कायाकल्प आयुर्वेद में वर्णित एक प्रकार की चिकित्सा विधि है जिससे नवजीवन प्राप्त होता है।

कायाकल्प प्राचीन काल में आयुर्वेद में कायाकल्प चिकित्सा का महत्वपूर्ण स्थान था। जो व्याधि विविध चिकित्साविधियों से दूर नहीं हो पाती वह कायाकल्प चिकित्सा से समूल नष्ट हो जा सकती है, ऐसा कुछ चिकित्सकों का विश्वास था।

आयुर्वेद दर्शन के अनुसार मानव शरीर जिन तत्वों से बना है उनकी शरीर में न्यूनता अथवा अधिकता से ग्रंथियों और कोशिकाएँ विकृत हो जाती हैं जिससे रोगो की उत्पत्ति होती है। अत: तत्वों की न्यूनता में शरीर में यदि उन तत्वों को अथवा समान गुणधर्मवाले पदार्थों का प्रविष्ट या सेवन कराया जाए अथवा तत्वों की अधिकता में किसी उपाय से उन्हें शरीर से बाहर निकाल दिया जाए तो तत्वों का संतुलन फिर से स्थापित किया जा सकता है और उससे स्वास्थ्य, स्मृति, सौंदर्य आदि फिर से लौटाए जा सकते हैं और आकृति में अभिनवता लाई जा सकती है।

कायाकल्प के दो भेद कहे गए हैं। एक तो वातातपिक और दूसरे को कुटीरप्रावेशिक कहते हैं। पहले प्रकार का संपादन हर स्थान में किया जा सकता है, पर दूसरे प्रकार के लिए एक विशेष प्रकार की निश्चित माप की कुटी बनाई जाती है जिसमें मनुष्य को कुछ निश्चित काल तक निवास करना पड़ता है। इन चिकित्साओं में आहार का नियंत्रण और उपयुक्त वानस्पतिक औषधियों, पारद की पर्पटियो, दूध, मट्ठा (छाछ) आदि विभिन्न प्रकार के रसायनों का सेवन कराया जाता है।