पवन भारत के एक युवा कार्टूनकार हैं। वे बिहार के उन चंद कार्टूनिस्टों में से हैं, जिन्होंने कार्टून कला को बिहार में आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया। वे हिन्दुस्तान नामक हिन्दी समाचारपत्र के लिए कार्टून बनाते हैं। 13 साल की उम्र में कार्टून बनाने के लिए घर से भागने वाले पवन को कार्टून बनाना और बच्चों को कार्टून सीखाना- दो ही काम सबसे ज्यादा पसंद है।

1997 में जब उन्होंने कई अखबारों के लिए कार्टून बनाना शुरू किया तो अपने कम सैलरी के बावजूद कुछ पैसे बचाकर पेंसिल-कागज और एक चटाई को मोटरसाईकिल पर बांधे निकल जाते। कहीं पटना और आसपास के किसी भी जिले में। कहीं भी चटाई बिछ जाती, बच्चों को बुला कार्टून बनाना सीखाने लगते। एक तरफ कार्टून को उसके अभिजात्यपन से नीचे लाकर आम लोगों में लोकप्रिय बनाना और दूसरी तरफ इस कला को सुविधाविहिन बच्चों औऱ हाथों तक पहुंचाना- दोनों ही स्तर पर पवन लगातार काम कर रहे हैं।

मीडिया में पवन के कार्टून ख़ास महत्व रखते हैं, बल्कि पवन के कार्टून ने आज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर पहचान बना ली है। समाचार पत्रों के अलावा पत्र-पत्रिकाओं के साथ विभिन्न मीडिया इकाइयों में भी पवन के कार्टून छाये। पवन के कार्टूनों ने ख़ास संरचना के बलबूते अपनी पहचान बनायी है। कार्टूनिस्ट पवन अपनी सद्यः प्रकाशित पुस्तक “कार्टूनों की दुनिया” से इन दिनों ख़ासे चर्चे में है। क़रीब ढ़ाई सौ से ज़्यादा, पवन के कार्टूनों को लेकर प्रभात प्रकाशन ने कार्टूनों को पुस्तकबद्ध किया है। देशज शैली में, पवन ने गंभीर बातों को सहज शब्दों में अपने कार्टून में जगह दी है।

पवन के पात्रों में जहाँ लालू, नीतीश सहित अन्य राजनेता है वहीं, आम आदमी भी शामिल है। कार्टूनों में पवन मगही से लेकर भोजपुरी संवादों को पिरोते हैं। मसलन विधानसभा चुनाव में “लालटेन भुकभुकाय नमः” और “बाबा वेल्नटाइन” और “नये साल के जश्न में शराब पीकर लोटपोट होने वाले को बंदरों” के साथ संवाद करते कार्टून है। पवन के कार्टून जन सुविधाओं पर भी केंद्रीत है। कुड़ा-कचड़ा और देश की समस्याओं पर पवन ने कार्टूनों को गंभीरता से बनाया है।

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