कीटविज्ञान (एंटोमॉलोजी Entomology) प्राणिविज्ञान का एक अंग है जिसके अंतर्गत कीटों अथवा षट्पादों का अध्ययन आता है। षट्पाद (षट्=छह, पाद=पैर) श्रेणी को ही कभी-कभी कीट की संज्ञा देते हैं। कीट की परिभाषा यह की जाती है कि यह वायुश्वसनीय संधिपाद प्राणी (Arthropod) है, जिसमें सिर, वक्ष और उदर स्पष्ट होते हैं; एक जोड़ी श्रृंगिकाएं (Antenna) तीन जोड़े, पैर और वयस्क अवस्था में प्राय: एक या दो जोड़े पंख होते हैं। कीटों में अग्रपाद कदाचित्‌ ही क्षीण होते हैं।-

पादप और कीट
 
आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न संग्रहालय में भ्र्ंगों का संग्रह

कीट की उत्पत्ति बहुत प्राचीन है, क्योंकि वे कार्बनप्रद (Carbonniferous) युग में तो निश्चित रूप से ही वर्तमान थे और संभवत: इससे भी पूर्व रहे हों। 1930 ई0 तक 10,400 जीवाश्म (Fossil) कीटों का वर्णन किया जा चुका था और तब से अब तक अन्य अनेक कीट इस सूची में जोड़े जा चुके हैं। वर्तमान जातियों (Species) की संख्या लगभग 6,40,000 हैं। ऐसा अनुमान है कि यदि सभी का उल्लेख किया जाए तो उनकी संख्या 20,00,000 तक पहुँच जाएगी। कीट न्यूनाधिक सब क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

अनेक सामाजिक कीटों का कुल बड़ा होता है। रानी मधुमक्खी में प्रति दिन 4,000 अंडे देने की क्षमता होती है और बसंत ऋ तु में एक छत्ते में 40,000 से 50,000 तक मक्खियाँ होती हैं। चीटियों की बड़ी बस्ती में 5,00,000 चींटियां पाई जाती हैं। एक टिड्डी दल में तो लाखों, करोड़ों की संख्या रहती है। एक प्रतिवेदन के अनुसार किसी टिड्डी दल के आक्रमण के समय 15,000 एकड़ भूमि में कीट फैल गए थे और इतने विस्तृत क्षेत्र की फसल सात या आठ घंटों में चट कर गए थे।

मादा कीट प्राय: बड़ी संख्या में अंडे देती है और अंडे अद्भुत ढंग से सुरक्षित रहते हैं। अधिकांश कीटों का जीवनचक्र छोटा होता है। बहुसंख्यक कीट एक साल में वयस्क हो जाते हैं और कितनों की तो एक ऋ तु में ही अनेक पीढ़ियाँ तैयार हो जाती हैं। कुछ कीटों में अनिषेकजनन (Parthenogenesis) होता है। सेसिडोमिडी (Cecidomyidae) में अनिषेकजनन की एक अनूठी विधि है जिसे पीडोजेनेसिस (Paedogenesis) कहते हैं।

साधारण कीट छोटे होते हैं, पर बड़े बड़े कीट भी पाए जाते हैं। सबसे बड़ा जीवित कीट इरिबस एग्रीपीना (Erebus agrippina) है। यह एक प्रकार का शलभ (Moth) है। यह ब्राज़ील में पाया जाता है। इसके पंख का फैलाव ग्यारह इंच होता है।

कीट विज्ञान की कई शाखाएँ हैं, जिनमें आर्थिक (Economic) कीटविज्ञान प्रमुख शाखाओं में से एक है। इसके अंतर्गत लाभकर और हानिकारक कीटों का अध्ययन आता है। इसमें कीटों का नियंत्रण, उनकी संख्या में कमी करना, विरल क्षतिकर्ता जातियों का विलोपण, लाभदायक कीटों का विस्तार और सुंदर एवं निर्दोष कीटों का अधिमूल्यन (appreciation) सम्मिलित हैं। 6,40,000 कीट जातियों में से 10,000 जातियाँ ही क्षति पहुँचानेवाली हैं। कुछ कीड़े विनाशकारी हैं। इनका नियंत्रण परमावश्यक होते हुए भी प्राय: कठिन और खर्चीला होता हैं।

आर्थिक कीटविज्ञान के कई भाग हैं, यथा :(क)- विनाशकारी कीटों की पहचान, (ख)- जातियों के स्वभाव का अध्ययन, जिससे उनके जीवनचक्र का कोई भेद या रहस्य ज्ञात हो सके;(ग)- नियंत्रण विधि का निर्धारण एवं (घ)- उपलब्ध ज्ञान के फल का उत्पादकों और कृषकों में प्रसार।

बहुत से कीट मानव रोगों के प्राथमिक अथवा माध्यमिक पोषक (host) या वाहक का काम करते हैं। अनेक प्रकार के जीवाणुओं, जैसे प्रोटोज़ोआ (Protozoa), केंचुए (Nematodas) और विषाणुओं (Viruses) इत्यादि का प्रसार कीटों द्वारा होता है। मानव रोगों में शीतज्वर (मलेरिया) अधिक गंभीर कीटजनित बीमारी है। प्लेग के विषाणु बैसिलस पेस्टिस (Bacillus pestis) का प्रसार फुदककीट (फ्ली Flea), द्वारा ही मनुष्यों, चूहों तथा अन्य कुतरनेवाले प्राणियों में होता हैं। 1914 ई. में भारत में प्लेग से 1,98,875 लोगों की मृत्यु हुई थी।

