हुआ।[50] एस्पिरिन और पैरासिटामाल (एसिटअमाइनोफेन) में, सिवाय अधिक पसीना आने और पेट पर दुष्प्रभावों के किसी भी पहलू से फर्क नहीं था।[49]

एक्यूट रूमेटिक ज्वर का बुखार और जोड़ों का दर्द एस्पिरिन की बड़ी मात्रा देने पर बहुत अच्छी तरह से, अकसर तीन दिनों में ही, कम हो जाता है। यह उपचार 1-2 हफ्तों तक दिया जाता है और केवल 5% मामलों में यह छह महीनों से अधिक तक चालू रहता है। बुखार और दर्द के कम हो जाने के बाद एस्पिरिन के इलाज की जरूरत नहीं होती क्यौंकि यह हृदय की समस्याओं और रूमेटिक हृदय रोग की घटनाओं को कम नहीं करता है।[51] इसके अतिरिक्त, अस्पिरिन की अधिक मात्राओं से करीब 20% बच्चों,[52][53] जो रूमेटिक ज्वर के अधिकांश रोगी होते हैं, में यकृत में विषाक्तता उत्पन्न हो जाती है और उनमें रेइज़ सिंड्रोम होने का जोखम बढ़ जाता है।[51] नैप्राक्सेन को एस्पिरिन जितना ही असरदार पर कम विषाक्त पाया गया है, लेकिन सीमित नैदानिक अनुभव होने के कारण नैप्राक्सेन की सिफारिश दूसरी पंक्ति के उपचार के रूप में ही की गई है।[51][54]

रूमेटिक ज्वर के अलावा, बच्चों में कावासाकी रोग में एस्पिरिन का प्रयोग किया जाता है, हालांकि कुछ लेखकों ने इस प्रयोग पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया है।[55] युनाइटेड किंगडम में 16 से कम उम्र के बच्चों और किशोरों में एस्पिरिन की सलाह केवल कावीसाकी रोग और रक्त के थक्कों की रोकथाम के लिये की गई है।

एस्पिरिन का प्रयोग पेरिकार्डाइटिस, करोनरी धमनी रोग और एक्यूट हृदयाघात के उपचार के लिये भी किया जाता है।[56][57][58]

(प्रायोगिक) संपादित करें

सैद्धांतिक रूप से एस्पिरिन मधुमेह के रोगियों में मोतियाबिंद बनने से रोकता है, किंतु एक अध्ययन में इसे इस उद्देश्य के लिये नाकारा बताया गया है।[59] विभिन्न प्रकार के कैंसर की घटनाओं को कम करने में एस्पिरिन की भूमिका का भी बड़े पैमाने पर अध्ययन किया गया है। अनेक अध्ययनों में एस्पिरिन के प्रयोग से प्रॉस्टेट कैंसर में कोई कमी नहीं आई.[60][61] अग्न्याशय के कैंसर की घटनाओं को कम करने में इसका असर मिश्रित है, 2004 में प्रकाशित एक अध्ययन में स्त्रियों में अग्न्याशय के कैंसर में काफी वृद्धि पाई गई।[62] जबकि 2006 में प्रकाशित कई अध्ययनों के विश्लेषण में एस्पिरिन या अन्य एनएसएआईडीयों से इस रोग के जोखम के बढ़ने का कोई सबूत नहीं मिला। [63] यह दवा बड़ी आंत, फेफड़े और कदाचित ऊपरी आमाशयांत्र मार्ग सहित[64][65][66][66][67] विभिन्न कैंसरों के जोखम को कम करने में प्रभावशाली हो सकती है,[68][69] हालांकि ऊपरी आमाशयांत्र मार्ग के कैंसर की रोकथाम में इसके असर के कुछ सबूत पर्याप्त नहीं हैं।[70][70][71] एडीनोकार्सीनोमाओं पर इसके रोकथामक प्रभाव को इसके द्वारा उनमें उन्पन्न पीटीजीएस2 (काक्स-2) एंजाइमों के अवरोध के आधार पर समझा जा सकता है।[72]

जर्नल ऑफ चिकित्सकीय अध्ययन द्वारा 2009 में प्रकाशित एक लेख में पाया गया कि एस्पिरिन यकृत को जख्मी होने से बचा सकती है। येल युनिवर्सिटी और यनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के वैज्ञानिकों ने उनके प्रयोग में हेपेटोसाइट नामक यकृत की कोशिकाओं में एसिटअमाइनोफेन की बड़ी मात्राएं देकर जख्मी कर दिया। इससे यकृत में विषाक्तता उत्पन्न हो गई तथा हेपेटोसाइटों की मृत्यु हो गई, जिससे टीएलआर9 का उत्पादन बढ़ गया। टीएलआर की उत्पत्ति से प्रो-आइएल-1β और प्रो-आईएल-18 के साथ एक शोथकारक कैस्केड प्रारंभ हो गया। एस्पिरिन में हेपेटोसाइटों पर रक्षात्मक प्रभाव देखा गया क्यौंकि इसके कारण प्रोइनफ्लेमेटरी साइटोकाइनों का डाउनरेगुलेशन हुआ।[73]

जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसियेशन द्वारा 2009 में प्रकाशित एक अन्य रचना में यह पाया गया कि उन पुरूषों व स्त्रियों में जिन्होंने कोलोरेक्टल कैंसर के निदान के बाद नि. मित रूप से एस्पिरिन का सेवन किया, एस्पिरिन का प्रयोग न करने वाले रोगियों की अपेक्षा कुल और कोलोरेक्टल कैंसर से मृत्यु का जोखम कम हो गया।[74][75]

जर्नल ऑफ क्लिनिकल आंकालॉजी में प्रकाशित एक 2010 के लेख में यह देखा गया है कि एस्पिरिन स्तन कैंसर से मृत्यु के जोखम को कम कर सकती है।[76] जबकि इस सूचना का मीडिया द्वारा भली प्रकार प्रसार किया गया है,[77][78] सरकारी स्वास्थ्य संस्थाओं और मेडिकल ग्रुपों द्वारा एस्पिरिन को जादुई दवा के रूप में जताए जाने पर चिंता जाहिर की है।[79]

निषेध और प्रतिरोध संपादित करें

जिन लोगों को इबुप्रोफेन या नैप्राक्सेन से एलर्जी हो, या सैलिसिलेट के प्रति असह्यता हो[80][81] या एनएसएआईडीयों के प्रति असह्यता हो,[82][83] उन्हें एस्पिरिन नहीं लेना चाहिये और दमे या एनएसएआईडी द्वारा उत्पन्न ब्रांकोस्पाज्म वाले लोगों को सावधानी बरतनी चाहिये। आमाशय की भीतरी पर्त पर इसके प्रभाव के कारण उत्पादक पेप्टिक अल्सर, हल्की मधुमेह, या आमाशयशोथ वाले लोगों को एस्पिरिन के प्रयोग के पहले डाक्टरी सलाह लेने की सिफारिश करते हैं।[80][84] अगर इनमें से कोई रोग न भी हो तो भी अल्कोहल या वारफैरिन के साथ एस्पिरिन लिये जाने पर आमाशय में रक्तस्राव का खतरा बढ़ जाता है।[80] हीमोफिलिया व अन्य रक्तस्राव की संभावना वाले रोगियों को एस्पिरिन या अन्य सैलिसिलेट नहीं लेने चाहिये। [80][84] खास तौर पर बड़ी मात्रा में लेने पर और रोग की तीव्रता के अनुसार आनुवंशिक रोग ग्लुकोज 6 फास्फेट डीहाइड्रोजनेज अल्पता (जी6पीडी) वाले लोगों में एस्पिरिन के कारण हीमोलिटिक रक्ताल्पता हो सकती है।[85][86] डेंगू ज्वर में रक्तस्राव की संभावना अधिक होने के कारण एस्पिरिन का प्रयोग करने की सलाह नहीं दी जाती.[87] गुर्दे के रोग, हाइपरयूरिसीमिया या गाउट से ग्रस्त लोगों को एस्पिरिन नहीं लेनी चाहिये क्यौंकि एस्पिरिन गुरदों की यूरिक एसिड का निकास करने की क्षमता को अवरूद्ध कर देती है और इस तरह इन रोगों की तीव्रता को बढ़ा सकती है। सर्दी या इन्फ्लुएंजा के लक्षणों का नियंत्रम करने के लिये बच्चों या किशोरों को एस्पिरिन नहीं देनी चाहिये क्यौंकि इसका संबंध रेइज़ सिंड्रोम से जोड़ा गया है।[4]

कुछ लोगों में एस्पिरिन का प्लेटलेटों पर अन्य लोगों की तरह प्रबल असर नहीं होता है, जिसे एस्पिरिन प्रतिरोधकता या असंवेदनशीलता कहते हैं। एक अध्ययन के अनुसार पुरूषों की अपेक्षा स्त्रियों में प्रतिरोधकता होने की संभावना अधिक है[88] और एक अन्य अध्ययन में 2930 रोगियों में से 28% को प्रतिरोधक पाया गया।[89] 100 इतालवी रोगियों में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि संभावित 31% एस्पिरिन प्रतिरोधी लोगों में से केवल 5% ही वास्तव में प्रतिरोधी थे और अन्य लोग दवाई बराबर नहीं ले रहे थे।[90]

दुष्प्रभाव संपादित करें

जठरांत्रिय संपादित करें

एस्पिरिन का प्रयोग जठरांत्रिय रक्तस्राव के जोखम को बढाता है।[91] हालांकि एस्पिरिन के एंटरिक कोटेड फार्मूलों को आमाशय के लिये सुरक्षित होने का विज्ञापन किया जाता है, एक अध्ययन में पाया गया कि एंटरिक कोटिंग से यह जोखम कम नहीं होता है।[91] एस्पिरिन के साथ अन्य एनएसएआईडीयों के प्रयोग से भी यह खतरा बढ़ जाता है।[91] एस्पिरिन का प्रयोग क्लोपिडोग्रेल या वारफैरिन के साथ करने पर भी ऊपरी जठरांत्रिय रक्तस्राव का खतरा बढ़ जाता है।[92]

