कालनेमी
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कालनेमी एक असुर (दैत्य) था जिसका जन्म रूसभानु के गर्भ से हिरण्याक्ष के पुत्र रूप में हुआ था। उसका बड़ा भाई अंधकासुर था।
जन्म
संपादित करेंसंतान न होने के कारण हिरण्याक्ष बहुत दु:खी रहता था उसने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे वर मांगने को कहा। उसने संतान प्राप्ति का वर मांगा। भगवान शिव बोले कि "हे ! दितिपुत्र तुम्हें संतान का सुख बहुत देर से मिलेगा। लेकिन तुम्हारे तप का फल मैं तुम्हें दूंगा। मैं तुम्हें अपना पुत्र अंधक सौंपता हूँ। वह अंधा है लेकिन बहुत बलशाली है।" हिरण्याक्ष अंधक को अपने साथ लेकर आ गया। कुछ वर्षों के उपरान्त हिरण्याक्ष को एक और पुत्र हुआ जिसका नाम कालनेमी रखा गया।
विवाह और संतान
संपादित करेंकालनेमी ने विवाह कर सात संतानें उत्पन्न की जिनमें उसके छ: पुत्र और एक पुत्री हुई। उसके पुत्रों ने बड़े होकर उसके पुत्रों ने स्वर्ग से लेकर पृथ्वी तक उत्पात मचा दिया। कालनेमी के पुत्र कालनेमी के ताऊ हिरण्यकशिपु के आदेश पर पाताल चले गये। उसने अपने पुत्रों को रोकने का भी प्रयास किया लेकिन वे पाताल जाकर वहाँ बस गए। इससे कालनेमी अपने पुत्रों का घोर शत्रु हो गया और अपने ही पुत्रों का वध करने की कामना उसके मन में जागृत होने लगी। पुत्री वृन्दा का विवाह उसने शंखचूड़ (जालंधर) नामक दैत्य से कर दिया जोकि भगवान शिव का ही पुत्र था।
मृत्यु
संपादित करेंजब कालनेमी को ज्ञात हुआ कि उसका दामाद शंखचूड़ भगवान विष्णु के छल के कारण भगवान शिव के हाथों मारा गया और उसकी पुत्री शंखचूड़ की चिता पर सती हो गई। दोनों को बहुत क्रोध आया। अंधकासुर भगवान शिव से प्रतिशोध लेने के लिए कैलाश पर चढ़ाई करने निकल पड़ा। माता पार्वती पर कुदृष्टि डालने के कारण वह भगवान शिव के हाथों मारा गया। अब अपने भाई के मारे जाने पर कालनेमी के दु:ख की कोई सीमा नहीं रही। उसने बैकुण्ठ पर चढ़ाई कर दी और देवी पार्वती की ही भांति उसने सिंह को अपना वाहन बनाया। उसने भगवान विष्णु पर सिंह पर बैठे बैठे त्रिशूल चलाया लेकिन भगवान विष्णु ने उसी त्रिशूल को बीच से पकड़कर कालनेमी को उसके वाहन समेत मार डाला।
भगवान विष्णु से प्रतिशोध
संपादित करेंकालनेमी ने अपने अंत समय में भगवान विष्णु से कहा कि "हे! विष्णु तू जब भी कहीं अवतार धारण करेगा चाहे किसी भी युग में तो मैं अपना प्रतिशोध लेने तेरा अंत करूंगा" ऐसा कहकर कालनेमी ने अपने प्राण त्याग दिए। असुर राज प्रह्लाद उस समय बहुत दु:खी हुआ क्योंकि उसका भाई अपने अंत समय में भी भगवान विष्णु को पहचान नहीं सका। भगवान विष्णु ने उसे आश्वासन दिया कि वे उसका अंत अगले तीनों युगों में करेंगे जिससे वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा लेगा।
- त्रेतायुग - त्रेतायुग में कालनेमी ने ताड़का और सुमाली के पुत्र मारीच के रूप में जन्म लिया और राम रूपी भगवान विष्णु के हाथों मारा गया।
- द्वापरयुग - द्वापरयुग में कालनेमी ने कंस के रूप में जन्म लिया और कृष्ण रूपी भगवान विष्णु के हाथों मारा गया।
- कलियुग - कलियुग में कालनेमी कलिपुरुष के रूप में जन्मा है और कल्कि रूपी भगवान विष्णु की प्रतीक्षा कर रहा है ताकि वह अपना प्रतिशोध ले सके परंतु सब जानते हैं कि कलिपुरुष रूपी कालनेमी कल्कि रूपी भगवान विष्णु के हाथों मारा जाएगा जिससे पुन: धर्म की स्थापना होगी