वह विद्युत मोटर जो किसी गाड़ी (जैसे रेलगाड़ी या विद्युत से सड़क पर चलने वाली कोई गाड़ी) को चलाने (propulsion) के लिए उपयोग की जाती है, उसे कर्षण मोटर (traction motor) कहते हैं।

इस चित्र में PRR DD1 विद्युत रेलगाड़ी के कर्षण मोटर तथा उससे जुड़े अवयव दिखाए गये हैं। स्पष्टता के लिए शेष भाग नहीं दिखाये गये है।

सबसे पहले कर्षण के लिए डीसी सीरीज मोटर का उपयोग किया गया क्योंकि इसकी विशेषता है कि यह कम चाल पर अधिक बलाघ्र्ण (टॉर्क) उत्पन्न करती है और अधिक चाल पर कम बलाघूर्ण। और यही चीज गाड़ियों के लिए बहुत उपयोगी है (उन्हें कम चाल पर अधिक बलाघुर्ण लगाना पड़ता है और अधिक चाल पर कम बलाघुर्ण)।

बाद में एक फेजी प्रत्यावर्ती धारा से चलने वाला सीरीज मोटर का उपयोग किया गया। रचना की दृष्टि से यह डीसी सीरीज मोटर ही है जो डीसी के बजाय एक-फेजी एसी से चलायी जाती है। चूंकि डॅसी सीरीज मोटर एसी और डीसी दोनों से चलायी जा सकती है, इसलिए इसे 'यूनिवर्सल मोटर' भी कहते हैं। किन्तु प्रत्यावर्ती धारा से चलायी जाने वाली मोटरों की कोर ठोस लोहे की नहीं बनायी जाती बल्कि पट्टलित लोहे की बनायी जाती है ताकि भंवर धारा तथा हिस्टेरिसिस से होने वाली विद्युत-शक्ति का ह्रास कम किया जा सके।

कर्षण के लिए पहले प्रेरण मोटर तथा तुल्यकालिक मोटर का उपयोग नहीं किया जाता था क्योंकि इनकी बलाघूर्ण-चाल वैशिष्ट्य इस कार्य के लिए उपयुक्त नहीं था। किन्तु उत्कृष्ट अर्धचालक युक्तियों के आ जाने से और डिजिटल इलेक्ट्रॉनिकी में अत्यन्त विकास के परिणामस्वरूप अब परिवर्तनशील चाल ड्राइव का विकास हो गया है जिसके साथ अब ये मोटरें भी कर्षण के काम में आने लगीं हैं।