केंद्रीय प्रभाव संपादित करें

एस्पिरिन के एक मेटाबोलाइट, सैलिसिलेट की बड़ी मात्राएं अराकिडोनिक एसिड और एनएमडीए ग्राहकों के कैस्केड पर क्रिया के जरिये, कानों में घंटियों की आवाज उत्पन्न कर सकती हैं, ऐसा चूहों पर किये गए प्रयोगों के आधार पर दर्शाया गया है।[93]

रेइज़ सिंड्रोम संपादित करें

रेइज़ सिंड्रोम, एक गंभीर रोग जिसमें तीव्र मस्तिष्क विकार और और वसायुक्त यकृत होता है, ज्वर या अन्य रोगों या संक्रमणों के लिये बच्चों और किशोरों को एस्पिरिन देने से हो सकता है। 1981 से 1997 तक यू एस सेंटर्स फार डिसीज कंट्रोल ऐण्ड प्रिवेंशन में 18 से कम आयु के रोगियों में रेइज़ सिंड्रोम के 1207 मामले दर्ज कराए गए। इनमें से 93% लोग रेइज़ सिंड्रोम के शुरू होने के 3 सप्ताह पहले, श्वसनतंत्र के संक्रमण, छोटी माता या दस्तों से बीमार हुए थे। 81.9% बच्चों में, जिनके जांच के परिणाम उपलब्ध हुए, रक्त में सैलिसिलेट पाया गया।[94] रेइज़ सिंड्रोम और एस्पिरिन में संबंध की पुष्टि होने के बाद जब इसकी रोकथाम के लिये सुरक्षा कदम (सर्जन जनरल की चेतावनी और एस्पिरिनयुक्त दवाओं के लेबल में परिवर्तन सहित) उठाए गए, तो युनाइटेड स्टेट्स में बच्चों में एस्पिरिन का प्रयोग और उसके साथ ही रेइज़ सिंड्रोम के मामले भी काफी कम हो गए।[94] युनाइटेड किंगडम में भी बच्चों में एस्पिरिन के प्रयोग के बारे में चेतावनी जारी होने के बाद ऐसी ही कमी देखी गई। युनाइटेड स्टेट्स फुड ऐण्ड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन अब यह सिफारिश करता है कि एस्पिरिन (या एस्पिरिन युक्त उत्पाद) 12 वर्ष से कम के बच्चों को ज्वर के इलाज के लिये नहीं देना चाहिये[4] और ब्रिटिश मेटिसिन्स ऐण्ड हैल्थकेयर प्राडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) सिफारिश करती है कि 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों को बिना डाक्टर की सलाह के एस्पिरिन नहीं दी जानी चाहिये। [95]

हाइव्ज़/सूजन संपादित करें

कुछ लोगों में, एस्पिरिन के कारण एलर्जी प्रतिक्रिया के समान लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं जिनमें हाइव्ज़, सूजन और सिरदर्द शामिल हैं। यह प्रतिक्रिया सैलिसिलेट असह्यता के कारण होती है और वास्तविक एलर्जी न होकर एस्पिरिन की बहुत थोड़ी सी मात्रा का चयापचय करने में असमर्थता है जिससे जरूरत से अधिक मात्रा शरीर में चली जाती है।

अन्य प्रभाव संपादित करें

एस्पिरिन कुछ लोगों में एंजियोएडीमा उत्पन्न कर सकती है। एक अध्ययन में भाग ले रहे कुछ लोगों में एस्पिरिन लेने के 1-6 घंटों बाद एंजियोएडीमा उत्पन्न हुई। लेकिन अकेले एस्पिरिन लेने पर इन रोगियों में एंजियोएडीमा नहीं हुई – एंजियोएडीमा तब उत्पन्न हुई जब एस्पिरिन किसी अन्य एनएसएआईडी दवा के साथ ली गई।[96]

एस्पिरिन मस्तिष्क में महीन रक्तस्राव के खतरे को बढाती है, यानी एमआरआई स्कैन पर 5-10 मिमी या उससे भी छोटे गहरे चकत्ते दिखाई देते हैं।[97][98] ऐसे मस्तिष्क के न्यून रक्तस्राव महत्वपूर्ण हैं क्यौंकि ये अकसर रक्तप्रवाह में अवरोध से उत्पन्न मस्तिष्काघात या मस्तिष्क के भीतर रक्तस्राव होने के पहले या बिन्सवांगर या अल्झीमर रोग में होते हैं।

शल्यक्रिया के बाद 10 दिनों तक लंबा रक्तस्राव एस्पिरिन के कारण हो सकता है। एक अध्ययन में 30 रोगियों को उनकी शल्यक्रिया के बाद निगरानी में रखा गया। तीस में से बीस रोगियों को आपरेशन के बाद हुए रक्त स्राव के लिये अतिरिक्त अनियोजित आपरेसन करवाना पड़ा.[99] 20 में से 19 रोगियों में यह रक्त स्राव अकेले एस्पिरिन या अन्य किसी एनएसएआईडी के साथ प्रयोग से संबंधित पाया गया। दूसरे आपरेशन के बाद ठीक होने में औसतन 11 दिन लगे।

खुराक संपादित करें

 
लेपित 325 मिलीग्राम एस्पिरिन की गोलियां

वयस्कों में ज्वर या जोड़ों के शोथ के लिये खुराक सामान्यतः दिन में चार बार ली जाती है[100] जबकि रूमेटिक ज्वर के उपचार के लिये ऐतिहासिक रूप से अधिकतम दैनिक खुराकों का प्रयोग किया जाता है।[101] किसी को पहले से ज्ञात या करोनरी धमनी रोग होने का संदेह होने पर हृदयाघात की रोकथाम के लिये काफी कम मात्रा दिन में एक बार ली जाती है।[100]

करोनरी हृदय रोग की प्राथमिक रोकथाम के लिये एस्पिरिन के प्रयोग पर यूएस प्रिवेंटिव सर्विसेज़ टास्क फोर्स (यूएसपीएसटीएफ, मार्च 2009) की नई सिफारिशों में 45-79 वर्ष के पुरूषों और 55-79 वर्ष की महिलाओं को अस्पिरिन का प्रयोग करने के लिये उत्साहित किया गया है, अगर पुरूषों में हृदयाघात या महिलाओं में स्ट्रोक में कमी का अपेक्षित लाभ जठरांत्रिय रक्त स्राव में अपेक्षित वृद्धि से अधिक वजन रखता हो। नियमित कम खुराक (75 से 81 मिग्रा) में एस्पिरिन का प्रयोग करने वालों में ह्रदवाहिनी रोग से मृत्यु का जोखम 25% कम और किसी भी कारण से मृत्यु का जोखम 14% कम था। कम खुराक में एस्पिरिन का प्रयोग करने से ह्रदवाहिनी संबंधित घटनाओं का खतरा भी कम होता पाया गया और एस्पिरिन की कम मात्राएं (75 से 81 मिग्रा प्रतिदिन) ऐसे रोगियों के लिये प्रभावकारी और सुरक्षित साबित हो सकती हैं जिन्हें लंबे समय तक रोकथाम के लिये एस्पिरिन की जरूरत पड़ती है।[102]

कावासाकी रोग से ग्रस्त बच्चों को एस्पिरिन शारीरिक वजन के आधार पर निश्चित खुराकों में दी जाती है, प्रारंभ में दो हफ्तों तक दिन में चार बार और फिर छह से आठ हफ्तों तक कम मात्रा में रोजाना एक बार दी जाती है।[103]

अधिक मात्रा में सेवन संपादित करें

एस्पिरिन का अधिक मात्रा में सेवन अक्यूट या दीर्धकालिक हो सकता है। अक्यूट विषाक्तता में, एक बड़ी खुराक ली जाती है, जबकि दीर्घकालिक वीषाक्तता में सामान्य से अधिक खुराक लंबे समय तक ली गई होती हैं। अक्यूट ओवरडोज़ से मृत्यु की दर 2% है। दीर्धकालिक ओवरडोज़ आम तौर पर घातक होता है और इसकी मृत्यु दर 25% है। दीर्घकालिक ओवरडोज़ बच्चों में खास तौर पर गंभीर होता है।[104] विषाक्तता का उपचार अनेकों तरीकों से किया जाता है, जैसे – एक्टिवेटेड चारकोल, इंट्रावीनस डेक्स्ट्रोज़ और नार्मल सैलाइन, सोडियम बाईकार्बोनेट और डायालिसिस.[105]

कार्यविधि संपादित करें

कार्यविधि का आविष्कार संपादित करें

1971 में ब्रिटिश फार्मकोलाजिस्ट जॉन राबर्ट वेन, जो उस समय लंदन में रॉयल कालेज ऑफ़ सर्जन्स में काम करते थे, ने दिखाया कि एस्पिरिन प्रास्टाग्लैंडिनों और थ्रांबाक्सेनों के उत्पादन को कम करती है।[106][107] इस खोज के लिये उन्हें 1982 में फिजियालाजी और मेडिसिन, दोनों में नोबल पुरस्कार दिया गया और नाइटहुड से सम्मानित किया गया।

प्रास्टाग्लैंडिनों और थ्राम्बाक्सेनों का शमन संपादित करें

एस्पिरिन की प्रास्टाग्लैंडिनों और थ्राम्बाक्सेनों के उत्पादन का शमन करने की क्षमता उसके द्वारा साइक्लोआक्सीजनेज़ (पीटीजीएस) एंजाइम के अपरिवर्तनीय निष्क्रयीकरण के कारण होती है। साइक्लोआक्सीजनेज़ की आवश्यकता प्रास्टाग्लैंडिन और थ्राम्बाक्सेन के संश्लेषण के लिये पड़ती है। पीटीजीएस एंजाइम के सक्रिय स्थान में सेरीन रेजिड्यू से जुड़े एसिटाइल समूह के स्थान पर एस्पिरिन एसिटाइलेटिंग एजेंट का काम करता है। यह बात एस्पिरिन को अन्य एनएसएआईडियों (जैसे डाइक्लोफेनेक और इबुप्रोफेन) से भिन्न करती है, जो कि परिवर्तनीय अवरोधक होते हैं।