टाइफ़ाइड ज्वर बैक्टीरिया जनित बीमारी है। इसकी छूत कई प्रकार से लग सकती है। घरेलू मक्खी इस रोग का मुख्य प्रसारक समझी जाती है। अनेक प्रकार के फीताकृमि (Tapaworm) अपने जीवनेइतिहास का कुछ अंश कीटों के शरीर में व्यतीत करते हैं। अन्य अनेक रोगों का प्रसार भी कीटों द्वारा होता है।

उष्ण प्रदेशों में निद्रालु रोग (Sleeping sickness) त्सेत्सि (Tsetse) मक्खी द्वारा और फीलपाँव (Elephantisis) मच्छरों द्वारा फैलता है।

विषैले कीट

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बहुत सी श्रेणियों के कीट डंक मारते हैं या त्वचा में प्रदाह उत्पन्न करते हैं। मधुमक्खी का दंश प्राय: क्षणिक होता है और गंभीर नहीं होता। संभवत: बाल्डफेसेड हार्नेट (Baldfaced hornet) और येलो जैकेट (Yellow Jacket) बहुत ही डरावने होते हैं। चींटियाँ भी डंक मारती हैं और शिकार के शरीर में सीधे फॉरमिक अम्ल प्रविष्ट कर देती है। अग्नि चींटी (Solenopsis geminata) बहुत ही कलहप्रिय होती हैं और इसका अंश भयंकर जलन उत्पन्न करता है।

खटमल विषैले होते हैं। कुछ मक्खियाँ अतीव अनिष्टकर होती हैं। मच्छरों का दंश तो भली भाँति मालूम है। अश्व मक्खी (हॉर्स फ्लाई) और अस्तबल मक्खियों (स्टेबल फ्लाई) का मुखांग बहुत ही तीक्ष्ण होता है। इनका दंश प्राय: तीव्र पीड़ा पहुँचाता है। भारत के पैंगोनिया लांगिरोस्ट्रिस (Pangonia longirostris) की सूँड़ इसके शरीर से तिगुनी या चौगुनी बड़ी होती है और काफी मोटे कपड़े से ढकी होने पर भी मनुष्य की त्वचा को भेद देती है।

डंक मारनेवाले कीट (Netting insects)

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इनके शरीर पर विषैले लोम होते हैं। ये संख्या में बहुत हैं। डकधारी लोम बड़े खतरनाक होते हैं। जब वे आँख की पुतली में गड़ा दिए जाते हैं तब बड़ी जलन पैदा करते हैं।

लाभकारी कीट (Beneficial insects)

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लाभकारी कीट पाँच भागों में बाँटे जा सकते हैं :

क जिनसे लाभदायक पदार्थ उत्पन्न होते हैं ;
ख. जो चिकित्सा के काम आते हैं ;
ग. जो हानिकारक कीटों के प्राकृतिक नियंत्रण में प्रयुक्त होते हैं ;
घ. जो फलों का परागण (Pollination) करते हैं और
ड. जो कला के काम आते हैं।

मधुमक्खियों से हम मधु तथा मोम प्राप्त करते हें। दूसरे अनेक कीट एक प्रकार का मोमी पदार्थ पैदा करते हैं, जिसे मनुष्य विभिन्न उपयोगों में लाते हैं। चाइना मोम एक प्रकार के शल्क कीट एरिसेरस पेलि (Ericerus pele) द्वारा स्रवित होता है। भारतीय लाख कीट लेसिफर, या टेकारडिया लक्का [Lacifer (Tachardia) lacca] एक प्रकार का रस स्रवित करता है, जिससे व्यावसायिक दृष्टि से उपयोगी कच्ची लाख का उत्पादन होता है। सैन होसे स्केल, (San Jos Scale) वूली ऐफिस (Woolly aphis) और अन्य कीट अच्छी मात्रा में मोम उत्पन्न करते हैं, किंतु इतनी अधिक मात्रा में नहीं कि उनका व्यावसायिक मूल्य हो। एक शल्क कीट, कोकस मैनिफेरा (Coccus manifera) खाद्योपयोगी शल्कली (फ्लेकी, Flaky) स्राव उत्पन्न करता है। कॉचिनील नामक रंजक कोकस कैक्टाइ (Coccus cacti) नामक शल्की कीट के सुखाए हुए शरीर की बुकनी से तैयार किया जाता है।

कीटोत्पन्न पदार्थों में से रेशम सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। यह बहुसंख्यक सूंडियों (कैटरपिलर, Caterpillar) तथा अन्य अनेक प्रकार के कीटों एवं मकड़ियों के डिंभों (larva) द्वारा काता जाता है। बांबिक्स मोरी (Bombyx mori) के अतिरिक्त रेशम का अन्य कोई भी कीड़ा व्यावसायिक उपयोगिता का नहीं पाया गया है।

कीट माजूफल (Insects gall) से टैनिन प्राप्त होता है, जो खाल को पकाने तथा स्थायी, पक्की स्याही बनाने में काम आता है।

मैड ऐपल सदृश कीटजनित फलों से एक दूसरा उत्पाद टर्की रेड प्राप्त होता है।

चिकित्सा के काम आने वाले कीट

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बहुत प्रकार के कीट औषधीय गुणों के लिए प्रख्यात हैं। ब्लिस्टर बीटल (Blister beetle) के शरीर से कैंथराइडिन (Cantharidin) निकाला जाता है। अन्य अनेक विभिन्न जातियों के कीटों से भी कैंथेराइडिन प्राप्त होता है, किंतु भारत की मिलाब्रिस सिकोरी (Mylabris cichorii) जाति अन्य सभी जातियों की अपेक्षा दुगुना उत्पादन करती है। एक विशेष औषधि ऐल्कोहल की सहायता से एपिस (Apis) नामक मक्खियों के शरीर से निष्कर्षित होती है। गलित ऊतकों एवं घावों में वर्तमान बैक्टीरियों को साफ करने के लिये बूल्फार्टिया (Wolfahrtia) के मैगॉट (Maggot) का उपयोग उदस्फोभृंग (Blister beetle) होता है। यह कोलिआप्टॅरा गण का कीट है।

पराश्रयी एवं शिकारी प्रकृति के कीट (Parasitic and predaceous Insects)

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विगत कुछ वर्षों में प्रजनन विज्ञान और पराश्रयी एवं शिकारी कीटों की पहचान की ओर पर्याप्त ध्यान दिया गया है। विनाशकारी कीटों के नियंत्रण के लिए परोपजीवी और शिकारी प्रकृति के कीट विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध होते हैं। कीटों के 26 वर्गों में से 18 वर्ग शिकारी तथा पराश्रयी कीटों के हैं। हाइमेनाम्‌ॅटरा (Hymenoptera) तथा डिप्टरा (Diptera) वर्ग में सबसे अधिक पराश्रयी कीट हैं। हेमिप्टरा (Hemiptera) कोलिऑप्टरा (Coleoptera) न्यूरॉप्टरा (Neuroptera) तथा डिप्टरा वर्गों के अंतर्गत सबसे अधिक संख्या में शिकारी प्रकृति के कीट मिलते हैं।

कीट परागण

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फलों के परागण में कीट बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुए हैं। बहुत से पुष्पों में तो पराग का स्थानांतरण सरल होता है, किंतु कुछ पुष्पों का विकास इस प्रकार होता है कि कीट आकर्षित होकर उनके पास जाएँ, अथवा कीट का विकास इस प्रकार होता है कि उसे पुष्पों से पराग लेने में सुभीता हो। स्मारना के अंजीर की वृद्धि के लिये ब्लास्टोफ़ागा (Blastophaga) कीट आवश्यक है।

भोज्य कीट

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ये चिड़ियों, छिपकलियों, मेढकों, सर्पों, मछलियों एवं अन्य प्राणियों के भोजन के काम आते हैं। मनुष्य भी फल और सब्जी के साथ साधारणत: अनजाने अनेक कीटों का भक्षण कर जाता है। आदि जातियाँ बड़ी चाह और रुचि से कीटों का भक्षण करती है। अमेजन की घाटियों के निवासी सौबा (Sauba) और चींटी (अट्टा सेफालोटिस Attacephalotes) खाते हैं। दीमक उष्णप्रदेशीय कुछ जातियों का रुचिकर भोजन है। मेक्सिको में कोरिक्सा फेमोराटा (Corixa femorata) के अंडे सुस्वादु भोजन समझे जाते हैं। अफ्रीका में खाने के लिए गोलिक्थ भृंग (Goliath beetle) की विशेष पूछ होती है। पश्चिमी संयुक्त राज्य (अमरीका) में प्रिओनस कैलिफ़ोर्निकस (Prionus californicus) नामक कीट आकार में बड़ा होने के कारण प्रिय था। कीट कभी-कभी कच्चे भी खाए जाते हैं। किंतु अधिकतर इनसे विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं।

अनेक कीट अपने पंखों को पैर से रगड़कर, झिल्लियों अथवा पंखों को कंपित कर, या किसी अन्य प्रकार से ध्वनि पैदा करते हैं। प्रश्न उठता है कि क्या इस प्रकार की ध्वनि को संगीत कहा जाए ? कीट विज्ञानवेत्ता इसे झंकार (सॉनिफ़िकेशन sonification), या स्ट्रिडयलेशन (stridulation) अथवा अव्यक्त उच्चारण (फ़ोनेशन phonation) कहते हैं। जापान में सिकाड़ा (Cicada) और झींगुर (Crickets) पिंजड़े में रखे जाते हैं और उनकी झंकार आनंदकर समझी जाती है।

कला और कीट

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अलंकारों एवं चित्रों में मॉरफोस (Morphos) तितली के चमकीले नीले पंखों के टुकड़ों का व्यवहार होता है। ये रंग फीके नहीं पड़ते। अमरीका के रेड इंडियन अपनी हस्तकला में चिड़ियों के पंखों के स्थान पर कीड़ों के टुकड़े लगाते थे। इक्वेडर के जिवारो (Jivaros) व्यूप्रेस्टिड भृंग (Burprestid beetles) के हरे, चमकीले, पंख, एलिट्रा (Elytra) से कर्णफूल बनाते हैं। अनेक जातियाँ वस्त्रों पर कीटों से बने बेल बूटे अर्थात्‌ मोटिफ का भी उपयोग करती हैं। स्काराह (Scarah) मिस्र का बहुत लोकप्रिय कीट था और मिस्रियों के सूर्यदेव, खेपेरा (Khepera) का प्रतिरूप माना जाता था। ग्रीस में बहुत से सिक्कों पर मधुमक्खी का चित्र पाया जाता है। जापानी कला में प्राय: इनरॉस (inros), नटसुके (netsukes-बटन सदृश एक प्रकार का जापानी आभूषण), हाथीदाँत की नक्काशी, हरितमणि (यशब jade), पन्ना, लकड़ी इत्यादि पर कीटों का उपयोग बहुधा होता है। वस्तुत: कला की कदाचित्‌ ही कोई शाखा हो जिसमें किसी-न-किसी रूप में कीटा का प्रदर्शन न होता हो।

रूपांतरण (मेटामार्फोसिस Metamorphosis)

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अधिकतर कीटों के अंडों से निकलनेवाले डिंभों की आकृति पूर्ण कीट से बहुत भिन्न होती है। डिंभ से प्यूपा और प्यूपा के वयस्क बनने की परिवर्तन श्रृंखला को रूपांतरण कहते हैं। केवल कुछ वर्गों और बहुत कम जातियों को छोड़कर रूपांतरण सभी कीटों के जीवन की एक प्रमुख विशेषता है। रूपांतरण के तीन आधारभूत सिद्धांत हैं: वृद्धि, भेदीकरण तथा प्रजनन। वृद्धि डिंभ और निंफ से, भेदीकरण प्यूपा अथवा रूपांतरण से, तथा प्रजनन वयस्क से संबंधित होते हैं।

अंडे से लेकर वयस्क तक विकास क्रमिक है। 1. अंडा, 2-6. अर्भक (Nymphal) अवस्था, 7 वयस्क।

कीट के जीवन में विकासकाल भी होता है, जो अन्य कालों से स्पष्ट तथा भिन्न होता है। इन्हें अवस्थाएँ कहते हैं। पूर्ण रूपांतरणवाले कीटों में अंडें की अवस्था, प्यूपावस्था और वयस्क अवस्था होती हैं। ये अवस्थाएं फिर इन्स्टारों (Instars) में बँटी हैं, जिनकी विशेषता मुखों में होती हैं। डिंभावस्था में प्रत्येक बार के निर्मोचन (Moult) अथवा नए रूप के बनने पर, उनकी आकृति में स्पष्ट परिवर्तन होता है। परिवर्तन प्राय: एक इन्स्टार (रूप) से प्रारंभ होकर बाद के इन्स्टार में पूरा होता है। एक रूप से दूसरे रूप के अंतराल में भी अंतर होता है। डिंभ प्रत्येक रूप के काल में भोजन आत्मसात्‌ करता है, किंतु प्रत्यक्ष वृद्धि पुरानी डिंभावस्था के निर्मोचन के बाद ही होती है। वयस्क अवस्था में रंगविकास होता है और कीट प्रौढ़ होता है। आकृति और रचना के परिवर्तन के साथ-साथ उसके भोजन और स्वभाव में भी परिवर्तन होता है। कीट के स्वभावपरिवर्तन और भोजनपरिवर्तन में घना संबंध है। लेपिडॉप्टरा (Lepidoetra) के अधिकतर डिंभ वनस्पतिभोजी होते हैं, किंतु वयस्क मकरंद (नेक्टर nectar) चूसते हैं या निराहार रहते हैं। शिशु हाइमेनॉप्टरा (Hymenoptera) विभिन्न प्रकार के भोजन पर पलते हैं। शिशु दीमक लकड़ी, मुँह से उगला हुआ या मलाशय से निकला हुआ पदार्थ, विसर्जित त्वचा और लार इत्यादि खाते हैं। निंफ पहले पहल लार, तब उदरीय भोजन और अंत में लकड़ी खाते हैं।

वयस्क कीटों में आहार की वृद्धि कदाचित्‌ ही होती है और अंडों में बहुत ही कम। विकास के अर्थ में वृद्धि कीटजीवन की सभी अवस्थाओं में होती है। कीटों में अवयस्क अवस्था खाने और वृद्धि करने की होती है और उनके जीवन का अधिकांश भाग वृद्धि और विकास में बीतता है। सामान्यत: कीट की वृद्धि तेजी से होती है। अधिकांश जातियाँ एक साल में ही पूरे आकार की हो जाती हैं और बहुत सी कुछ ही सप्ताहों में।

निर्मोचन (मोलिंटग Moulting)

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अन्य प्राणियों की भाँति कीट में वृद्धि क्रमिक एवं लगातार नहीं होती। डिंभ अथवा शिशु (निंफ Nymph) भोजन करता है और बढ़ता है। फलस्वरूप इसकी त्वचा क्युटिकुला (Cuticula) बहुत जोर से तन जाती है। इस बीच पुरानी त्वचा के नीचे एक नई त्वचा तैयार हो जाती है। नई और पुरानी त्वचा के बीच निर्मोचन द्रव (मोल्‌ंटग फ्लूइड moulting fluid) उत्पन्न होता है, जो पुरानी त्वचा को घुला देता है और उसे शरीर से अलग करने में सहायक होता है। यथोचित समय पर सिर के समीप पृष्ठभाग में त्वचा फट जाती है और कीट अपनी पुरानी त्वचा से रेंगकर बाहर चला आता है। त्वग्मोचन के पश्चात्‌ नई त्वचा शीघ्र ही कड़ी पड़ जाती है। रंग निखर जाता है और कीट दूसरी बार भोजन करने पर वृद्धि के लिए तैयार हो जाता है। इस क्रिया को त्वग्मोचन (Ecdysis) कहते हैं। पुरानी त्वचा को, जो अलग हो जाती है, निर्मोक (एग्ज्यूबिई Exuviae) कहते हैं। त्वग्मोचन के बीच के काल को स्टैडियम (Stadium) और इस अवस्था के कीट को इन्स्टार कहते हैं।

त्वग्मोचन की क्रिया बहुत ही सूक्ष्म होती है और इस समय का कीट प्राय: निष्क्रिय, असहाय और किसी प्रकार की क्षति के प्रति तीव्र अनुभूतिशील होता है।

कीटव्यवहार

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कीटव्यवहार की तीन श्रेणियाँ, (1) आवर्तना (Tropism), (2) सहजवृत्ति (Instinct) और (3) मेधा (Intelligence) हैं :

आवर्तना (Tropism)

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कीटों पर वातावरण का लगातार प्रभाव पड़ता है। इसके प्रति वे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से संवेदनशील होते हैं। इन संवेदनाओं की अभिक्रिया को आवर्तना अथवा ट्रॉपोटैक्सेज़ (Tropotaxes), कहते हैं। आवर्तना कदाचित्‌ ही व्यक्तिश: होती है। किसी प्रकार के रसायन के प्रति कीटों की अभिक्रिया को रासायनिक आवर्तना (Chemotropism), स्पर्शसंवेदना के प्रति स्पर्शावर्तना (थिग्मॉट्रोपिज्म, Thigmotropism), जलधारक के प्रति स्रावावर्तना (रीऑट्रोपिज्म, Rheotropism), जल के प्रति जलावर्तना (हाइड्रॉट्रोपिज्म Hydotropism), विद्युद्धाराओं के प्रति अनिलावर्तना (ऐनिमॉट्रापिज्म, Anemotropism), गुरुत्वाकर्षण के प्रति भूम्यावर्तना (जिऑट्रापिज्म, Geotropism), प्रकाश के प्रति प्रकाशावर्तना (फोटॉट्रोपज्म), उष्णता के प्रति तापावर्तना (थरमॉट्रोपिज्म Thermotropism) कहलाती है।

किसी जीव का एक या अनेक संवेदनाओं के प्रति संवेदनशील होना सहजवृत्ति कहलाता है। सहजवृत्तिवाली क्रियाओं के अंतर्गत नियामक परिवर्ती क्रियाएं (कोऑरडिनेटेड, रिफ्ल़ेक्सेज़ Coordinated reflexes) और आवर्तन की जटिल श्रृंखलाएं होती हैं। भारत के पियरिस ब्रैसिकी (Pieris brassiace) के स्वभाव की अपरिवर्तनीयता इसका एक उदाहरण है। मार्च में कुछ कीट (पियरिस ब्रैसिकी) हिमालय के पार्श्व में उड़ते पाए गए थे। अप्रैल के अंत में प्रति मिनट हजारों की संख्या में हिमाच्छादित शिखर की दिशा में, जहां वे निश्यच ही मृत्यु को प्राप्त हुए होंगे, ये उड़ रहे थे। कोई समझ नहीं पाता कि कौन सी शक्ति इन तितलियों को विनाश की ओर प्रेरित करती हैं। वस्तुत: उन्हें इस सर्वनाश का पूर्वाभास नहीं होता। उसी प्रकार देशांतरण करती हुई टिड्डियाँ किसी प्रकार के अवरोध की परवाह नहीं करतीं। निष्कर्ष यह है कि कीट अपने को असाधरण दशा के अनुकूल बनाने में अयोग्य होते हैं।

मेधा (इंटेलिजेंस Intelligence)

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यद्यपि कीट कुछ कृत्यों अथवा छायाचित्रों को याद रखनेवाले प्रतीत होते हैं, किंतु वे स्वेच्छा से पुन: स्मरण करने में असमर्थ होते हैं। अतएव उनमें तर्क अथवा समझने की क्षमता नहीं होती।

