कचनार
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कचनार एक सुंदर फूलों वाला वृक्ष है। कचनार के छोटे अथवा मध्यम ऊँचाई के वृक्ष भारतवर्ष में सर्वत्र होते हैं। लेग्यूमिनोसी (Leguminosae) कुल और सीज़लपिनिआयडी (Caesalpinioideae) उपकुल के अंतर्गत बॉहिनिया प्रजाति की समान, परंतु किंचित् भिन्न, दो वृक्षजातियों को यह नाम दिया जाता है, जिन्हें बॉहिनिया वैरीगेटा (Bauhinia variegata) और बॉहिनिया परप्यूरिया (Bauhinia purpurea) कहते हैं। बॉहिनिया प्रजाति की वनस्पतियों में पत्र का अग्रभाग मध्य में इस तरह कटा या दबा हुआ होता है मानों दो पत्र जुड़े हुए हों। इसीलिए कचनार को युग्मपत्र भी कहा गया है।
गुलाबी कचनार Phanera variegata | |
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Flowers | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | Plantae |
अश्रेणीत: | Angiosperms |
अश्रेणीत: | Eudicots |
अश्रेणीत: | Rosids |
गण: | Fabales |
कुल: | Fabaceae |
वंश: | Phanera |
जाति: | P. variegata |
द्विपद नाम | |
Phanera variegata'[1] (L.) Benth. |
बॉहिनिया वैरीगेटा में पत्र के दोनों खंड गोल अग्रभाग वाले और तिहाई या चौथाई दूरी तक पृथक, पत्रशिराएँ १३ से १५ तक, पुष्पकलिका का घेरा सपाट और पुष्प बड़े, मंद सौरभ वाले, श्वेत, गुलाबी अथवा नीलारुण वर्ण के होते हैं। एक पुष्पदल चित्रित मिश्रवर्ण का होता है। अत: पुष्पवर्ण के अनुसार इसके श्वेत और लाल दो भेद माने जा सकते हैं। बॉहिनिया परप्यूरिया में पत्रखंड अधिक दूर तक पृथक पत्रशिराएँ ९ से ११ तक, पुष्पकलिकाओं का घेरा उभरी हुई संधियों के कारण कोणयुक्त और पुष्प नीलारुण होते हैं।
संस्कृत साहित्य में दोनों जातियों के लिए 'कांचनार' और "कोविदार' शब्द प्रयुक्त हुए हैं। किंतु कुछ परवर्ती निघुटुकारों के मतानुसार ये दोनों नाम भिन्न-भिन्न जातियों के हैं। अत: बॉहिनिया वैरीगेटा को कांचनार और बॉहिनिया परप्यूरिया को कोविदार मानना चाहिए। इस दूसरी जाति के लिए आदिवासी बोलचाल में, "कोइलार' अथवा "कोइनार' नाम प्रचलित हैं, जो निस्संदेह "कोविदार' के ही अपभ्रंश प्रतीत होते हैं।
आयुर्वेदीय वाङ्मय में भी कोविदार और कांचनार का पार्थक्य स्पष्ट नहीं है। इसका कारण दोनों के गुणसादृश्य एवं रूपसादृश्य हो सकते हैं। चिकित्सा में इनके पुष्प तथा छाल का उपयोग होता है। कचनार कषाय, शीतवीर्य और कफ, पित्त, कृमि, कुष्ठ, गुदभ्रंश, गंडमाला एवं व्रण का नाश करनेवाला है। इसके पुष्प मधुर, ग्राही और रक्तपित्त, रक्तविकार, प्रदर, क्षय एवं खाँसी का नाश करते हैं। इसका प्रधान योग "कांचनारगुग्गुल' है जो गंडमाला में उपयोगी होता है। कोविदार की अविकसित पुष्पकलिकाओं का शाक भी बनाया जाता है, जिसमें हरे चने (होरहे) का योग बड़ा स्वादिष्ट होता है।
कुछ लोगों के मत से कांचनार को ही 'कर्णिकार' भी मानना चाहिए। परंतु संभवत: यह मत ठीक नहीं है।
छवि दीर्घा
संपादित करें-
हैदराबाद में कचनार का पौधा
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हैदराबाद में कचनार का एक पेड़
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हैदराबाद में एक पेड़
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हैदराबाद में एक पेड़ पर खिले फूल
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हैदराबाद में एक पेड़ पर खिले फूल
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कचनार का एक फूल
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कचनार का एक फूल
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कलकत्ता के वनस्पति उद्यान में कचनार के फूल
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कलकत्ता के वनस्पति उद्यान में कचनार के फूल
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कलकत्ता के वनस्पति उद्यान में कचनार की पत्तियां
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कलकत्ता के वनस्पति उद्यान में कचनार का ताना
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कलकत्ता के वनस्पति उद्यान में कचनार की कलियाँ
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कलकत्ता के वनस्पति उद्यान में कचनार का फल
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कचनार के फल का संग्रहालय नमूना
विकिमीडिया कॉमन्स पर Bauhinia variegata से सम्बन्धित मीडिया है। |
विकिस्पीशीज़ पर सूचना मिलेगी, Bauhinia variegata के विषय में |
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- अभिव्यक्ति पत्रिका का कचनार विशेषांक
- कचनार की कली की सब्जी Archived 2010-11-27 at the वेबैक मशीन (निशा मधुलिका)
- कचनार : शोथ एवं ग्रंथिनाशक (वेबदुनिया)
- कई रोगों की औषधि है कचनार[मृत कड़ियाँ] (दैनिक जागरण)
- कचनार
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Bauhinia variegata". International Legume Database & Information Service (ILDIS). अभिगमन तिथि 24 April 2019.