कारीला माता मदिंर अशोकनगर

करीला माता का मंदिर मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले में स्थित है। अशोकनगर से 35 किमी की दूरी पर है एवं विदिशा से 80 किमी की दूरी पर स्थित है। एेसी मान्यता है कि माता सीता ने लव और कुश को यहां जन्‍म दिया था । जानकी माता का मंदिर खुली एवं ऊचीं नीची पहाडियो के विचो वीच सबसे उची पहाडि पर स्थ्ति है। करीला को दीपनाखेडा के महंत ने लगभग 120 वर्ष पूर्व खोजा था उन्हें जानकी मईया ने स्वपन दिया था की में यहां पहाड़ी पर हूं तब महाराज जी दीपनखेड़ा के लोगों के साथ जाकर मन्दिर खोजा तथा जंगल को काटा रास्ता बनाया। करिला माता मन्दिर से नीचे की ओर एक तालाव हे जो पहड से देखने में बहुत सुन्‍दर दिखाइ देता है। यह पर रंगपंचमी के दिन से बहूत बिशाल राई (नित्‍गानये) हाजरो की संख्‍या में नित करती यह मेला लगभग 1 महिने चलता हे जिसमे लाखो भाक्‍तजन भाग लेते हे। यह मेला रात के समय लगता हे। कारीला माता मदिंर से 8 किलो मी कि दूरी पर ग्राम दीपनाखेडा में माता बीजासन का फरवरी मार्च के महिने में माघ छठ पर मेला लगता हे यह पर भी हाजरो की संख्‍या में भाक्‍तजन मेले का आन्‍नद लेने के लीए पहूचते हैं। माता बीजासन दिन में तीन वार रूप बदलती हे एवम रात्रि 12 बजे महाराती होती है प्राचीन काल में दीपनाखेड़ा में आक्रमण हुआ जिसका बदला लेने एवम गांव की रक्षा करने के लिए ठाकुरो के पूर्वज ठाकुर दिलीप सिंह रघुवंशी ने जो बिजासन मां के परम भक्त थे उन्होने मां से आह्वान किया जिससे प्रसन्न होकर मैया ने उन्हें खड़क प्रदान किया मईया के आशीर्वाद से दीपनाखेड़ा की छोटी सी सेना ने टोंक की सेना को खदेड़ दिया और सिरोंज तक टोंक की सेना को भगया तब से फिर टोंक के नवाब ने गांव की तरफ नही देखा तब से ही माघ छठ का मेला लगता है एवम रात्रि 12 बजे मैया की महाआरती होती है! दीपनाखेड़ा में चार गढ़ी (छोटे किले)है जिसमे रघुवंशी ठाकुर निवास करते है तथा गांव में कई प्राचीन छतरी है मंदिर है तथा ठाकुरों की पूर्वज सती हुई थी उनका भी प्राचीन मंदिर है इस चमतकारी स्‍वरूप को देख भाक्‍तजन अपने मन के मनोराथ पूर्ण कारते हैं दीपनाखेड़ा रघुवंशी ठाकुरों की कर्म भूमि रही है तथा 1956 से पहले राजस्थान का हिस्सा रहा है यहां आज भी राजस्थान की झलक देखने को मिलती है!