किशन सिंह राठौर
6 फरवरी 1948 को, लेफ्टिनेंट किशन सिंह राठौड़ और तेन धार में तैनात राजपूत रेजिमेंट के 70 जवानों पर 1500 पाकिस्तानी घुसपैठियों ने हमला किया था।
लेफ्टिनेंट ने अपने सैनिकों को पिकेट में उनके बीच जाकर उनका साहस बढ़ाया। हमले के दौरान वो खुद अपने जवानों को गोलाबारूद मोहोईया करा रहे थे। उनके जोशीले नेतृत्व ने भारतीय सैनिकों के मन में जोश की भावना को जगाये रखा।
मार्च में, लेफ्टिनेंट राठौड़ को कोमन गोशा धार में एक खुफिया अधिकारी के रूप में तैनात किया गया था। जब दुश्मन लगातार सामने से हमले कर रहा था, तो लेफ्टिनेंट राठौड़ ने दुश्मन के बाईं ओर से एक हमले का नेतृत्व किया ताकि उसका ध्यान भटकाया जा सके। इसी दौरान जब एक सैनिक बुरी तरह घायल हुआ, तब लेफ्टिनेंट ने अपने गिरे हुए साथी को दोबारा लेने के लिए दुश्मन के हमले के बीच से होकर गए।
उस हमले के ठीक एक महीने बाद इसी तरह के हमले में उन्होंने झंगड़ में दुश्मन के खिलाफ अपनी पलटन का नेतृत्व किया। 9 अप्रैल 1948 को जब लेफ्टिनेंट किशन सिंह राठौड़ ऐसे ही हमले में फंसे हुए थे तब भी उन्होंने अपनी बहादुरी दुश्मनों को भगाया था। लेफ्टिनेंट सिंह राठौड़ को भारत-पाकिस्तान युद्ध में महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।