ककुत्स्थ (अयोध्या के सूर्यवंशी राजा)

ककुत्स्थ, विकुक्षि के पुत्र जो इक्ष्वाकु के पौत्र और वैवस्वत मनु के प्रपौत्र थे। देवासुर संग्राम में इन्होंने वृषरूपधारी इंद्र के कुकुद् अर्थात्‌ डील (कूबड़) पर सवार होकर राक्षसों को पराजित किया था। इसी कारण वे 'ककुत्स्थ' कहलाए। इनके पुत्र अनेना और पौत्र पृथु हुए। कूर्म तथा मत्स्य पुराणों में इनके एक पुत्र का नाम सुयोधन भी दिया है।

     -:(ककुत्स्थ'एक जाति भी है):-

(3) ककुत्स्थ का अन्य शाब्दिक अर्थ है कुकुद+अस्थ अर्थात चोटी पर आसीन इन्हीं महाराज पुरंजय से ककुत्स्थ‌ वंश चला जो क्षत्रियों के शाही राजघरानों के से एक है। महाराज रघु सूर्यवंशी ककुस्त्थ कुल के वंशज हैं। महाराज रघु भी ककुस्त्थ वंशी है। महाराज रघु के अत्यंत प्रतापी तेजस्वी होने के कारण इस वंश का नाम बदलकर रघुवंश हो गया था। महाराज पुरंजय से लेकर कौशल प्रदेश (उत्तर प्रदेश) के जितने भी चक्रवर्ती सम्राट हुए हैं सभी ककुत्स्थ वंशी कहलाए। इस तथ्य की पुष्टि क्षत्रिय वंशावली चंद्रवरदाई द्वारा लिखित पृथ्वीराज रासो राम रक्षास्त्रोत बाल्मीकि रामायण श्री रामानंद द्वारा लिखित ककुत्स्थ वंश का परिचय क्षत्रिय वंश प्रदीप नामक पुस्तक के लेखक होती है इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्यवंशी ही ककुत्स्थ वंश है।

(4) पुरंजय ककुत्स्थ भगीरथ के पुत्र माने जाते है। महराज पुरंजय ककुत्स्थ ने अयोध्या पर लगभग 10900

(5) ककुत्स्थ एक जाति भी है वेदों पुराणों एवं 1927 ईस्वी में आयोजित शास्त्रार्थ के माध्यम से सिद्ध हो चुका है कि ककुत्स्थ वंशी क्षत्रिय हैं जो भूमिहीन छत्रिय माने जाते हैं । भगवान परशुराम द्वारा क्षत्रियों का 21 बार संहार किया जाना सर्व विवादित एवं हर स्तर से प्रमाणित है भगवान परशुराम के प्रकोप एवं प्रहार से राजघराने के सभी योद्धा मारे गए क्षत्रिय परिवारों राजघरानों की महिलाएं विधवा हो गई संपूर्ण क्षत्रिय समाज में हाहाकार मचा था क्षत्रिय परिवारों में आपात एवं संक्रमण काल में क्षत्रियों के नरसंहार से बचाने उनके जीवन रक्षार्थ सौदास के पुत्र मुलक ने कतिपय क्षत्रिय परिवारों सहित चवन ऋषि के आश्रम में जाकर उनसे आश्रय मांगा च्यवन ऋषि के द्वारा इन छत्रिय परिवारों को आश्रम आश्रम में शरण दी गई और जीवन यापन के लिए उन्होंने शिल्पकार्य किए भगवान परशुराम आश्रम में क्षत्रियों के छिपे होने की सूचना पाकर च्यवन ऋषि के आश्रम पहुंचकर उनका वध करना चाह चमन ऋषि ने च्यवन ऋषि ने उन्हें समझाया कि क्षत्रिय परिवार अस्त्र-शस्त्र एवं राजपाट छोड़कर अपने शिल्पकार्य करके अपना उदर पोषण कर रहे हैं इस स्थिति में इनका वध करना अनुचित एवं नीति विरुद्ध है परिणाम स्वरूप क्षत्रियों परिवारों के जीवन रक्षा हो सकी इस तथ्य की पुष्टि बृहदरामायण 25 26 से स्पष्ट है (6) यह जाति उत्तर प्रदेश में 1997 ईस्वी में पिछड़े वर्ग में पंजीकृत की गई। (उत्तर प्रदेश सरकार पिछड़ा वर्ग अनुभव एक संख्या 1250/ 94-97 दिनांक 15 सितंबर 1997 के द्वारा पिछड़े वर्ग की सूची के क्रमांक-25 पर "ककुत्स्थ" जाति पंजीकृत किए जाने की अधिसूचना जारी की गई प्रमुख सचिव उत्तर प्रदेश शासन की अधिसूचना संख्या 1708/64.1.98 पिछड़ा वर्ग समाज कल्याण अनुभाग-1 दिनांक 5 नवंबर 1998 जो प्रदेश के समस्त मंडलायुक्त/जिलाधिकारियों को संबोधित तथा अन्य को प्रस्तावित द्वारा इनकी मांग पर जाति प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया गया है।)

ये क्षत्रिय सूर्यवंशी ,मनुवंशी , ककुस्त्थ वंशी, रघुवंशी,राजवंधी क्षत्रिय कहलाते है।

   ऋषि:- कश्यप
    गोत्र:- कश्यप,गाधिज,भारद्वाज
   अन्यगोत्र:- भारत,वशिष्ठ,अत्रि आदि।

इन्हें भी देखें संपादित करें

ब्रह्मा जी से मरीचि का जन्म हुआ था और मरीचि के पुत्र कश्यप थे।

कश्यप के पुत्र विवस्वान और  विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु हुए।
वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु हुए और इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि थे। कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था। 

विकुक्षि के पुत्र बाण हुए और बाण के पुत्र अनरण्य। अनरण्य से पृथु हुए और पृथु से त्रिशंकु पैदा हुए।

त्रिशंकु के पुत्र धुन्धुमार और धुन्धुमार के पुत्र युवनाश्व हुए। 

युवनाश्व से उनके पुत्र मान्धाता हुए और मान्धाता से सुसन्धि पैदा हुए सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत और भरत के पुत्र असित हुए। असित के पुत्र सगर और सगर के पुत्र असमञ्ज पैदा हुए।

असमञ्ज के पुत्र अंशुमान  और अंशुमान के पुत्र दिलीप जन्म लिए। दिलीप के पुत्र भगीरथ और भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ हुए। 

ककुत्स्थ के पुत्र रघु पैदा हुए और रघु और रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के पुत्र सुदर्शन जन्म लिए। वहीं सुदर्शन के पुत्र अग्निवर्ण और अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग का जन्म हुआ। शीघ्रग के पुत्र मरु हुए और मरु के पुत्र प्रशुश्रुक हुए। प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीश पैदा हुए और अम्बरीश के पुत्र नहुष हुए। नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुए। नाभाग के पुत्र अज और अज के पुत्र हुए राजा दशरथ। राजा दशरथ के चार पुत्र हुए श्री रामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न। भगवान श्री रामचंद्र के दो पुत्र लव और कुश हुए।