कीर्त्तिपताका महाकवि विद्यापति द्वारा अवहट्ठ भाषा में रचित गद्य-पद्यात्मक ग्रन्थ है। इसके अनेक अंश प्राचीन मैथिली भाषा में है। यह रचना मिथिला के अधिपति शिवसिंह द्वारा यवनों पर विजय की वीरगाथा है।[1]

रचना-स्वरूप एवं प्रकाशन संपादित करें

'कीर्तिपताका' की रचना अवहट्ठ भाषा में हुई है। इसमें किसी सुल्तान के साथ शिवसिंह के युद्ध का वर्णन है। इस युद्ध में शिवसिंह की विजय हुई थी जिसका विस्तृत वर्णन महाकवि विद्यापति ने इस ग्रन्थ में किया है। इसकी एकमात्र हस्तलिखित प्रति नेपाल दरबार में उपलब्ध हुई थी। इसका प्रारम्भिक अंश खण्डित है।[2] इस पाण्डुलिपि में भिन्न-भिन्न तीन अंश संकलित हैं। एक तो केवल एक पत्र के रूप में अवहट्ठ काव्य है। दूसरे अंश के नायक राय अर्जुन है जिसमें उनकी यशोगाथा शृंगार रस से ओतप्रोत रूप में वर्णित है। इसे 'कीर्तिगाथा' नाम दिया गया है। तीसरा अंश 'कीर्तिपताका' है जिसके नायक राजा शिवसिंह हैं। प्रकाशित रूप देने के लिए इस ग्रंथ का पाठोद्धार पं॰ गोविन्द झा द्वारा किया गया है। प्रस्तावना सहित उन्होंने इसका संपादन किया है। इस ग्रंथ की संस्कृत छाया तथा हिन्दी अनुवाद डॉ॰ शशिनाथ झा ने तैयार किया है। प्रकाशित संस्करण में पूर्वोक्त तीनों अंश क्रमशः संकलित हैं।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. कीर्त्तिपताका, मूल, संस्कृत छाया एवं डॉ॰ शशिनाथ झा कृत हिन्दी अनुवाद सहित, सं॰ पं॰ गोविन्द झा, नाग प्रकाशक, दिल्ली, प्रथम संस्करण-1992, प्रथम आवरण पृष्ठ पर उल्लिखित।
  2. विद्यापति-पदावली, प्रथम भाग, सं॰ शशिनाथ झा एवं दिनेश्वरलाल 'आनन्द', बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, द्वितीय संस्करण-1972, पृष्ठ-78, 81 (भूमिका).

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