ओलादेवी हैजा की देवी हैं और बांग्ला क्षेत्र: बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल तथा मारवाड़, राजस्थान के लोगों द्वारा पूजी जाती हैं। इस देवी को ओलईचंडी, ओलाबीबी तथा बीबीमा के नाम से भी जाना जाता है। वे बंगाल के हिंदुओं और मुसलमानों द्वारा पूजनीय हैं।

राजस्थान में उन्हें शीतला माँ के रूप में पूजा जाता है जो अपने भक्तों को हैजा, पीलिया, दस्त तथा पेट से संबंधित अन्य बीमारियों से बचाती हैं। उन्हें ओरी माता कहा जाता है। मारवाड़ी परंपरा में उनकी कोई निश्चित प्रतिमा नहीं है, लेकिन आमतौर पर उन्हें शीतला की तरह दर्शाया जाता है।

ओलादेवी बंगाल में लोक परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंश हैं। वे विभिन्न धर्मों तथा संस्कृतियों के समुदायों द्वारा पूजनीय हैं।[1][2]

पौराणिक लोककथाओं के अनुसार ओलादेवी मायासुर की पत्नी हैं जो कि पौराणिक राजा तथा असुरों के वास्तुकार, दानव(हिंदू धर्म) और दैत्य था।

सामाजिक प्रभाव

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ओलादेवी बंगाल की लोक परंपराओं में एक ख़ास शख्सियत हैं। माना जाता है कि हैजा देवी के रूप में ओलादेवी की आराधना की शुरुआत उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप में इस बीमारी के फैलने के साथ हुई थी।

इन्हें भी देखें

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चण्डी

  1. बांग्लादेश में इस्लाम
  2. Ralph W. Nicholas. Fruits of Worship: Practical Religion in Bengal. Page 205. Orient Longman, 2003. ISBN 81-8028-006-3