कार्टून कला और कलाकार

एक कार्टूनिस्ट द्वारा स्वयं का बनाया कैरीकेचर

कार्टून और कार्टूनिस्ट संपादित करें

व्युत्पत्ति संपादित करें

अंग्रेजी के जाने पहचाने शब्द ‘‘कार्टून’’ की व्युत्पत्ति इतालवी के शब्द ‘‘कार्तोने’’ और डच भाषा के शब्द ‘‘कारटों’’ से हुई है। स्टेन-ग्लास या टेपेस्ट्री पर चित्रांकन या रेखांकन करने के लिए बहुत मोटे कागज पर जो स्केच/ या ड्राइंग की जाती थी - उसके लिए ये शब्द इतालवी और डच भाषाओं में आए। बाद में भित्ति चित्रकला में इस तकनीक का प्रयोग हुआ। जाने-माने चित्रकारों राफेल औरलियोनार्दो दा विन्ची ने अपनी रचनाओं में कार्टून तकनीक का इस्तेमाल किया।

ऐतिहासिक तथ्य संपादित करें

आधुनिक छापे-संदर्भों में, हास्य व्यंग्य की सर्जना करने के उद्देश्य से बनाए जाने वाले रेखांकनों और चित्रों के लिए कालांतर में ये शब्द रूढ हो गया। १८८३ में ‘पंच’ ने राजनैतिक व्यंग्यात्मक रेखांकनों का यह सिलसिला चालू किया था।

भारत में कार्टून कला की शुरुआत ब्रिटिश काल में मानी जाती है औरकेशव शंकर पिल्लै जिन्हें ‘‘शंकर’’ के नाम से भी जाना जाता है, को भारतीय कार्टून कला का पितामह कहा जाता है। शंकर ने 1932 में ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में कार्टून बनाने प्रारम्भ किए। 1946 में अनवर अहमद हिंदुस्तान टाइम्स में कार्टूनिस्ट शंकर की जगह पर नियुक्त हुए।

शंकर के बाद भारत में धीरे धीरे कार्टून कला का विकास हुआ और आज भारत में हर प्रान्त और भाषा में कार्टूनिस्ट काम कर रहे हैं। शंकर के अलावा आर.के. लक्ष्मण, कुट्टी,मेनन, रंगा, मारियो मिरांडा, अबू अब्राहम, मीता रॉय,सुधीर तैलंग और शेखर गुरेरा अदि पचासों ऐसे नाम हैं जिन्होंने कार्टून-कला को आगे बढ़ाया है। आज प्रायः हर अखबार और पत्रिका ससम्मान व्यंग्यचित्रों को प्रकाशित करती है क्योंकि पाठकों का सबसे पहले ध्यान आकर्षित करने वाली सामग्री में कार्टून-कोने की अपनी खासमखास जगह जो है।

भारत के प्रमुख कार्टूनिस्ट संपादित करें

के. शंकर पिल्लई, आर. के. लक्ष्मण, अबू अब्राहम, रंगा, कुट्टी, (ई. पी.), उन्नी, प्राण, मारियो मिरांडा, रवींद्र, केशव, बाल ठाकरे, अनवर अहमद, मीता रॉय, जी. अरविन्दन, जयंतो बनर्जी, माया कामथ, कुट्टी, माधन, वसंत सरवटे, रविशंकर, आबिद सुरती, अजीत नैनन, काक, मिकी पटेल, सुधीर दर, सुधीर तैलंग, शेखर गुरेरा, राजेंद्र धोड़पकर, इस्माईल लहरी, आदि इस कला के कई जाने पहचाने नाम हैं।