कीटसंघ तथा सामाजिक कीट

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कीटसंघ किसी एक विशेष जाति का या जातियों का हो सकता है। इस प्रकार का साथ निष्क्रिय अथवा सक्रिय और कीटजीवन के कुछ ही अंशों तक, अथवा पूरे जीवन भर, चल सकता है।

(क) निष्क्रिय कीटसंघ-बहुधा तरंग, ज्वार भाटा अथवा हवा के प्रवाह के साथ कीट बड़ी संख्या में किसी स्थान पर इकट्ठा हो जाते हैं। इस प्रकार का जमाव प्राय: कुछ जातियों के कीटों के लिए विनाशकारी हो सकता है, किंतु दूसरे प्राणियों के लिए भोजन के रूप में लाभदायक होता है।

(ख) सक्रिय साहचर्य-भोजन, मैथुन, निद्रा, दलीय उड़ान, स्थानांतरण, ग्रीष्मकालीन निष्क्रियता (एस्टिवेशन Estivation) अथवा शीतकालीन निष्क्रियता (हाइबर्नेशन Hibernation), छोटे अथवा बड़े दल में कीटों के एकत्र होने के कारण हो सकते हैं। जो कीट किसी संघ अथवा समाज में रहते हैं, पर वास्तव में सामाजिक नहीं है, यूथचर (ग्रिगेरियस gregarious), कहलाते हैं।

(ग) ग्रीष्मनिष्क्रिय अथवा शीतनिष्क्रिय साहचर्य-बहुत से कारण, जैसे सुरक्षित स्थान का चुनाव, कीटों, जैसे इंद्रगोप (लेडी बर्ड बीटल, सिरेटोमेगिला मैकुलाटा Ceratomegilla maculata), को ग्रीष्मनिश्ष्क्रिय होने, प्यूपा बनने अथवा निष्क्रियता के लिये बाध्य करते हैं। विभिन्न समूहों में एकत्र होने (Congregation) के स्वभाव में भिन्नता होती है।

(घ) रक्षात्मक समूहन (प्रोटेक्टिव ऐग्रिगेशन Protective aggregation)-अपने समूहगत स्वभाव के कारण कीट संभवत: परोजीवियों शिकारी शत्रुओं और प्रतिकूल ऋ तुओं से सुरक्षित रहते हैं। शीत निष्क्रिय कीटों, जैसे घूर्णभृंग (Whirligig beetle) पर यह बात विशेष रूप से लागू होती है।

लेपिडॉप्टरा (Lepidoptera) गण की 1. तितली (Butterfly) और 2. शलभ: (Moth) डिप्टरा (Diptera) गण की 3. मक्खी (House fly) तथा 4. मच्छर (Mosquito) साइफ़ोनेप्टरा (Siphoneptera) गण का 5. पिस्सू (flea) हाइमेनॉप्टरा (Hymenoptera) गण की मधुमक्खी: 6. श्रमिक, 7. रानी तथा 8. पुंमधुप और इसी गण की 9. ततैया (Wasp) तथा 10. चींटी।

(ड़) प्रवाजी समूहन (Migrating aggregation)-कीट बहुधा बहुत्‌ समूहों में देशांतर गमन करते हैं। प्रोसेशन मॉथ (Cnetho campa (Bombyx) processione) का, जो वंजु (Oak) वृक्ष पर निर्वाह करता है, रात्रिप्र्व्राजन तथा चारा एकत्रित करनेवाली एवं सैन्य दल बाँधकर चलनेवाली चीटियाँ इसके उत्तम उदाहरण हैं।

(च) झुंड में उड़नेवाला समूह (स्वार्मिंग ऐग्रिगेशन Swarming aggregation)-दल या झुंड बनाकर कीटों के चलने को स्वार्म कहते हैं। वास्तविक झुंड बनाकर उड़ने की आदत मैथुन से संबंधित होती है। मधुमक्खी, चींटी और दीमक की उड़ान इसके सामान्य उदाहरण हैं।

(छ) शयन समूह (स्लीपिंग ऐग्रिग्‌ेशन Sleeping aggregation)-बहुधा कीट अपनी सक्रियता बंद कर देते हैं और सोने लगते हैं। क्षीरपाद (मिल्क वीड Milk wed) तितलियाँ अपने वार्षिक स्थानांतरण के समय सोने के लिये एकत्रित होती हैं।

(ज) पृथक्करण (डिस्सोसिएशन Dissociation)-कीटों की कुछ जातियाँ विभिन्न कारणों से पृथक्‌ होने के लिये बाध्य होती हैं। शिकारी कीट, पेंटाटॉमिडी (Pentatomidae) रेडुवाइडी (Reduviidae) तथा फाइमैटिडी (Phymatidae) की अपेक्षाकृत बहुत बड़ी संख्या अंडों से उत्पन्न होती हैं और जन्म के पश्चात्‌ शीघ्र ही भोजन की खोज में बिखर जाती हैं, क्योंकि एक ही स्थान पर भोजन का अभाव होता है