कम मात्रा में दीर्घकालिक एस्पिरिन का प्रयोग प्लेटलेटों में थ्रामबाक्सेन ए2 के उत्पादन को अपरिवर्तनीय रूप से रोक देता है, जिससे प्लेटलेटों की जमावट पर अवरोधक प्रभाव होता है। एस्पिरिन का यह स्कंदन विरोधी गुण उसे हृदयाघात की घटनाओं को कम करने में उपयोगी बनाता है।[108] प्रतिदिन 40 मिग्रा एस्पिरिन, प्रास्टाग्लैंडिन I2 के संश्लेषण को प्रभावित किये बिना, अधिकतम थ्राम्बाक्सेन ए2 की उत्पत्ति के एक बड़े अनुपात को अवरूद्ध कर सकती है। लेकिन इससे अधिक अवरोध के लिये एस्पिरिन की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।[109]

प्रास्टाग्लैंडिन शरीर में बनने वाले स्थानिक हारमोन होते हैं और उनके शरीर में विभिन्न प्रभाव होते हैं, जिनमें मस्तिश्क को दर्द की सूचना भेजना, हाइपोथैलेमिक थर्मोस्टैट का माडुलेशन और शोथ शामिल हैं। थ्राम्बाक्सेनों का कार्य प्लेटलेटों की जमावट करना होता है जिससे रक्त के थक्के बनते हैं। हृदयाघात प्राथमिक रूप से रक्त के थक्कों के कारण होते हैं और हृदयाघात के प्रभावी मेडिकल उपचार के लिये कम खुराक में एस्पिरिन उपयोगी होती है। इसका मुख्य दुष्प्रभाव यह है कि चूंकि रक्त के जमने की क्षमता कम हो जाती है, इसलिये एस्पिरिन के प्रयोग से अत्यधिक रक्त स्राव हो सकता है।

पीटीजीएस1 (काक्स-1) और पीटीजीएस2 (काक्स-2) अवरोध संपादित करें

कम से कम दो भिन्न प्रकार के साइक्लाक्सीजिनेज़ होते हैं – पीटीजीएस1 और पीटीजीएस2. एस्पिरिन अपरिवर्तनीय रूप से पीटीजीएस1 का अवरोध करती है और पीटीजीएस2 की एंजाइमेटिक गतिविधि को संशोधित करती है। सामान्यतः पीटीजीएस2 प्रास्टेनाइडों का उत्पादन करता है, जो अधिकांशतः शोथप्रेरक होते हैं। एस्पिरिन द्वारा संशोधित पीटीजीएस2 लाइपाक्सिनों का उत्पादन करता है, जो अधिकांशतः शोथविरोधी होते हैं। आमाशयंत्रीय दुष्प्रभावों को कम करने के उद्देश्य से पीटीजीएस2 सेलेक्टिव अवरोधक नामक नई एनएसएआईडी दवाओं का विकास किया गया है जो केवल पीटीजीएस2 का अवरोध करती हैं।[5]

लेकिन, वयाक्स जैसे अनेक नए को हाल ही में वापस ले लिया गया है क्यौंकि ऐसे सबूत मिले हैं कि पीटीजीएस2 अवरोधक हृदयाघात के खतरे को बढ़ाते हैं। यह कहा गया है कि शरीर की महीन रक्तनलिकाओं की भीतरी पर्तों में मौजूद एंडोथीलियल कोशिकाएं पीटीजीएस2 उत्पन्न करती हैं और विशेष रूप से पीटीजीएस2 का अवरोध करने से प्रास्टाग्लैंडिन के (विशेषकर पीजीआई2, प्रास्टासाइक्लिन) उत्पादन का थ्राम्बाक्सेन के मुकाबले डाउनरेगुलेशन हो जाता है, क्यौंकि प्लेटलेटों में पीटीजीएस1 अप्रभावित रहते हैं। इससे, पीजीआई2 का रक्षात्मक स्कंदनविरोधी असर हट जाता है, जिससे थ्राम्बस और उसके साथ हृदयाघातों और अन्य रक्तप्रवाह की समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। चूंकि प्लेटलेटों में डीएनए नहीं होता है, वे एक बार एस्पिरिन द्वारा एंजाइम को अपरिवर्तनीय रूप से अवरूद्ध कर देने के बाद नए पीटीजीएस का संश्लेषण नहीं कर सकते, जो कि एस्पिरिन की परिवर्तनीय अवरोधकों की तुलना में महत्वपूर्ण भिन्नता है।

