कांठे महाराज
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कांठे महाराज (१८८०-१ अगस्त १९७०) भारत के प्रसिद्ध तबला वादक रहे हैं। ये बनारस घराने से थे। इनका जन्म १८८० में कबीर चौराहा मोहल्ले, वाराणसी में हुआ था।[1] इनके पिता पंडित दिलीप मिश्र भी जाने माने तबला वादक थे। इनकी आरंभिक संगीत शिक्षा बलदेव सहायजी से आरंभ हुई थी। कांठे महाराज को प्रथम संगीतज्ञ माना जाता है, जिन्होंने तबला वादन द्वारा स्तुति प्रतुत की थी।
कांठे महाराज | |
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चित्र:Kanthe maharaj.jpg कांठे महाराज एक संगीत सभा में | |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | बलदेव सहायजी |
प्रसिद्धि का कारण | तबला वादन |
पुरस्कार | संगीत नाटक अकादमी सम्मान - १९६१ |
लगभग ७० वर्ष तक इन्होंने सभी विख्यात गायकों एवं नर्तकों को अपने तबले पर संगति दी। १९५४ में इन्होंने ढाई घंटे लगातार तबला बजाने का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया था।[1] इन्हें सभी शैलियों में तबला वादन पर महारत प्राप्त थी, किंतु इनकी विशेषता बनारस बाज में थी। १९६१ में इन्हें संगीत नाटक अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया था। १ अगस्त, १९७० को ९० वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु हो गयी। इनके भतीजे किशन महाराज भी विख्यात तबला वादक हैं।[2]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ बायोग्राफ़ी ऑफ़ कांठे महाराज Archived 2011-09-14 at the वेबैक मशीन-इन्क्रेडिबल पीपल
- ↑ तबला वादक किशन महाराज नहीं रहे। बीबीसी-हिन्दी, ४ मई २००८