कारेज़

शुष्क या अर्ध-शुष्क और गरम इलाक़ों में नियमित रूप से लगातार पानी उपलब्ध कराने की एक व्यवस्था

कारेज़ (फ़ारसी: کاریز, karez), कारीज़ या क़नात (अरबी: قناة‎, qanat) शुष्क या अर्ध-शुष्क और गरम इलाक़ों में नियमित रूप से लगातार पानी उपलब्ध कराने की एक व्यवस्था है।

ईरान के फ़ीन शहर में कारेज़ का सतह मुख - यह कारेज़ कई हज़ार वर्ष पहले बनाई गई थी
कारेज़ में एक ऊँचे भूमिगत जलाशय से पानी ज़मीन के नीचे बने एक सुरंग-नाले के ज़रिये निचले इलाक़े में पहुँचाया जाता है
शिंजियांग में तुरफ़ान के पास एक करेज़ की भूमिगत नहर के ऊपर चलने की जगह बनाने के लिये फट्टे लगाए गए हैं

कारेज़ बनाने के लिये पहले अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्र में ज़मीन के नीचे पानी का स्रोत ढूंढा जाता है और फिर ज़मीन के नीचे ही नाला निकालकर उस पानी को दूर तक किसी निचले क्षेत्र में ले जाया जाता है और वहाँ जल के बाहर निकलने का एक मुख होता है। इस मुख से पानी गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से स्वयं ही उँचे जलाशय से निचले क्षेत्र की तरफ़ बहकर निकलता रहता है। नाला धरती ने नीचे होने के कारण शुष्कता और गरमी के बावजूद भी पानी वाष्पीकरण (इवैपोरेशन) से खोया नहीं जाता, जबकि यदि नाला ज़मीन से ऊपर होता तो बहुत-सा भाप बनकर ग़ायब हो जाता। नाला बनाने के लिये और उसकी देखरेख के लिये हर थोड़ी दूरी पर नाले से धरती की सतह तक एक खोल बनाया जाता है, जो वाष्पीकरण से बचने के लिये अक्सर ऊपर से ढका जाता है। ईरान में अधिकतर कारेज़ ५ किमी से कम दूरी के भूमिगत नाले रखते हैं लेकिन केरमान के पास का एक कारेज़ ७० किमी लम्बा है।[1]

आविष्कार और फैलाव

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कारेज़ तकनीक सबसे पहले ईरान में १००० ईसापूर्व के आसपास खोजी गई थी और वहाँ से अन्य क्षेत्रों में फैल गई।[2] ध्यान दें कि कारेज़ तभी पानी का बन्दोबस्त कर सकती है जब भूमिगत जलाशय उस स्थान से अधिक ऊँचाई पर हो जहाँ पानी सिन्चाई व अन्य प्रयोगों के लिये पहुँचाना है।[3] इसलिये यह भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी मैदानी इलाक़ों में कम दिखते है। सर्द या ग़ैर-शुष्क क्षेत्रों में पानी वाष्पीकरण से कम खोया जाता है, इसलिये हिमालय क्षेत्र में नहर-नाले ज़मीन से ऊपर ही बनाए जाते हैं और कारेज़ बनाने के लिये मेहनत करने की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन दक्षिण भारत में कर्नाटक जैसे इलाक़ों में और पश्चिमोत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में बलोचिस्तान जैसे क्षेत्रों में कारेज़ मिलते हैं।[4] इसके अलावा उत्तर अफ़्रीका में कारेज़ बहुत प्रचलित हैं, जहाँ वे 'क़नात' के नाम से जाने जाते हैं। यह मध्य एशिया में कज़ाख़स्तान और शिंजियांग जैसे क्षेत्रों में भी बहुत मिलते हैं।

इन्हें भी देखें

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  1. The Middle East: a geographical study, Peter Beaumont, Gerald Henry Blake, John Malcolm Wagstaff, Wiley, 1976, ISBN 9780471061175, ... Although qanats with lengths of more than 50 km have been described from the Kerman region, it would seem that the vast majority are between one and five kilometres in length ...
  2. English, Paul Ward, The Origin and Spread of Qanats in the Old World Archived 2015-11-17 at the वेबैक मशीन, in Proceedings of the American Philosophical Society Archived 2013-06-18 at the वेबैक मशीन, Vol. 112, No. 3 (Jun. 21, 1968), pp. 170–181, (at JSTOR)
  3. Al-ʻUlā: an historical and archaeological survey with special reference to its irrigation system, Abdallah Adam Nasif, King Saud University, 1988, ... If the surveyor is satisfied that he has found a genuine aquifer, then the alignment and grade of the qanat must be established. The water in the well must be at a higher level than the land to be irrigated by the qanat ...
  4. African elites in India: Habshi Amarat, Kenneth X. Robbins, John McLeod, Mapin, 2006, ISBN 9781890206970, ... There is no doubt that the Iranians introduced this technique to the basalt parts of the Deccan, with adaptations to the local geology. In Iran, the qanat drains a layer of water within the rock of the foothills; in the basalt hills of the Deccan, it usually drains water-bearing fissures in the rock. The deepest qanat in India, and probably also the oldest, supplies the fort of Bidar ...