करेंसी बिल्डिंग, कोलकाता

करेंसी बिल्डिंग (अंग्रेजी: Currency Building), एक शानदार तीन मंजिला इमारत है, जिसे इतालवी वास्तु शैली में डिजाइन किया गया है। यह कोलकाता के डलहौज़ी स्क्वायर (बीबीडी बाग) में स्थित है।[1] इमारत को 1833 में पहले पहल आगरा बैंक लिमिटेड के कार्यालय के रूप में बनाया गया था, लेकिन जब सरकार ने 1868 में अपने मुद्रा विभाग के लिए आगरा बैंक लिमिटेड से इसका एक बड़ा हिस्सा अधिग्रहित कर लिया तो इसका नाम बदलकर करेंसी बिल्डिंग कर दिया गया। आजकल भवन के नवीकरण का कार्य चल रहा है जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जा रहा है। वर्तमान में इस इमारत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का क्षेत्रीय कार्यालय कार्यरत है और इमारत के अंदर बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर कड़ाई से प्रतिबंधित लागू है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की योजना पुनर्निर्मित इमारत को दुर्लभ पुरातात्विक मूर्तियों का एक संग्रहालय बनाने की है।[2]

करेंसी बिल्डिंग
কারেন্সী বিল্ডিং

करेंसी बिल्डिंग का एक दृश्य
सामान्य विवरण
वास्तुकला शैली इतालवी
स्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल
उच्चता 0 मी॰ (0 फीट)
निर्माण सम्पन्न 1833
स्वामित्व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

इमारत का निर्माण वर्ष 1833 में लॉर्ड विलियम बेंटिंक ब्रिटिश के भारत के गवर्नर जनरल के काल के दौरान इतालवी वास्तु शैली के अनुसार किया गया था। इस खूबसूरत इमारत को मूल रूप से आगरा बैंक के कार्यालय के लिए बनाया गया था लेकिन 1868 में सरकार ने इसके एक बड़े भाग को अधिग्रहित कर उसे सरकारी कागजी मुद्रा को जारी और विनिमय करने वाले कार्यालय में तबदील कर दिया। तत्पश्चात इसे भारतीय रिज़र्व बैंक का प्रथम कार्यालय बनाया गया और यह सिलसिला 1937 तक चला।

यह तीन मंजिला इमारत डलहौजी स्क्वायर के दक्षिणी-पूर्व कोने में स्थित है। पिटवां लोहे से बने विशाल द्वार, ईंटों से बनी विशाल मेहराबें और नक्काशीदार विनीशियाई खिड़कियां इसके मुख्य आकर्षण हैं। इसकी छत लोहे की मेहराबदार धरन पर टिकी थी और फर्श को संगमरमर और चुनार बलुआ पत्थर से बनाया गया था। आयुक्त का निवास भी इसी इमारत में था। ऊपरी मंजिल के कुछ हिस्से को इतालवी संगमरमर से बनाया गया था। आंगन में स्थित केंद्रीय कक्ष को बड़े गुंबदों के ऊपर स्थित रोशनदानों के माध्यम से प्रकाश मिलता था। दूसरी मंजिल भी इसी तरह से बनी है। इमारत के कमरे काफी बड़े हैं और इनका फर्श इतालवी संगमरमर से निर्मित है।

बहुमूल्य पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व के बावजूद, इस इमारत को कई सालों तक उपेक्षा का सामना करना पड़ा और एक समय पर तो इसका उपयोग केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग द्वारा एक भंडार के रूप में भी किया जाता था। इमारत की मेहराबों और गुंबदों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था और पूरे भवन को वनस्पति की मोटी चादर ने अपने में समा लिया था।

केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग की योजना इस इमारत को गिराकर इस स्थान पर एक आधुनिक बहुमंजिला इमारत बनाने की थी और इसके लिए उन्होने इसे ध्वस्त करना भी शुरू कर दिया था लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के हस्तक्षेप के कारण उन्हें यह योजना रोकनी पड़ी। 1998 में पूरे ढांचे को एक विरासत भवन और राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया, और इस प्रकार यह एक संरक्षित स्थान बन गया। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने 2003 में इसका प्रभार ग्रहण किया लेकिन उन्हें इसका कब्ज़ा 2005 में ही मिल पाया।

भवन का नवीनीकरण पुरानी तस्वीरों की मदद से किया जा रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इमारत के क्षतिग्रस्त हिस्से की मरम्मत और ध्वस्त हिस्सों के पुनर्निर्माण करने की योजना बनाई थी। चूने की लिपाई वाली अंदरूनी दीवारों की सतह, फर्श और सड़ने वाले लकड़ी की सीढ़ियों की मरम्मत बहुत सावधानी से की जानी थी। मरम्मत कार्य अभी भी चल रहा है लेकिन प्रगति बहुत धीमी है। चूने के गारे से काम करने वाले मिस्त्री आजकल बहुत कम रह गये हैं इसलिए भी काम की रफ्तार सुस्त है। आर एन मुखर्जी रोड से सटे बाहरी और आंतरिक हिस्से की मरम्मत का कार्य पूरा हो चुका है।

अब तक लगभग 30 प्रतिशत बहाली का काम पूरा हो गया है और अब मेहराब को बहाल करने के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया गया है। यह एक बहुत ही जटिल काम है, यह भी सुनिश्चित किया गया है कि मेहराब का वक्र और ऊंचाई न बदले।

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 30 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 मार्च 2017.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 30 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 मार्च 2017.

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें