विधिक शिक्षा

विधिक शिक्षा में हिंदी का महत्व
(कानूनी शिक्षा से अनुप्रेषित)

लोगों को विधि के सिद्धान्तों और विधि के व्यवहार की शिक्षा देना विधिक शिक्षा कहलाती है।

कानूनी शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। यह नागरिकों को उनके अधिकारों और कानूनी प्रणाली के ज्ञान से लैस करके उन्हें कानूनी मुद्दों पर काम करने में सक्षम बनाती है। साक्षर नागरिक जो अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूक है, वह अधिक शक्तिशाली होता है। वह सरकार के उन कार्यों की समीक्षा करने में सक्षम है जो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के विरुद्ध हों। कानूनी शिक्षा न केवल लोकतंत्र के स्वस्थ कामकाज को बढ़ावा देती है बल्कि नागरिकों के बीच समानता भी प्रदान करती है, जिससे कानून के शासन का विचार पैदा होता है। न्यायपालिका को लोकतंत्र के संस्थापक स्तंभों में से एक माना जाता है जो बाहरी दबावों से मुक्त है। यह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच न्याय प्रदान करने में सक्षम बनाता है।

भारत में विधिक शिक्षा

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भारत में कानूनी शिक्षा की उत्पत्ति वैदिक युग में हुई थी, जिसमें धर्म की अवधारणा कानूनी संरचना का स्रोत थी। चोल न्याय व्यवस्था वर्तमान भारतीय न्याय व्यवस्था की अग्रदूत थी। "कानून के समक्ष सभी समान हैं" या वर्तमान ‘विधि का शासन' का सिद्धान्त चोल साम्राज्य में अपनाया गया था।

भारत की कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर पर बनायी गयी स्थायी संसदीय समिति ने फरवरी २०२४ में भारत में कानूनी शिक्षा पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें महत्त्वपूर्ण सिफारिशें प्रस्तावित की गईं हैं।

समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित हैं-

  • कानूनी शिक्षा विनियमन का पुनर्गठन : भारतीय बार काउंसिल की नियामक शक्तियों को सीमित करते हुए, कानूनी शिक्षा के गैर-मुकदमेबाज़ी पहलुओं की देखरेख के लिये राष्ट्रीय कानूनी शिक्षा और अनुसंधान परिषद (NCLER) के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया है।
  • कानून के विद्यालयों के भीतर अनुसंधान क्षमता को बढ़ाने के लिये शीर्ष शोधकर्त्ताओं को संकाय के रूप में भर्ती करना चाहिये।
  • विधि विद्यालयों को समर्थन देने के लिये राज्य द्वारा वित्त पोषण में वृद्धि की आवश्यकता है।
  • छात्रों और संकाय दोनों के लिये अंतर्राष्ट्रीय विनिमय कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिये भारतीय कानून स्कूलों में वैश्विक पाठ्यक्रम को शामिल करना चाहिये।
  • व्यापक कानूनी शिक्षा के लिये छात्रों को विविध कानूनी प्रणालियों से परिचित कराना चाहिये।
  • स्नातक पाठ्यक्रमों में कानून और चिकित्सा, खेल कानून, ऊर्जा कानून, तकनीकी कानून/साइबर कानून, वाणिज्यिक तथा निवेश मध्यस्थता, प्रतिभूति कानून, दूरसंचार कानून एवं बैंकिंग कानून जैसे विषयों को अनिवार्य रूप से शामिल करने का सुझाव दिया गया है।
  • व्यापक पाठ्यक्रम विकास के लिये सरकारों, विश्वविद्यालयों और BCI के बीच सहयोग आवश्यक है।
  • विश्वविद्यालयों को मूट कोर्ट (न्यायालय की प्रतिकृति) प्रतियोगिताओं जैसे व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को पाठ्यक्रम में एकीकृत करने के लिये BCI के साथ सहयोग करना चाहिये। ये कार्यक्रम छात्रों को नकली/काल्पनिक न्यायालय कक्ष सेटिंग में कानूनी सिद्धांत लागू करने, मौखिक वकालत और समीक्षात्मक/समालोचनात्मक सोच कौशल को बढ़ाने के अवसर प्रदान करते हैं।
  • समिति ने कानून के नये कॉलेजों की मान्यता में मात्रा से अधिक गुणवत्ता को प्राथमिकता देने पर बल दिया है।
  • समिति ने कहा है कि अवमानक/निम्न-स्तरीय लॉ कॉलेजों के प्रसार को रोकने के लिये तत्काल उपाय किये जाने चाहिये।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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