अतिरिक्त क्रियाविधियां संपादित करें

एस्पिरिन की कम से कम तीन अतिरिक्त क्रियाविधियां दर्शाई गई हैं। यह भीतरी कला शून्य से प्रोटान वाहक के रूप में माइट्रोकांड्रियल मैट्रिक्स, जहां यह एक बार फिर आयनीकृत होकर प्रोटान देती है, में वापस प्रसारित होकर, कार्टीलेज (और हिपैटिक) के माइटोकांड्रिया में आक्सीकारक फास्फारिलेशन को वियुगलीकृत करती है।[110] संक्षेप में एस्पिरिन प्रोटानों को बफर करके संवाहन करती है। जब एल्पिरिन की बड़ी मात्राएं दी जाती हैं, तो इलेक्ट्रान ट्रांसपोर्ट चेन द्वारा ऊष्मा मुक्त किये जाने से एस्पिरिन वास्तव में ज्वर उत्पन्न करती है, जबकि कम खुराकों में एस्पिरिन बुखार कम करती है। इसके अलावा एस्पिरिन शरीर में एनओ-मूलों के निर्माण को बढावा देती है, जिन्हें चूहों में शोथ कम करने की स्वतंत्र कार्य़विधि के रूप में दर्शाया गया है। यह श्वेत रक्तकणों को आपस में चिपकने से रोकता है, जो संक्रमण के प्रति रक्षात्मक प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण कदम है। अभी यह सिद्ध करने के लिये पर्याप्त सबूत उपलब्ध नहीं हैं कि एस्पिरिन संक्रमण से लड़ने में मदद करती है।[111] हाल में प्राप्त जानकारी के अनुसार एस्पिरिन और उसके यौगिक संकेतों को NF-κB के जरिये माड्युलेट करते हैं।[112] NF-κB एक ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर काम्प्लेक्स है जो शोथ सहित कई जैविक प्रक्रियाओं में केन्द्रीय भूमिका निभाता है।

हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-एड्रीनल गतिविधि पर प्रभाव संपादित करें

एस्पिरिन हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-एड्रीनल धुरी द्वारा एसीटीएच[113] और कार्टीसाल का स्राव करने के बाद वैसोप्रैसिन के प्रभावों को कम[114] और नैलोक्सोन के प्रभावों को बढ़ाती है। यह कहा गया है कि ऐसा अंतर्जनित प्रास्टाग्लैंडिनों और एचपीए धुरी को नियंत्रित करने में उनकी भूमिका के बीच एक अंतर्क्रिया के माध्यम से होता है।[113]

फार्मेकोकाइनेटिक्स संपादित करें

सैलिसिलिक एसिड एक हल्का अम्ल है और मुंह से लेने के बाद इसकी बहुत कम मात्रा का आमाशय में आयनीकरण होता है। एसिटाइल सैलिसिलिक एसिड आमाशय की अम्लीय दशा में बहुत कम घुलनशील होता है, जिससे बड़ी खुराकों के अवशोषण में 8 से 24 घंटों की देर हो सकती है। छोटी आंत के बढ़े हुए पीएच के अलावा, अधिक सतही क्षेत्रफल के कारण एस्पिरिन वहां तेजी से अवशोषित होती है, जिससे सैलिसिलेट अधिक मात्रा में घुलते हैं। घुलनशीलता के वजह से ही अधिक मात्रा में लिये जाने पर एस्पिरिन का अवशोषण बहुत धीमी गति से होता है और प्लाज्मा में इसकी सांद्रताएं इसके सेवन के बाद 24 घंटों तक बढ़ती रह सकती हैं।[115][116][117]

रक्त में सैलिसिलेट का लगभग 50-80% प्रोटीन से जुड़ा होता है जबकि बाकी मात्रा सक्रिय, आयनीकृत स्थिति में होती है। प्रोटीन से बंधन सांद्रता पर निर्भर होता है। बंधन के स्थानों के संतृप्त हो जाने पर अधिक मुक्त सैलिसिलेट की उपलब्धि और विषाक्तता में वृद्घि हो जाती है। वितरण का आयतन 0.1 से 0.2 ली/किग्रा होता है। एसिडोसिस में सैलिसिलेटों के ऊतकों में अधिक प्रवेश के कारण वितरण का आयतन बढ़ जाता है।[117]

सैलिसिलिक एसिड की उपचार के लिये दी गई खुराक के 80% भाग का यकृत में चयापचय होता है। ग्लाइसिन से संय़ुक्त होकर सैलिसिलूरिक एसिड बनता है और ग्लूकुरॉनिक एसिड से संयुक्त होकर सैलिसाइल एसिल और फिनालिक ग्लकूरोनाइड बनते हैं। इन चयापचयी मार्गों की सीमित क्षमता ही होती है। सैलिसिलिक एसिड की लघु मात्राएं हाइड्राक्सिलित होकर जेंटिसिक एसिड बनाती हैं। सैलिसिलेट की बड़ी मात्राओं के साथ गतिकी प्रथम स्थान से शून्य स्थान को विस्थापित हो जाती है, क्यौंकि चयापचयी मार्ग संतृप्त हो जाते हैं और गुर्दों से निकास का महत्व बढ़ने लगता है।[117]

