कहार

रवानी क्षत्रिय

'चंद्रवंसी या रवानी (अंग्रेज़ी: ', Ravani or Rawani)[1][2] भारत की गंगा नदी के क्षेत्र से उत्पन्न पालकी धारकों का एक समुदाय है।[3]

यह समुदाय भारत के कुछ हिस्सों में मौजूद हैं, लेकिन मुख्यतः उत्तर भारत में केंद्रित हैं। वे मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के पश्चिम-उत्तरप्रदेश, सरसावा, सहारनपुर, फर्रुखाबाद, कानपुर, मुजफ्फरनगर, शाहजहांपुर, सुल्तानपुर, फैजाबाद, जौनपुर और अंबेडकर नगर जिलों और बिहार और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। इनका इतिहास राजाओ की पालकी अपने कंधों पर ले जाना था,कहार को संस्कृत में स्कंधहार कहते हैं. जिसका तात्पर्य होता है, जो अपने कंधे पर भार ढोता है. दरअसल कहार वह जनजाति है जो कृषि का काम करती थी . खासतौर से पानी के तालाब में सिंघाड़े की पैदावार करने, मछली पकड़ने और पालकी ढोने तथा घरेलु नौकर के रूप में कार्य करना कहारों का मुख्य पेशा हुआ करता था . इस जाति के लोग उलॆखित कार्य करते हुए पाए जाते थे . यही इनका परम्परागत पेशा था . विभिन्न प्रकार के कार्यों को इनके द्वारा किये जाने के कारण स्वाभाविक है कि अलग -अलग जातियां एवं उपजातियां भी अलग -अलग नामो से अस्तित्व में आ गई होंगी. आज हम इस तरह के कार्य करने वालो को अनेक नामों से जानते हैं .कहार जाति के लोगों को महरा ( जो संस्कृत शब्द महिला से लिया गया है ) के नाम से भी जाना गया है.घरेलु काम करने से महिलाओं के बीच रहने के कारण ही इन्हें 'महरा' कहा गया . चूँकि इन्हें अपने मालिक के घर में , जिनके यहाँ यह काम करते थे, मालकिन के शयनकक्ष और महिलाओं के बीच जाने की अनुमति होती थी .महिलाओं के बीच रहने के कारण इनका नाम महरा पड़ गया. कहार को धीमर के नाम से भी जाना जाता है .जोकि संस्कृत के शब्द धीवर से लिया गया है . तात्पर्य यह है कि कहार और धीमर एक ही जाति है नहीं की अलग - अलग. बुंदेलखंड में पहले कहार को मछ्मारा के नाम से जाना जाता था. अर्थात जो मछली मारने या पकड़ने का रोजगार करता हो.कई अन्य छेत्रों में इन्हें सिंघरियां भी कहा गया है. यह नाम इनके द्वारा सिंघाड़े उत्पादन करने के कारण मिला, कहते हैं कि राजाओ की महल में आना जाने लगा रहता था किसके कारण वो अपने आप को कहार ना बोल कर राजाओ के कुल के मानते थे ओर अपने नाम के पीछे राजाओ के वंश से जोड़ते थे जैसे- चंदवंशी, सिंह, राजपुत इत्यादि, j[4]

राजस्थान में कहारों के तीन उप-समुदाय हैं - बुडाना, तुराहा और महार। इन उप-समुदायों में कुलों का समावेश होता है, जिनमें से मुख्य हैं पिंडवाल, बमनावत, कटारिया, बिलावत, कश्यप और ओतासानिया। इनमें से अधिकांश उप-समुदायों की उत्पत्ति राजस्थान में हुई है।[5][6][7][8]

बिहार RTPS 9 के सेवाए के प्रकारसंपादित करें

विभिन्न प्रकार की सेवाएं होती हैं जो सामाजिक, आर्थिक या व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रदान की जाती हैं। निम्नलिखित कुछ आम सेवाएं हैं:

  1. शिक्षा सेवाएं: इनमें स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय जैसे संस्थान शामिल होते हैं जो शिक्षा की सेवाएं प्रदान करते हैं।
  2. स्वास्थ्य सेवाएं: इनमें अस्पताल, चिकित्सा केंद्र, औषधालय जैसे संस्थान शामिल होते हैं जो स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हैं।
  3. सामाजिक सुरक्षा सेवाएं: इनमें पेंशन, बेरोजगारी भत्ता, निरोगी बच्चों का बोनस जैसी सेवाएं शामिल होती हैं।
  4. वित्तीय सेवाएं: इनमें बैंकिंग, बीमा, पेंशन जैसी सेवाएं शामिल होती हैं जो वित्तीय आर्थिक सुविधाओं की सेवाएं प्रदान करती हैं।
  5. राजकीय सेवाएं: इनमें पुलिस, सड़क, पानी, बिजली, गैस, टेलीकॉम जैसी सेवाएं शामिल होती हैं जो सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करती हैं।
  6. सामाजिक सेवाएं:सामाजिक सेवाएं वह सेवाएं होती हैं, जो समाज के लोगों के हित में उपलब्ध कराई जाती हैं। इन सेवाओं का मुख्य उद्देश्य उन लोगों की मदद करना है जो समाज के विभिन्न प्रतिबंधों, आर्थिक संकटों और अन्य कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

जाति प्रमाण पत्र क्या है | उसका लाभ | validity क्या है | कैसे ऑनलाइन आवेदन करे |संपादित करें

जाति प्रमाण पत्र एक आधिकारिक दस्तावेज होता है जिससे किसी व्यक्ति की जाति के प्रमाण के रूप में प्रयोग किया जाता है।

इसे आम तौर पर भारत में जाति प्रमाणपत्र या कास्ट सर्टिफिकेट के नाम से जाना जाता है।

इस प्रमाण पत्र की मदद से एक व्यक्ति अपनी जाति को साबित करता है

और उसे सरकारी योजनाओं और आरक्षण के लाभ का अधिकार होता है।

यह प्रमाण पत्र भारत में अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासतौर पर जब आरक्षण जैसे विषयों पर चर्चा होती है।

जाति,आय एवं आवासीय प्रमाण पत्र की सेवाओं के लिए सबसे अच्छा प्लेटफार्म : RTPS9.COM  ऑनलाइन आवेदन करे

वर्गीकरणसंपादित करें

वे वर्तमान में bihar राज्य में OBC के रूप में वर्गीकृत हैं।[9]

सन्दर्भसंपादित करें

  1. Census of India, 1981: Bihar, Volume 1. Controller of Publications, 1983. 1983. पृ॰ 20.
  2. Saxena, S. C. Handicraft Survey Report: Carpet Craft of Obra Village. Bihar. series-4. Controller of Publications, 1989. पृ॰ 27.
  3. Kumar Suresh Singh (1 January 1998). People of India: Rajasthan. Popular Prakashan. पपृ॰ 467–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7154-769-2. अभिगमन तिथि 28 June 2013.
  4. Kumar Suresh Singh (1998). India's communities. Oxford University Press. पपृ॰ 1443–1448. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-01-9563-354-2.
  5. People of India Rajasthan Volume XXXVIII Part Two edited by B.K Lavania, D. K Samanta, S K Mandal & N.N Vyas page 467 to 470 Popular Prakashan
  6. "Caste certificate of Bajrang Dal convener cancelled". The Hindu. 24 September 2004. अभिगमन तिथि 13 February 2019.[मृत कड़ियाँ]
  7. "Setback for Akhilesh government as High Court stays their order to include 17 sub-castes in the SC category". Financial Express. 24 January 2017. अभिगमन तिथि 2017-02-04.
  8. "UP govt to include 17 other backward castes in SC list". Hindustan Times. PTI. 22 December 2016. अभिगमन तिथि 2017-02-04.
  9. "Inclusion of Castes in SC Category". Press Information Bureau. अभिगमन तिथि 2021-12-30.