दूसरे कुछ भारतीय व्यंग्यचित्रकार माली, सुशील कालरा , नीरद, देवेन्द्र शर्मा,सुधीर गोस्वामी इंजी, मंजुला पद्मनाभन, पी. के मंत्री, सलाम, प्रिया राज, तुलाल, येसुदासन, यूसुफ मुन्ना, चंदर, पोनप्पा, सतीश आचार्य, चन्दर, त्र्यम्बक शर्मा, अभिषेक तिवारी, इरफान, चंद्रशेखर हाडा, हरिओम तिवारी, गोपी कृष्णन, शरद शर्मा, शुभम गुप्ता, शिरीश, पवन, देवांशु वत्स, के. अनूप, राधाकृष्णन, अनुराज, के. आर. अरविंदन, धीमंत व्यास, धीर, द्विजित, गिरीश वेंगर, सुरेन्द्र वर्मा, धनेश दिवाकर, ए. एस. नायर, नम्बूतिरी, शिवराम दत्तात्रेय फडणीस, शंकर परमार्थी, एन. पोनप्पा, गोपुलू. राजिंदर पुरी, के. के. राघव, माधन, माया कामथ, जी. अरविन्दन. नीलाभ बनर्जी, सुमंत बरुआ, चित्त्प्रसाद भट्टाचार्य, एम्. वी. धुरंधर, बी. एम् गफूर, जयराज, उस्मान (Irumpuzhi), जयराज, ऐस. जितेश, जनार्दन स्वामी, असीम त्रिवेदी, ओ.वी. विजयन, विन्स, येसुदासन, मोहन शिवानंद, मंजुल, जया गोस्वामी आदि अलग अलग भारतीय भाषाओँ में व्यंग्यचित्र बनाने वाले कलाकर्मी हैं।

बीकानेर के कार्टूनिस्ट : एक परंपरा : एक ही शहर के एक ही मोहल्ले में पचासों कार्टूनिस्ट एक साथ सक्रिय हों, ये बात सुनने में अजीब तो है पर सच है।

अकेले बीकानेर शहर के 'गोस्वामी चौक' ने हिन्दी पत्रकारिता को शताधिक व्यंग्यकार दिए हैं जिनके व्यंग्यचित्र अक्सर समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के माध्यम से पाठकों का ध्यानाकर्षित करते आ रहे हैं। व्यंग्यचित्र-कला को विस्तार देने में बीकानेर में अकेले दाक्षिणात्य प्रवासी तैलंग समाज के कुछ व्यंग्य चित्रकारों का हिंदी की व्यंग्यचित्र कला के विकास में अनूठा योगदान रहा है।

कार्टून के क्षेत्र में (पद्मश्री) सुधीर तैलंग, पंकज गोस्वामी, संकेत, सुधीर गोस्वामी ‘इन्जी’, सुशील गोस्वामी, शंकर रामचन्द्र राव तैलंग, अनूप गोस्वामी आदि कई कलाकार हैं जिन्होंने न केवल इस कला को परवान चढ़ाया अपितु, अपनी कला-साधना से वैयक्तिक ख्याति भी अर्जित की। हिंदीक्रिकेट कमेंटेटर प्रभात गोस्वामी के कार्टून्स भी लगभग एक दशक पूर्व विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। इन दिनों राहुल गोस्वामी, अवनीश कुमार गोस्वामी, अलंकार गोस्वामी जैसे अनेक युवा व किशोर कलाकार लगभग अविज्ञप्त रह कर बतौर अभिरुचि व्यंग्यचित्र के मैदान में तूलिका चला रहे हैं।

एक समय वह भी था जब संभवतः कार्टूनिस्ट पंकज गोस्वामी के प्रभाव और प्रेरणा से व्यंग्यचित्र कला को ले कर बीकानेर के प्रसिद्ध गोस्वामी चौक में एक तूफानी उत्साह का दौर आ गया था, जब वहां का हर दूसरा तीसरा युवा व्यंग्यचित्र बनाता और छपवाता रहा था। इसी बात से प्रभावित हो कर विनोद दुआ ने बीकानेर के गोस्वामी चौक में बनाए जा रहे कार्टून- और उनके कलाकारों पर केन्द्रित एक रोचक वृत्तचित्र का निर्माण किया था- जिसका प्रसारण दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर हुआ था।

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें