ऐल्ब्युमिनमेह
ऐल्ब्युमिनमेह (Albuminuria) एक रोग है, जिसके होने पर मूत्र में असामान्य मात्रा में ऐलब्युमिन पाया जाता है। यह एक प्रकार का प्रोटीनमेह (proteinuria) है। सामान्य अवस्था में सभी के मूत्र में ऐल्बुमिन पाया जाता है किन्तु वृक्क (किडनी) के रोग होने पर मूत्र में ऐल्बुमिन की मात्रा बहुत बढ़ जाती है। ऐलब्युमिनमेह स्वयं कोई रोग नहीं है; वह कुछ रोगों का केवल एक लक्षण है।
मूत्र को गरम करके उसमें नाइट्रिक अम्ल या सल्फ़ोसैलिसिलिक अम्ल मिलाकर ऐलब्युमिन की जाँच की जाती है। बेस जोंस नामक प्रोटीनों की उपस्थिति में ५५ डिग्री सेल्सियस तक गरम करने पर गँदलापन आने लगता है। किंतु ८० डिग्री सेल्सियस तक उसे गरम करने पर गँदलापन जाता रहता है। इस गँदलेपन को मापा जा सकता है और कैलोरीमापक विधि से उसकी मात्रा भी ज्ञात की जा सकती है।
निम्नलिखित रोगों में ऐलब्युमिन मूत्र में पाया जाता है:
- वृक्कार्ति, जिसमें वृक्क में शोथ हो जाता है।
- गोणिकार्ति, जिसमें शोथ वृक्क-गोणिका में परिमित रहता है।
- मूत्राशयार्ति, जिसमें मूत्राशय में शोथ होता है।
- मूत्रमार्गीर्ति, जिसमें मूत्रमार्ग की भित्तियाँ शोथयुक्त हो जाती हैं।
- वृक्क का अमिलाइड रोग।
- हृद्रोग, ज्वर, गर्भावस्था की रक्तविषाक्ता, मधुमेह और उच्च-रक्त-दाब।
प्राय: वृक्कार्ति तथा अमिलाइड रोगों में ऐलब्युमिन की मात्रा अधिक होती है, जिससे रक्त में प्रोटीन की कमी हो जाती है। इसके कारण शरीर पर शोथ हो जाता है तथा रक्त की रसाकर्षण दाब भी कम हो जाती है।