करसनदास मानेक (२८ नवम्बर १९०१ - १८ जनवरी १९७८) गुजराती भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार एवं कवि थे।[1] उनका जन्म तत्कालीन भारत के कराची शहर (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था। गुजराती साहित्य में नवलिका, निबंध आदि क्षेत्र में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है।

करसनदास नरसिंह मानेक
जन्म२८ नवम्बर १९०१
कराची
मौत१८ जनवरी १९७८
वडोदरा
दूसरे नामवैशम्पायन
पेशाआचार्य, संपादक
भाषागुजराती
राष्ट्रीयताभारतीय
नागरिकताभारतीय
शिक्षास्नातक
उच्च शिक्षाडी॰ जे॰ विश्वविद्यालय, कराची
विधाकाव्य, नवलिका, निबंध
उल्लेखनीय कामs'खाख ना पोयणा' (खण्ड काव्य), 'आलबेल', 'महोबतना मांडवे', 'वैशम्पायननी वाणी', 'मेघधनुष्य', 'अहो रायजी सुनिए', 'कल्याणयात्री', 'मध्याह्न', 'राम तारो दिवड़ों'
  1. "કરસનદાસ માણેક" [करसनदस मानेक] (गुजराती में). गुजराती साहित्य परिषद. मूल से 1 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 अप्रैल 2018.