करतारपुर गुरुद्वारा
करतारपुर साहिब गुरुद्वारा जिसे मूल रूप से गुरुद्वारा दरबार साहिब के नाम से जाना जाता है, सिखों का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है,जहां गुरु नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिताए।[1] इस स्थान पर गुरु नानक जी ने 16 सालों तक अपना जीवन व्यतीत किया।बाद में इसी गुरुद्वारे की जगह पर गुरु नानक देव जी ने अपना देह 22 सितंबर 1539 को छोड़ा था,जिसके बाद गुरुद्वारा दरबार साहिब बनवाया गया।
गुरुद्वारा दरबार साहिब گردوارا دربار صاحب کرتارپور ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਦਰਬਾਰ ਸਾਹਿਬ ਕਰਤਾਰਪੁਰ | |||
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सामान्य विवरण | |||
वास्तुकला शैली | सिख वास्तुकला | ||
शहर | करतारपुर, पंजाब | ||
राष्ट्र | पाकिस्तान | ||
निर्देशांक | 32°05′14″N 75°01′00″E / 32.08735°N 75.01658°Eनिर्देशांक: 32°05′14″N 75°01′00″E / 32.08735°N 75.01658°E | ||
वेबसाइट | |||
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अवस्थिति
संपादित करेंपाकिस्तान के नारोवाल जिले में बसा करतारपुर पाकिस्तान स्थित पंजाब में आता है।यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है।जहां पर आज गुरुद्वारा है वहीं पर 22 सितंबर 1539 को गुरुनानक देवजी ने आखिरी सांस ली।यह गुरुद्वारा रावी नदी के करीब स्थित है और डेरा साहिब रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी चार किलोमीटर है। यह गुरुद्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है। श्राइन भारत की तरफ से साफ नजर आती है।
इतिहास
संपादित करेंमान्यता के अनुसार
- जब नानक जी ने अपनी आखिरी सांस ली तो उनका शरीर अपने आप गायब हो गया और उस जगह कुछ फूल रह गए। इन फूलों में से आधे फूल सिखों ने अपने पास रखे और उन्होंने हिंदू रीति रिवाजों से गुरु नानक जी का अंतिम संस्कार किया और करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब में नानक जी की समाधि बनाई।
- वहीं, आधे फूलों को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुस्लिम भक्त अपने साथ ले गए और उन्होंने गुरुद्वारा दरबार साहिब के बाहर आंगन में मुस्लिम रीति रिवाज के मुताबिक कब्र बनाई।
- गुरु नानक जी ने इसी स्थान पर अपनी रचनाओं और उपदेशों को पन्नों पर लिख अगले गुरु यानी अपने शिष्य भाई लहना के हाथों सौंप दिया था।यही शिष्य बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए।
- इन्हीं पन्नों पर सभी गुरुओं की रचनाएं जुड़ती गई और दस गुरुओं के बाद इन्हीं पन्नों को गुरु ग्रन्थ साहिब (Gur Granth Sahib) नाम दिया गया,जिसे सिख धर्म का प्रमुख धर्मग्रंथ माना गया।[2]
1,35,600 रुपए की लागत से तैयार इस गुरुद्वारे की रकम को पटियाल के महाराज सरदार भूपिंदर सिंह की ओर से दान में दिया गया था।बाद में साल 1995 में पाकिस्तान की सरकार ने इसकी मरम्मत कराई थी।और साल 2004 में यह काम पूरा हो सका। हालांकि इसके करीब स्थित रावी नदी इसकी देखभाल में कई मुश्किलें भी पैदा करती है। साल 2000 में पाकिस्तान ने भारत से आने वाले सिख श्रद्धालुओं को बॉर्डर पर एक पुल बनाकर वीजा फ्री एंट्री देने का फैसला किया था। साल 2017 में भारत की संसदीय समिति ने कहा कि आपसी संबंध इतने बिगड़ चुके हैं कि किसी भी तरह का कॉरीडोर संभव नहीं है।
भारत सरकार पंजाब के गुरदासपुर में स्थित करतारपुर कॉरिडोर अंतरराट्रीय बॉर्डर तक निर्माण करेगी। [3] गरुनानक देव ने करतारपुर को बसाया।यहीं पर नानक की मिट्टी भी है
चित्रावली
संपादित करें-
गुरुद्वारा दरबार साहिब परिसर का पूरा दृश्य
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करतारपुर कॉरिडोर बनने से पहले का दृश्य
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प्रवेश द्वार
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सिखों के पांच पहिचान चिह्नों में से एक सिरी साहब (छोटी किरपान) का कलात्मक रूप
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सरोवर साहिब
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लंगर हाल
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बाबा नानक का कुँआं
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खेती साहिब जहाँ गुरू नानक देव जी खेती करते रहे हैं
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गुरुद्वारा दरबार साहिब का अंदर का दृश्य
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दीवान हाल
संदर्भ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 5 नवंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 नवंबर 2019.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 30 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 दिसंबर 2019.
- ↑ https://hindi.oneindia.com/news/pakistan/kartarpur-sahib-corridor-know-why-the-holy-shrine-is-so-important-sikh-community/articlecontent-pf151673-471643.html