कुँअर बेचैन
कुँवर बेचैन (मूल नाम कुँअर बहादुर सक्सेना, जन्म : 1 जुलाई 1942 – मृत्यु : 29 अप्रैल 2021) भारत के हिन्दी कवि थे।[1] वो भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद के निवासी थे।
जीवन वृत्त (life cycle)
संपादित करेंडॉ. कुँवर बेचैन का जन्म 1 जुलाई 1942 को उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद के उमरी गांव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेना था। उन्होंने अपने शुरुआती साल चंदौसी, उत्तर प्रदेश में बिताए। उन्होंने हिंदी में एमए और पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने एमएमएच कॉलेज, गाजियाबाद में हिंदी विभाग के प्रमुख के रूप में काम किया। उत्तर प्रदेश में COVID-19 महामारी के दौरान नोएडा में COVID-19 के कारण 29 अप्रैल 2021 को उनकी मृत्यु हो गई। हिंदी साहित्य में उनके महान कार्यों ने भारत सरकार को उनके नाम पर गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में एक सड़क का नाम रखने के लिए मजबूर किया है। वह पूरे देश में कई काव्य आयोजनों (जैसे कवि-सम्मेलनों) में दिखाई दिए हैं। वह सब टीवी के कविता शो वाह! वाह! क्या बात है! उन्हें कविशाला लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड - 2020 भी मिला। वह एक अन्य प्रसिद्ध भारतीय हिंदी कवि डॉ. कुमार विश्वास के पीएचडी सलाहकार भी थे। उन्होंने अनेक बार विदेश यात्राएँ की हैं और अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के साहित्य सम्मानों द्वारा सम्मानित हुए हैं। कुँअर बेचैन ग़ज़ल लिखने वालों में ताज़े और सजग रचनाकारों में से हैं। उन्होंने आधुनिक ग़ज़ल को समकालीन जामा पहनाते हुए आम आदमी के दैनिक जीवन से जोड़ा है। यही कारण है कि वे नीरज के बाद मंच पर सराहे जाने वाले कवियों में अग्रगण्य हैं। उन्होंने गीतों में भी इसी परंपरा को कायम रखा है। वे न केवल पढ़े और सुने जाते हैं वरन कैसेटों की दुनिया में भी खूब लोकप्रिय हैं। सात गीत संग्रह, बारह ग़ज़ल संग्रह, दो कविता संग्रह, एक महाकाव्य तथा एक उपन्यास के रचयिता कुँवर बेचैन ने ग़ज़ल का व्याकरण नामक ग़ज़ल की संरचना समझाने वाली एक अति महत्वपूर्ण पुस्तक भी लिखी है।
प्रमुख कृतियाँ (Major works)
संपादित करेंगीत-संग्रह (Lyric's Collection):—
- पिन बहुत सारे (1972)
- भीतर साँकलः बाहर साँकल (1978)
- उर्वशी हो तुम (1987)
- झुलसो मत मोरपंख (1990)
- एक दीप चौमुखी (1997)
- नदी पसीने की (2005)
- दिन दिवंगत हुए (2005)
ग़ज़ल-संग्रह (Ghazal's Collection):—
- शामियाने काँच के (1983)
- महावर इंतज़ारों का (1983)
- रस्सियाँ पानी की (1987)
- पत्थर की बाँसुरी (1990)
- दीवारों पर दस्तक (1991)
- नाव बनता हुआ काग़ज़ (1991)
- आग पर कंदील (1993)
- आँधियों में पेड़ (1997)
- आठ सुरों की बाँसुरी (1997)
- आँगन की अलगनी (1997)
- तो सुबह हो (2000)
- कोई आवाज़ देता है (2005)
कविता-संग्रह (Poem's Collection):—
- नदी तुम रुक क्यों गई (1997)
- शब्दः एक लालटेन (1997)
- पाँचाली (महाकाव्य)
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ के॰सी॰ दत्त, संपा॰ (2001). Who's Who of Indian Writers 1999: A-M Vol 1. नई दिल्ली: साहित्य अकादमी. पृ॰ 123. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-8126008735. अभिगमन तिथि 3 अक्टूबर 2022.
बाहरी कडियाँ
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