क़ाजार राजवंश (फ़ारसी: سلسله قاجاریه‎, सिलसिला क़ाजारिया) तुर्कियाई नस्ल का एक राजघराना था जिसने सन् १७८५ ई॰ से १९२५ ई॰ तक ईरान पर राज किया।[1][2] इस परिवार ने ज़न्द राजवंश के अंतिम शासक, लोत्फ़ अली ख़ान, को सत्ता से हटाकर सन् १७९४ तक ईरान पर पूरा क़ब्ज़ा जमा लिया। १७९६ में मुहम्मद ख़ान क़ाजार ने औपचारिक रूप से ईरान के शाह का ताज पहन लिया। क़ाजारों के दौर में ईरान ने फिर से कॉकस के कई भागों पर हमला किया और उसे अपनी रियासत का हिस्सा बना लिया।[3][4]

मुहम्मद ख़ान क़ाजार इस राजवंश के पहले शासक थे

नाम के बारे में

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"क़ाजार सिलसिला" को अंग्रेज़ी में "Qajar dynasty" (काजार डायनॅस्टी) लिखा जाता है। तुर्की भाषाओँ में "क़ाजार" शब्द का अर्थ "पलायन" (यानि "बचकर भाग निकलना") होता है। राजवंशों को फ़ारसी में "सिलसिला" बुलाया जाता है, क्योंकि इनमें एक ही परिवार के सदस्यों का एक-के-बाद-एक सम्राट बनने का सिलसिला चलता है। "क़ाजार" शब्द के उच्चारण में 'क़' वर्ण के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह 'क' से ज़रा भिन्न है।

करीम ख़ान ज़ंद की मृत्यु के बाद ईरान में कोई एक मजबूत सत्ता नहीं रही थी। करीम ख़ान के उत्तराधिकारी और आग़ा मोहम्मद ख़ान आपस में संघर्ष कर रहे थे। आग़ा मोहम्मद ख़ान को पाँच साल की उम्र में आदिल शाह के सैनिकों ने पकड़ लिया था और उसका वंध्याकरण कर दिया गया था। उसके बाद करीम ख़ान ने उसे बंदी बनाकर रखा। इस दौरान आग़ा ख़ान को राजशाही के बारे में बहुत कुछ पता चला। राजकुशलता के अलावा वो कड़वे विचारों और गुस्सैल प्रवृत्ति का भी बना जो आगे चलकर बहुत तीक्ष्ण हो गया था। उसकी मर्दानगी कभी वापस नहीं आ सकी। जब करीम ख़ान मरा तो आग़ा ख़ान उत्तर की तरफ भाग निकला जहाँ और कई क़ाजार दल मिले। पहले इन्हीं दलों के साथ उसका पारिवारिक झगड़ा भी हुआ था। पहले अपनों के उपर प्रभुत्व जमाने के बाद उसने माजंदरान (कैस्पियन) से ज़ंद शासकों को भगा दिया। सन १७८५ में आग़ा ने इस्फ़हान पर नियंत्रण कर लिया जो फ़ारसी सत्ता का केन्द्र सफ़वियों के समय से ही माना जाता था। इस विजय के परिणाम स्वरूप तेहरान में भी उसका स्वागत हुआ। इसके बाद भी संपूर्ण ईरान पर उसका शासन स्थापित नहीं हुआ। ज़ंद उत्तराधिकारी संपूर्ण रूप से हराए नहीं जा सके थे। लोत्फ़ अली ख़ान, जो करीम ख़ान का चचेरा पोता था ने ज़ंद शक्ति को नियंत्रित किया और शिराज़ से इस्फ़हान पर हमला किया। पर शिराज़ में इसी समय उसके ख़िलाफ़ विद्रोह हुआ और बाग़ियों ने उसके परिवार के लोगों को बंदी बना कर आग़ा ख़ान को सौंप दिया। इसके बाद आग़ा ख़ान ने १७९२ में, ख़ुद दक्षिण का रुख किया और शिराज़ पर आक्रमण के लिए बड़ी सेना लेकर कूच किया। पर्सेपोलिस में जब उसी सेना आराम कर रही थी तो लोत्फ़ ने धावा बोल दिया। पर आग़ा बच निकला और लोत्फ़ पूरब की तरफ भाग गया। इसके बाद करमन पर कब्ज़ा कर आग़ा ख़ान ने बहुत क्रूर व्यवहार किया। लोत्फ़ ख़ान को भी पकड़ लिया गया। सामूहिक यौनकर्म के बाद उसको आमृत यातना दी गई। सन १७९६ में उसका अभिषेक हुआ।

इन्हें भी देखें

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  1. William Bayne Fisher. Cambridge History of Iran, Cambridge University Press, 1993, p. 344, ISBN 0-521-20094-6
  2. Homa Katouzian, "State and Society in Iran: The Eclipse of the Qajars and the Emergence of the Pahlavis", Published by I.B.Tauris, 2006. pg 327: "In post-Islamic times, the mother-tongue of Iran's rulers was often Turkic, but Persian was almost invariably the cultural and administrative language"
  3. Abbas Amanat, The Pivot of the Universe: Nasir Al-Din Shah Qajar and the Iranian Monarchy, 1831-1896, I.B.Tauris, pp 2-3; "In the 126 years between the fall of the Safavid state in 1722 and the accession of Nasir al-Din Shah, the Qajars evolved from a shepherd-warrior tribe with strongholds in northern Iran into a Persian dynasty.."
  4. Choueiri, Youssef M., A companion to the history of the Middle East, (Blackwell Ltd., 2005), 231,516.