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प्राचीन मिस्रियों के धर्म में आत्मा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था, और वे मानते थे कि मनुष्य की मृत्यु के बाद भी उसकी आत्मा के कुछ अंश जीवित रहते थे। मिस्रियों के अनुसार, मनुष्य की आत्मा तीन भागों में बंटी हुई थी: 'का', 'बई' और 'अख'। इनमें से 'का' और 'बई' शारीरिक मृत्यु के बाद भी जीवित रहते थे। 'का' को द्वितीय आत्मा कहा जाता था, और इसे शरीर के साथ जन्म लेने वाली ऊर्जा के रूप में समझा जाता था। 'का' जीवनभर शरीर की रक्षा करता था और जब शरीर मर जाता था, तो भी 'का' जीवित रहता था। इसे प्राचीन मिस्री लिपि में दो ऊपर उठाए हुए हाथों के रूप में चित्रित किया जाता था, जो इस आत्मा की पहचान और शक्ति को दर्शाता था। 'बई' एक और आत्मा थी, जिसे 'स्वभाव' या 'व्यक्तित्व' के रूप में माना जाता था। इस प्रकार, प्राचीन मिस्रियों का विश्वास था कि मृत्यु केवल शारीरिक मृत्यु होती थी, जबकि आत्मा के विभिन्न रूप मृत्यु के बाद भी अस्तित्व में रहते थे और एक नए रूप में जीवन के बाद के सफर की शुरुआत करते थे।[1]
का प्राचीन मिस्रियों के धर्म में द्वितीय आत्मा, जिसका चित्र उनकी लिपि में दो ऊपर उठाए हाथों के रूप में लिखा मिलता है। प्राचीन मिस्री प्राय: तीन आत्माओं में विश्वास करते थे। एक तो शरीर के मरने के साथ ही मर जाया करती थी, पर दो – 'का' और 'बई' – शारीरिक मृत्यु के बाद भी जीवित रहती थीं। 'का' का जन्म शरीर के साथ ही होता था जो जीवनकाल में शरीर की रक्षा करती थी और उसके मर जाने पर भी स्वयं जीवित रह जाती थी।
- ↑ "Bundelkhand News | Bundelkhand 24x7". Retrieved 2025-03-24.