(झ) सामाजिक समूहन-वे कीट जो संगठित समूहों अथवा ऐसे वासस्थानों में रहते हैं, जहाँ श्रम का विभाजन होता है और श्रमिक कीट शिशु कीटों कों भोजन प्रदान करते हैं, सामाजिक कीट कहलाते हैं। उनकी सामान्य तथा सार्वलौकिक विशेषताएँ ये हैं: अपेक्षाकृत बड़ी आबादी, सहयोग, श्रमविभाजन, साधारणतया: पाथेय का उत्तरोत्तर संग्रह, अपत्यस्नेह, चबाए भोजन का विनियम (ट्रॉफैलैक्सिस trophallaxis), किसी-किसी में दल बनाकर उड़ान करना और न्यूनाधिक परिष्कृत नीड़ का निर्माण। प्रत्यक्ष रूप से पूर्णत: रूपांतरण करनेवाले कीटों का, जैसे चींटियों, मधुमक्खियों गुंजमधुमक्खियों (बंबुल बीज Bumble bees) पत्रततैयों (पेपर वास्प Paper Wasps) आदि का स्वाभाव सामाजिक होता है। क्रमिक रूपांतरण करनेवाले कुछ कीटों में भी, जैसे आइसॉप्टरा (Isoptera) तथा डरमॉप्टरा (Dermoptera) में, सामाजिक आदतें होती हैं। एंबाइडाइना (Embiidiena) तथा स्कैराबीइडी (Scarabaeidae) अपने शिशुओं का ध्यान रखते हैं और प्रारंभिक अवस्था के ही सामाजिक या उपसामाजिक कहे जाते हैं।

(ट) एकांतप्रिय कीट (सॉलिटरी इंसेक्ट्स Solitary Insects) -इनकी आदतें स्वतंत्र भोजन प्राप्त करनेवाले और सामाजिक जीवन व्यतीत करनेवाले कीटों के मध्य की होती हैं। यह स्वभाव मुख्यत: मधुमक्खियों और बर्रों में पाया जाता है, यद्यपि अन्य जातियाँ भी इससे वंचित नहीं हैं।

(ठ) मृतोपजीवी अथवा भंगी कीट (साप्रॉफागस इंसेक्ट Saprophagous Insects)-अल्पपोषक तत्वोंवाले, अनुपयोगी पदार्थों का उपयोग करने में समर्थ, आहारनाल के अतिरिक्त, भंगीकीटों के स्वभाव में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होती। भंगीकीट मुख्यत: थाइसान्यूरा (Thysanura), कोलेंबाला (Collembola), ब्लैटिडी (Blattidae) तथा निम्न क्षेणी के कोलिऑप्टरा (Coleoptera) तथा डिप्टरा (Diptera) में पाए जाते हैं।

(ड) शिकारी कीट (प्रेडाटर्स Predators)-ये दूसरे प्राणियों के ऊपर जीवननिर्वाह करते हैं। शिकारी कीटों की विशेषता है कि वे किसी पोषक पर अस्थायी रूप से स्थित रहते है क्योंकि वे एक के बाद दूसरे पोषक अपनाते हैं और कभी-कभी तो सेकड़ों का भक्षण कर डालते हैं। ऑर्थोप्टरा (Orthoptera) गण का मैंटिडी (Mantidae) परिवार, न्यूरॉप्टरा (Newroptera) के डिंभ ओडोनाटा (Odonata) के निमज्जक तथा प्लीकॉप्टरा (Plecoptera), बहुसंख्यक हेटिरॉप्टरा (Heteroptera) और हाइमेनॉप्टरा (Hymenoptera) शिकारी जातियों के अंतर्गत आते हैं।

परोपजीवी (Parasites)

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वे जातियाँ हैं जो दूसरे प्राणियों से, बिना उन्हें मारे, अपना भोजन प्राप्त करती हैं और प्राय: केवल एक ही पोषक पर आक्रमण करती हैं। जूँ इस समूह का अच्छा उदाहरण है।

अर्धपरोपजीवी (पैरासाइटाइड, Parasitoids)

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परोपजीवी और शिकारी दोनों के मध्य के स्वभाव कीट अर्धपरोपजीवी कहलाते हैं। पहले तो यह परोपजीवी रहता है और पोषक के मर्मस्थल को छोड़ता चलता है, बाद में यह शिकारी बन जाता है और पोषक का भक्षण कर जाता है। इस प्रकार के अर्धपरोपजीवी प्रचुर संख्या में डिप्टारा तथा हाइमेनॉप्टरा वर्ग में मिलते हैं।

कीट तथा पौधों का संबंध

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पौधे तथा कीटों का संबंध पारस्परिक हो सकता हैं। इसमें पौधे या कीट में से लाभान्वित हो सकता है। कीटों में अधिकांश स्वतंत्र रूप से भोजन करनेवाले होते हैं। कुछ तो भूमि के अंदर निवास करनेवाले और अन्य जलीय होते हैं, किंतु सभी पोषक के बाह्य भाग का ही भोजन करते हैं और विचरण करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। जो कीट विस्तृत या कम विस्तृत क्षेत्रों से भोजन प्राप्त करते हैं वे खाद्यान्वेषक (Forager) या शिकारी हैं। सभी वर्ग के कीटों में भोजन करने की स्वतंत्र आदतें होती हैं। कुछ चूसक होते हैं और कुछ चबानेवाले। टिड्डे (Grasshoppers) जून बीट्ल (June beetles), कट वर्म (Cut worms) आर्मी वर्म (Army worms) ऐपुल्‌ टेंट (Apple tent), टी कैटरपिलर (Tea caterpillar), वेब वर्म (Web worms) और लीफ बीटल (Leaf beetles) खाद्यान्वेषी जीव हैं। वे बहुधा झुंड में मिलाकर कार्य करते हैं और प्रत्यक्ष क्षति पहुँचाते हैं। अन्य जातियाँ, जैसे पॉलिफीमस (Polyphemus) के डिंभ अधिकतर अकेले ही खाते हैं।

