कालपी (Kalpi) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन ज़िले में स्थित एक नगर और नगरपालिका है।[1][2]

कालपी
Kalpi
दक्षिण दिशा से चौरासी गुम्बद का दृश्य
दक्षिण दिशा से चौरासी गुम्बद का दृश्य
कालपी is located in उत्तर प्रदेश
कालपी
कालपी
उत्तर प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 26°07′N 79°44′E / 26.12°N 79.73°E / 26.12; 79.73निर्देशांक: 26°07′N 79°44′E / 26.12°N 79.73°E / 26.12; 79.73
देश भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
ज़िलाजालौन ज़िला
जनसंख्या (2011)
 • कुल51,670
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)
पिनकोड285204

कालपी बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार है यह यमुना नदी के तट पर बसा हुआ है। यह महर्षि वेदव्यास का जन्म स्थान है माना जाता है कि कालपी, प्राचीन काल में 'कालप्रिया' नगरी के नाम से विख्यात थी, समय के साथ इसका नाम संक्षिप्त होकर कालपी हो गया। कहा जाता है कि इसे चौथी शताब्दी में राजा वसुदेव ने बसाया था। यह बीरबल का जन्म स्थान है जो अकबर के नवरत्न में से एक थे यह नगर यमुना नदी के किनारे कानपुर-झाँसी राजमार्ग पर स्थित है।

पौराणिक सम्बन्ध

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महर्षि वेदव्यास जी का जन्म यहीं यमुना के किसी द्वीप पर हुआ था । किंवदंतियों के आधार पर कालपी नगर चौथी शताब्दी में वसुदेव द्वारा बसाया गया था। डॉ॰ प्रताप सिंह कनौजिया के लेख के अनुसार 'कान्यकुब्ज माहात्म्य' में वर्णित कृष्णपुत्र शांब दुर्वासा ऋषि के शापवश कोढ़ी हो गए थे और सूर्यकुंड (मकरंजनगर, कन्नौज) में स्नान करने पर कोढ़मुक्त हुए थे। अत: शांब द्वारा यमुना केतट पर कालप्रियनाथ (सूर्यदेव) का मंदिर बनवाना तथा बाद में उस स्थान का कालपी नाम से प्रसिद्ध होना सच प्रतीत होता है। कन्नौज के मौखरी नरेश यशोवर्मन् तथा उनके दरबारी कवि भवभूति ने भी कालप्रियनाथ का वर्णन किया है। 'कान्यकुब्ज महात्म्य' के अनुसार कन्नौज की दक्षिणी सीमा कालपी तक थी। अत: उपर्युक्त तथ्यों से यह निर्विवाद सिद्ध हाता है कि कान्यकुब्ज प्रदेश के अंतर्गत यमुना तट पर निर्मित कालप्रियनाथ के नाम पर ही कालपी का नामकरण हुआ।

ऐतिहासिक नगर है जहाँ पुराने समय से लगातार राजनीतिक उथल-पुथल होती रही है। सन् ११९६ ई. में यह नगर कुतुबुद्दीन के आधिपत्य में आया। पंद्रहवी शताब्दी में जौनपुर के इब्राहिम शाह ने कालपी को जीतने के लिए दो बार प्रयास किया लेकिन असफल रहे और नगर पर मालवा के होशांग शाह का पूर्ण अधिकार हो गया। कुछसमय बाद इब्राहिम के वंशज महमूद को कालपी पर कब्जा करने को कहा गया लेकिन शर्त थी कि उसके राज्यपाल को दंडित किया जाए। यह शर्त महमूद को मंजूर न थी। अत: दिल्ली के शासकों और जौनपुर राज्य के बीच कालपी को लेकर काफी दिनों तक संघर्ष चलता रहा और सन् १४७७ ई. में यहाँ एक भयंकर युद्ध हुआ जिसमें जौनपुर के हुशेनशाह भागकर कन्नौज चले गए। वहाँ भी वे पुन: पराजित हुए। सन् १५२६ ई. में पानीपत की विजय के बाद सम्राट् बाबार का मार्ग दक्षिण की ओर स्वत: खुल गया। राणा के वंशजों और अफगानों ने मिलकर उनका रास्ता रोकना चाहा। इन्होंने कालपी पर अधिकार तो कर लिया लेकिन बाद में हार खानी पड़ी। सन् १५२७ ई. में जौनपुर और बिहार दोनों पर विजय प्राप्त कर लेने के बाद बाबर ने कालपी पर अधिकार कर लिया। हुमायूँ ने कालपी को अपने अधिकार में सन् १५४० ई. तक रखा। अकबर के समय में कालपी सरकार का मुख्यालय रहा। बाद में मराठों ने इस नगर को राज्यपाल के मुख्यालय का रूप दिया।