सैलिसिलेट गुर्दों द्वारा मुख्यतः सैलिसिलूरिक एसिड (75%), मुक्त सैलिसिलिक एसिड (10%), सैलिसिलिक फिनॉल (10%) और एसाइल ग्लूकुरोनाइडों (5%) व जेनटिसिक एसिड (< 1%) के रूप में निष्कासित होते हैं। लघु मात्रा में लेने पर (वयस्क में 250मिग्रा से कम) सभी मार्ग पहले दर्जे की गतिकी द्वारा चलते हैं और निकासीय अर्धजीवन करीब 2 से 4.5 घंटे होता है।[118][119] सैलिसिलेटों की बड़ी मात्राओं (4 ग्राम से अधिक) के लेने पर अर्धजीवन काफी लंबा (15-30 घंटे)[120] हो जाता है क्यौंकि सैलिसिलूरिक एसिड और सैलिसिल फिनॉलिक ग्लूकुरोनाइड के बनने से संबंधित जैवपरिवर्तन मार्ग संतृप्त हो जाते हैं।[121] चयापचयी मार्गों के संतृप्त होने पर सैलिसिलिक एसिड का गुर्दों द्वारा निकास अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्यौंकि यह मूत्र के पीएच के प्रति अत्यंत संवेदनशील होता है। मूत्र के पीएच के 5 से बढ़ कर 8 होने पर गुर्दे से निकास में 10 से 20 गुना वृद्धि हो जाती है। मूत्र के क्षारीकरण में सैलिसिलेट निकास के इस पहलू का लाभ उठाया जाता है।[122]

अंतर्क्रियाएं संपादित करें

यह ज्ञात है कि एस्पिरिन अन्य औषधियों के साथ अंतर्क्रिया करती है। उदा.एसिटाजोलामाइड और अमोनियम क्लोराइड सैलिसिलेटों के नशीले प्रभावों को बढ़ाते हैं और अल्कोहल भी इस प्रकार की दवाओं के साथ होने वाले जठरांत्रिय रक्तस्राव को बढ़ाता है।[80][81] एस्पिरिन रक्त में अनेक दवाओं को उनके बंधक स्थानों से विस्थापित करती है, जिनमें मधुमेह विरोधी दवाएं टोलबुटामाइड और क्लोरप्रोपामाइड, इम्यूनोसप्रेसेंट मेथोट्रेक्सेट, फेनिटॉइन, प्रोबेनेसिड, वैल्प्रोइक एसिड (वैल्प्रोएट चयापचय के महत्वपूर्ण भाग, बीटा आक्सीकरण में अवरोध भी) और सभी नानस्टीराटडल शोथविरोधी दवाएं शामिल हैं। कार्टिकोस्टीरायड भी एस्पिरिन की सांद्रता को कम कर सकते हैं। स्पाइरोनोलैक्टोन की औषधिक गतिविधि को भी एस्पिरिन लेकर कम किया जा सकता है और गुर्दों से स्राव के लिये एस्पिरिन पेनिसिलिन जी से स्पर्धा करती है।[123] एस्पिरिन विटामिन सी के अवशोषण में भी बाधा डालती है।[124][125][126]

पशुओं के उपचार में उपयोगिता संपादित करें

पशु औषधिशास्त्र में एस्पिरिन का प्रयोग, प्राथमिक रूप से कुत्तों में दर्द और जोड़ों के शोथ के उपचार के लिये किया जाता है, हालांकि इसके लिये इसकी सलाह अकसर नहीं दी जाती है, क्यौंकि इन पशुओं के लिये कम दुष्प्रभावों वाली नई दवाएं उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिये, कुत्तों में सैलिसिलेटों से संबंधित जठरांत्रिय दुष्प्रभाव विशेष तौर पर होते हैं।[127] घोड़ों को भी दर्द से राहत के लिये एस्पिरिन दी जाती है, हालांकि इसके थोड़े समय तक ही रहने वाले दर्दशामक असर के कारण आम तौर पर इसकी सलाह नहीं दी जाती है। घोड़े भी जठरांत्रिय दुष्प्रभावों के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं। फिर भी, अधिकांशतः लैमिनाइटिस के मामलों में, स्कंदनविरोधी के रूप में इसका प्रयोग लाभदायक साबित हुआ है।[128] पशुओं में एस्पिरिन का प्रयोग पशुचिकित्सक के निरीक्षण में ही करना चाहिये। एस्पिरिन बिल्लियों को कभी नहीं देना चाहिये क्यौंकि उनमें ग्लुकुरोनाइड कांजुगेट बनाने की क्षमता नहीं होती, जिससे एस्पिरिन के विषाक्त होने की संभावना बढ़ जाती है। विषाक्तता को खुराकों के बीच अधिक समयांतर रख कर कम किया जा सकता है।[129]

रसायन शास्त्र संपादित करें

एस्पिरिन सैलिसिलिक एसिड से प्राप्त एक एसिटाइल यौगिक है जो एक सफेद, क्रिस्टल जैसा, हल्का अम्लीय पदार्थ है जिसका गलनांक 135 °से. (275 °फ़ै) होता है। एसिटाइल सैलिसिलिक एसिड अमोनियम एसीटेट या क्षारीय धातुओं के एसीटेटों, कार्बोनेटों, सिट्रेटों या हाइड्राक्साइडों के घोलों में तेजी से विघटित होता है। एसिटाइल सैलिसिलिक एसिड शुष्क हवा में स्थिर रहता है, लेकिन आर्द्रता से संयोग में आने पर धीरे से ङाइड्रोलाइज़ होकर एसिटिक और सैलिसिलिक एसिडों में बदल जाता है। क्षारों के साथ घोलों में, हाइड्रोलिसिस तेजी से होती है और इससे प्राप्त साफ घोल पूरी तरह से एसीटेट और सैलिसिलेट युक्त हो सकते हैं।[130]

संश्लेषण संपादित करें

एस्पिरिन के संश्लेषण को एस्टरीकरण प्रतिक्रिया के ऱूप में वर्गीकृत किया गया है। सैलिसिलिक एसिड में एक अम्लीय यौगिक, एसिटिक एनहाइड्राइड को डाल कर एक रसायनिक प्रतिक्रिया की जाती है जिससे सैलिसिलिक एसिड का हाइड्रक्सिल समूह एसिटाइल समूह (R-OH → R-OCOCH3) में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया से एस्पिरिन और एसिटिक एसिड प्राप्त होते हैं जिसे इस प्रतिक्रिया का उप-उत्पाद माना जाता है। सल्फूरिक एसिड (और कभी-कभी फास्फोरिक एसिड) की लघु मात्राएं लगभग हमेशा उत्प्रेरक के रूप में प्रयोग की जाती हैं। यह विधि आम तौर पर स्नातक शिक्षा प्रयोगशालाओं में काम में लाई जाती है।[131]

 

एस्पिरिन की उच्च सांद्रता वाले फार्मूलों से सिरके जैसी गंध आती है।[132] ऐसा इसलिये होता है क्यौंकि एस्पिरिन आर्द्र दशाओं में हाइड्रोलाइज़ होकर विघटित हो सकती है, जिससे सैलिसिलिक एसिड और एसिटिक एसिड प्राप्त होते हैं।[133]

एसिटाइलसैलिसिलिक एसिड का अम्सीय विघटन कांस्टैंट (pKa) 3.5 है25 °से. (77 °फ़ै).[134]

बहुरूपता संपादित करें

बहुरूपकता, या किसी पदार्थ की एक से अधिक क्रिस्टल रचना बनाने की क्षमता औषधिक तत्वों के विकास में महत्वपूर्ण होती है। अनेक दवाइयों को केवल एक क्रिस्टल रूप या बहुरूपक के लिये नियंत्रक अनुमति मिल रही है। काफी समय तक एस्पिरिन की केवल एक क्रिस्टल रचना की जानकारी थी, हालांकि 1960 के दशक से ऐसे संकेत थे कि एस्पिरिन का एक दूसरा क्रिस्टेलाइन रूप हो सकता है। दूसरे क्रिस्टेलाइन रूप की खोज 2005 में विश्वेश्वर और सहकर्मियों ने की[135] और बाँड व अन्य ने महीन रचनात्मक ब्यौरे प्रस्तुत किये। [136] गर्म एसिटोनाइट्राइल से एस्पिरिन और लेविटिरासिटाम के सह-क्रिस्टलीकरण के प्रयत्न द्वारा एक ने क्रिस्टल प्रकार की प्राप्ति हुई। प्रकार II केवल 100 के पर ही स्थिर होता है और ऐम्बिएंट तापमान पर वापस प्रकार I में बदल जाता है। प्रकार I में दो सैलिसिलिक अणु कार्बोनिल हाइड्रोजन बांडों को (अम्लीय) मिथाइल प्रोटॉन के साथ एसिटाइल समूहों द्वारा सेट्रोसिम्मिट्रिक डाइमरों का निर्माण करते हैं और नए प्रकार II में, प्रत्येक सैलिसिलिक अणु एक की जगह दो पड़ोसी अणुओं से समान हाइड्रोजन बाँडों का निर्माण करता है। कार्बोजाइलिक एसिड समूहों द्वारा बनाए गए हाइड्रोजन बांडों के संबंध में दो बहुरूपक एक समान डाइमर रचनाओं का निर्माण करते हैं।

कम्पेंडियल स्थिति संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें

  • एस्पर्गम
  • ब्लड प्लेटलेट्स
  • तांबे एस्पिरिनेट
  • गैर-स्टेरॉइडल जलनरोधी दवाएं
  • एस्पिरिन का इतिहास
  • सैलिसिलिक अम्ल
  • थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परपूरा
  • इबूप्रोफेन
  • पैरासेटामोल (एसिटमाइनोफ़ेन)
  • नेप्रोक्ज़ेन
  • खोलीन मैगनीशियम ट्रीसालीसिलेट (ट्राईसीलेट)

नोट्स और सन्दर्भ संपादित करें

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बाहरी कड़ियाँ संपादित करें


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