पत्तों में सुरंग बनानेवाले कीट

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इस जाति के डिंभ (लार्वा) अस्थायी रूप से अथवा जीवनपर्यंत पत्तों के बाह्य त्वचीय दो स्तरों के बीच निवास करते और पोषित होते हैं। कोलिऑप्टरा (Coleoptera) लेपिडॉप्टरा (Lepidopdera), डिप्टरा तथा हाइमेनॉप्टरा गण के कीटों में पत्तों में सुरंग बनाने की आदत है।

पत्तों को लपेटनेवाले कीड़े-कीट के ऐसे डिंभों द्वारा पत्ते कुडंलाकार बनाए जाते हैं। ये डिंभ रेशम कातते हैं, जो पत्ते को मोड़ने अथवा लपेटने के लिये प्रयुक्त होता है। यह आदत अधिकांश लेपीडॉक्टरा वर्ग में पाई जाती है।

द्रुस्फोट (Gall) कीट

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पौधे में द्रुस्फोट के मुख्य वाहक कीट और किलनियाँ है। कोलिऑप्टरा, लेपिडॉप्टरा, होमॉप्टरा, थाइसेनॉप्टरा, डिप्टरा और लेपिडॉप्टरा गणों के कीटो में यह आदत होती है।

बेधक (Boring) कीट

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पौधे, प्राणी तथा भूमि आदि अनेक पदार्थों में कीट छेद करते है। पूर्ण रूपांतरित तथा हन्विकायुक्त मुखांग वाले कीटों में मुख्यत: छेद करने की आदत होती है। कालिऑप्टरा, लेपिडॉप्टरा, डिप्टरा और हाइरेनॉप्टरा वर्गों के अतंर्गत बेधक कीट पाए जाते हैं।hai

आंतर्भौम (Subterranean) कीट

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ये अपना आंशिक या पूर्ण जीवन भूमि में मिट्टी के नीचे व्यतीत करते हैं। जापानी भृंग (Japanese Bettle) अपने जीवन के ग्यारह महीने अंडे, डिंभ और प्यूपावस्था में भूमि के नीचे व्यतीत करते हैं और भोजन तथा मैथुन के निमित्त कुछ समय के लिए बाहर निकलते हैं; तदुपरांत अंडे देने के लिए पुन: भूमि के नीचे चले जाते हैं। दूसरी ओर लेपिडॉप्टरा (Lepidoptera) प्यूपावस्था में कुछ ही समय के लिए भूमि में प्रवेश करते हैं। पृथ्वी के भीतर रहनेवाले अधिकांश कीट अपने जीवनेतिहास का कुछ अंश अंडे, डिंभ, निंफ, प्यूपा, अथवा वयस्क के रूप में जमीन के भीतर व्यतीत करते हैं। भूमि के नीचे एक या अनेक अवस्थाएँ व्यतीत करते हैं। अधिकांश वर्गों में जमीन के भीतर रहने की आदत होती हैं।

जलीय (Aquatic) कीट

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वे जातियाँ हैं जो अधिक या कम जल से संबंधित होती हैं। हेलोबेटिस (Halobates) जीनस के वाटर स्ट्राइडर, जेराइडी (Gerridae), यथार्थ में छिछले जलीय हैं। प्राय: जलीय कीटसमूहों में उष्ण स्त्रोतवासी कीट पाए जाते हैं।

खोल निर्माता (Case-making) कीट

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कीट की आंरभिक जीवनावस्था अर्थात्‌ अंडे, डिंभ तथा प्यूपा की अवस्था, प्राय: खोल में बंद होती हैं। थाइसान्यूरा कोलेंबोला (Thysanura Collembola) तथा ऑर्थोप्टरा (Orthoptera) के अतिरिक्ति लगभग सभी वर्गों के कीटों में, खोल बनाने की आदत होती हैं।

सक्रियता का स्थगन

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विश्राम के प्राय: दो रूप होते हैं : शारीरिक विकास का रुकना, जिसे डायापॉज (Diapause) कहते हैं और सक्रियता का रूकना, जिसे किनेटोपॉज (Kinetopause) कहते हैं। कीटजीवन की किसी भी अवस्था में शारीरिक विकास रुक सकता हैं, किंतु संभवत: अंडे और प्यूपा अवस्था में यह रुकना बिलकुल स्पष्ट होता हैं। किनेटोपॉज कई प्रकार से हो सकता है, जैसे विश्राम, निद्रा, मूर्छा, ग्रीष्मकालीन निष्क्रियता, शीतकालीन निष्क्रियता और मृत्यु।

बाहरी कड़ियाँ

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