कल्कि पुराण

श्री श्री पराशुकली भगवान कल्कि अवतार संपन

कल्कि पुराण हिन्दुओं के विभिन्न धार्मिक एवं पौराणिक ग्रंथों में से एक हैं यह एक उपपुराण है। इस पुराण में भगवान विष्णु के दसवें तथा अन्तिम अवतार की भविष्यवाणी की गयी है और कहा गया है कि विष्णु का अगला अवतार (महा अवतार) "कल्कि अवतार होगा। इसके अनुसार ४,३२० वीं शती में कलियुग का अन्त के समय कल्कि अवतार लेंगें। कल्कि जन्म से ही 64 कलाओ से युक्त होंगे इससे यह स्पष्ट होता है कि उनके जन्म के समय सभी ग्रह उच्च अवस्था मे होंगे या मूल त्रिकोण में हों । 2014 के बाद यह सन 2599 ई में ही यह संभव होगा जब गुरु व शनि अपनी उच्च राशियों में एक ही साथ हो। तो यह माना जा सकता है की या तो कल्कि जी का जन्म हो चुका है या होने वाला हैं।

कल्कि पुराण
लेखकवेदव्यास
भाषासंस्कृत
शृंखलापुराण
विषयविष्णु भक्ति
शैलीहिन्दू धार्मिक ग्रन्थ
प्रकाशन स्थानभारत
 
हाथ में तलवार लिये हुए कलि राक्षस

इस पुराण में प्रथम मार्कण्डेय जी और शुक्रदेव जी के संवाद का वर्णन है। कलयुग का प्रारम्भ हो चुका है जिसके कारण पृथ्वी देवताओं के साथ, विष्णु के सम्मुख जाकर उनसे अवतार की बात कहते है। भगवान विष्णु के अंश रूप में ही सम्भल गांव में कल्कि भगवान का जन्म होता है। उसके आगे कल्कि भगवान की दैवीय गतिविधियों का सुन्दर वर्णन मन को बहुत सुन्दर अनुभव कराता है।

भगवान् कल्कि विवाह के उद्देश्य से सिंहल द्वीप जाते हैं। वहां जलक्रीड़ा के दौरान राजकुमारी पद्यावती से परिचय होता है। देवी पद्यिनी का विवाह कल्कि भगवान के साथ ही होगा। अन्य कोई भी उसका पात्र नहीं होगा। प्रयास करने पर वह स्त्री रूप में परिणत हो जाएगा। अंत में कल्कि व पद्यिनी का विवाह सम्पन्न हुआ और विवाह के पश्चात् स्त्रीत्व को प्राप्त हुए राजगण पुन: पूर्व रूप में लौट आए। कल्कि भगवान पद्यिनी को साथ लेकर सम्भल गांव में लौट आए। विश्वकर्मा के द्वारा उसका अलौकिक तथा दिव्य नगरी के रूप में निर्माण हुआ।

हरिद्वार में कल्कि जी ने मुनियों से मिलकर सूर्यवंश का और भगवान राम का चरित्र वर्णन किया। बाद में शशिध्वज का कल्कि से युद्ध और उन्हें अपने घर ले जाने का वर्णन है, जहां वह अपनी प्राणप्रिय पुत्री रमा का विवाह कल्कि भगवान से करते हैं।

उसके बाद इसमें नारद जी, आगमन् विष्णुयश का नारद जी से मोक्ष विषयक प्रश्न, रुक्मिणी व्रत का प्रसंग और अंत में लोक में सतयुग की स्थापना के प्रसंग को वर्णित किया गया है। वह शुकदेव जी की कथा का गान करते हैं। अंत में दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और शर्मिष्ठा की कथा है। इस पुराण में मुनियों द्वारा कथित श्री भगवती गंगा स्तव का वर्णन भी किया गया है। पांच लक्षणों से युक्त यह पुराण संसार को आनन्द प्रदान करने वाला है। इसमें साक्षात् विष्णु स्वरूप भगवान कल्कि के अत्यन्त अद्भुत क्रियाकलापों का सुन्दर व प्रभावपूर्ण चित्रण है। जो कल्कि पुराण का अध्ययन व पठन करते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं॥ जय कल्कि महाराज


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