झाँसी की रानी का युद्ध

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मई, सन् १८५८ ई. में झाँसी की रानी के नेतृत्व में यहाँ भयंकर युद्ध हुआ जिसमें रावसाहेब पेशवा, तात्या टोपे और बाँदा के नवाब का पूरा सहयोग था।

२२ से २३ मई १८५८ को कालपी युध्द मे वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ने भगवती रणचंडी का रूप धारण किया था। एक बार तो वो गरजती हुई तोपों के सामने केवल २० फीट की दूरी पर पहुंच गयी थी। महारानी लक्ष्मीबाई ने बेपनाह वीरता का प्रदर्शन करते हुए फिरंगियों को मौत के घाट उतार ना शुरू कर दिया। और ब्रिगेडियर स्टुअर्ट को पिछे हटने पर विवश कर दिया। वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ने कालपी युध्द में जिस अद्भुत वीरता का परिचय दिया है उससे ह्यु रोज को ऐसा आभास होने लगा की वो अंग्रेज़ों के लिए काल सिध्द हो रही हैं और पहली बार वो स्वयं युध्द भूमि में कूद पड़ा और उसने महारानी लक्ष्मीबाई को चारों तरफ से घेर लिया, परंतु ह्यु रोज रानी को पकड़ना तो दुर उसे छू भी नहीं पाया। कालपी युध्द के संघर्ष में अंग्रेजों को अपनी कई सारी रेजिमेंट लगानी पड़ी। उस समय वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई साक्षात दुर्गा का रूप धरे संहार पर तुली थी। ऐसे समय में पेशवा के सैनिकों ने पीछे हटना आरंभ कर दिया। इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के कारण अतंत: कालपी महारानी लक्ष्मीबाई के हाथ से निकल गयी. कालपी विजय पर लॉर्ड कैनिंग ने ह्यु रोज की खुब प्रशंसा की।

२२ मई‌ १८५८ में महारानी लक्ष्मीबाई की पसंदीता वफादार ऐतिहासिक सफेद घोडी सारंगी की कालपी में ही मृत्यू हुई थी। यह वही घोडी थी जिसपर सवार होकर झाँसी किले से वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई कुदी थी।

कालपी यमुना नदी के बीहड़ इलाके में बसा हुआ है। इसके पश्चिमी भाग में अनेक प्राचीन मकबरे हैं जिन्हें 'चौरासी गुंबज' कहा जाता है। यमुना के ये बीहड़ भूभाग नगर के प्राचीन एवं आधुनिक बसावक्रम को अलग कर देते हैं। प्राचीन कालपी नगर नदी के पास एक ऊँचे भूभाग पर बसा हुआ है जिसमें भूरे पलस्तर (प्लास्टर) की दीवारें और यत्रतत्र छिटके हुए वृक्ष दिखाई देते हैं। यहाँ मुसलमान शासकों के मकबरे बहुतायत से देखने को मिलते हैं। नया कालपी नगर नदी से थोड़ी दूर, दक्षिण पूर्व की ओर बसा हुआ है। नदी के किनारे इन खंडहरों में एक भग्नावशेष ऐसा है जिसकी दीवार नौ फुट मोटी है और जिसे वहाँ के राज्यपाल का कोषागार समझा जाता है। सन् १८६८ ई. से ही कालपी में एक नगरपालिका (म्युनिसिपैलिटी) है। दक्षिणी उत्तर-प्रदेश का यह एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र भी रह चुका है। यहाँ से अनाज एवं कपास कानपुर, कलकत्ता और मिर्जापुर को भेजे जाते रहे हैं।

चित्र वीथी

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इन्हें भी देखें

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  1. "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
  2. "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the वेबैक मशीन," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975