"कसुम्बी" या "कसुम्बी अलीपुर" कसुम्बी अलीपुर गाँव भारत के राजस्थान में नागौर जिले की लाडनूं तहसील में स्थित है। यह उप-जिला मुख्यालय लाडनूं से 12 किमी और जिला मुख्यालय नागौर से 102 किमी दूर स्थित है।

"कसुम्बी" "कसुम्बी अलीपुर"
—  गाँव  —
निर्देशांक: (निर्देशांक ढूँढें)
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य राजस्थान
ज़िला नागौर जिला
सरपंच गिरधारी लाल राहड़
जनसंख्या 3,858 (2011 के अनुसार )

जनगणना संपादित करें

जनगणना 2011 की जानकारी के अनुसार कसुम्बी अलीपुर गाँव की कुल आबादी 3,858 है, तथा स्थान कोड या गाँव कोड 082392 है। 2009 के आंकड़ों के अनुसार, कसुम्बी अलीपुर, कसुम्बी अलीपुर गाँव की ग्राम पंचायत है।

भौगोलिक क्षेत्रफल संपादित करें

गाँव का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 1598.38 हेक्टेयर है। कसुम्बी अलीपुर गाँव में लगभग 633 घर हैं। 2019 के आंकड़ों के अनुसार, कसुम्बी अलीपुर गांव लाडनूं विधानसभा और नागौर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है। लाडनूं कसुम्बी अलीपुर से निकटतम शहर है जो लगभग 12 किमी दूर है।


:-!9/03/2024

जानकारी प्रकाशित चौधरी भंवर लाल गौरा (कसुबी जाखला) द्वारा इतिहास के पुराने पन्नों से लिया गया है 19/03/2024

धन्नावंशी स्वामी जनगणना कसूम्बी (लाडनूँ, नागौर)


ऐतिहासिक रहा है कसूंबी गांव


इतिहास में कुछ पृष्ठ दबे छुपे रह जाते हैं। पांच सौ वर्ष पूर्व सुजानगढ, रतनगढ़, श्रीडूंगरगढ़, बीदासर आदि ये शहर बसे हुए नहीं थे। पर छापर, चाड़वास, द्रोणपुर, लाडनूं, कसूंबी इस क्षेत्र के पुराने बड़े गांव थे और इन्हें चौहानवंशीय मोहिल राजपूतों की राजधानी भी कह सकते हैं। मोहिलों का आधिपत्य 1440 गांवों पर था तो क्षेत्र भी छोटा नहीं था। लाडनूं तो तीन हजार साल पुरानी सभ्यता का साक्षी है। लाडनूं के निकटवर्ती अन्य कुछ गांवों में भी प्राचीन सभ्यता के दर्शन होते हैं। ऐसा ही एक गांव है, कसूंबी। सुजानगढ से छह किलोमीटर ठीक दक्षिण में। सुजानगढ और कसूंबी के मध्य सुन्दर ताल बिछा हुआ है। इस ताल के दक्षिणी-पूर्वी कोने पर कसूंबी और दक्षिणी पश्चिमी कोने पर जसवंतगढ बसा हुआ है। जसवंतगढ, सुजानगढ के बहुत बाद में बसा हुआ कस्बा है। जसवंतगढ के निकट ही कसूंबी है। कसूंबी में इतिहास के अनेक साक्ष्य यत्र तत्र बिखरे हुए हैं। कसूंबी के ताल में दो प्राचीन बावड़ियां हैं, उनके निकट प्राचीन जोधपुरी पत्थर से बने हुए चार घाणे पड़े हैं। लगभग 4×4 फीट लम्बाई-चौड़ाई-खड़ाई के घाणे आपको आश्चर्य में डाल देते हैं। इनमें कसूंबा घोटा जाता था। राजपूत कसूमल( केसरिया) रंग के साफे पहनकर युद्ध लड़ने जाते थे। छींपा जाति के लोग बड़ी मात्रा में यहां वस्त्र रंगने का कार्य करते थे। जिनमें प्रधानता कसूमल रंग की होती। इसलिए इस गांव का नाम कसूंबी पड़ा। इसी ताल के निकट कसूमल नाम की घास हुआ करती। उस घास और रोहिड़ा के फूलों के प्राकृतिक मिश्रण से कसूमल रंग तैयार किया जाता था।

कसूंबी की बावड़ियां जलापूर्ति में सहायक थीं। बावड़ियों के मध्य विशाल पत्थरों को जोड़ कर बनाया गया, राधाकृष्ण का मंदिर था। यह वही मंदिर था, जहां संवत 1532 में टौंक के धुआं कलां क्षेत्र से आए धनावंशी स्वामी समाज के पंथ प्रवर्तक धनाजी महाराज ने विश्राम लिया था। कहते हैं उनका पूर्ण विश्राम भी यहीं हुआ। यहां संतों की अनेक (लगभग बीस) समाधियों में उनकी भी कोई एक समाधि है। बीसों संतों की समाधियां एक टीले में दब गई, जबकि तीन चार दिखाई भी देती हैं। निश्चित ही यहां कभी साधु मंडली रहती थी और बहुत सुन्दर धार्मिक वातावरण सैकड़ों वर्षों तक रहा। समाधियों में लगे चरण चिन्ह इस बात की पुष्टि करते हैं। साधु जन पवित्र जल प्राप्ति के लिए बावड़ियों का पानी स्वयं निकालकर लाया करते। धनाजी अद्भुत प्रभु भक्त संत थे, जिन्होंने अपने स्वभाव से भगवान को अपने वश में कर लिया था तथा रोज अपने हाथ से उन्हें भोजन कराया करते थे। भक्तमालों में उनकी भक्ति गाथाएँ भरी पड़ी हैं। वे ही भक्त धनाजी अपने उत्तर जीवन काल में कसूंबी में रहे और यहीं उनका जीवन शेष हुआ। यहां उनका खेत था। प्रख्यात इतिहासकार गोविंद अग्रवाल ने भी अपनी विशिष्ट ऐतिहासिक कृति चूरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास में भी यहां धना का खेत होने की पुष्टि की है। ठाकुर जी का सुंदर मंदिर इन बावड़ियों के मध्य था। इसका जीर्णोद्धार करवाने की बजाय इसके बड़े बड़े पत्थरों को तोड़ कर अन्य निर्माण कार्यों में काम ले लिए गए। सुंदर बैल बूटे, मूर्तियां अंकित इस मंदिर के विशाल स्तम्भ आदि यत्र तत्र बिखरे हुए भी पड़े हैं और अपनी धरोहर को न रख पाने की उपेक्षा की कहानी कहते हैं। यहां कसूंबा रंगने के पत्थर के घानों के सम्बन्ध में भी कहा जाता है कि इनकी संख्या दस से अधिक थी, जिन्हें नासमझ लोगों ने तोड़ दिया। कसूंबी में ऐतिहासिक शिलालेख भी बहुत हुआ करते थे। वे सब भी इन वर्षों में काल की भेंट चढ़ गए।