कुटिल लिपि को 'उत्तरलिच्छवी लिपि' भी कहते हैं। यह लिपि भारत से प्रारम्भ हुई थी। इस लिपि को भारत में 'विकटाक्षर' भी कहते हैं। पुरातत्वविदों ने इस लिपि को 'सिद्धमातृका लिपि' कहा है। यह लिपि नेपाल में अंशुवर्मा (ई॰सं॰ ६०५-६२१) के शासनकाल के बाद ही प्रचलन में आई। फिर भी अंशुवर्मा के शिलालेखों के अक्षरों में कुटिला लिपि का प्रभाव देख जा सकता है। ऐसे कुटिलाक्षर में विशेषतया ह्रस्व, दीर्घ ईकार और ओकार स्वर आदि प्रयोग हुए हैं।

प्रयोग संपादित करें

इसी प्रकार नेपाल में वि॰सं॰के सातवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से बारहवीं शताब्दी तक करिब ५०० वर्षों तक यह लिपि प्रचलित थी। उदाहरण के रूप में लिच्छवि राजा नरेन्द्रदेव -ई॰सं॰६३४-६७१) और जयदेव द्वितीय -ई॰सं॰ ७०४-७४०) का पशुपति चौगिदा के भितर के शिलालेख को ले सकते हैं। इसके अलाबा नेपाल के विभिन्न स्थानों के अभिलेखों में गुप्त और कुटिला दोनों लिपियों का प्रयोग हुआ था। परन्तु गुप्त लिपि से अधिक कुटिला लिपि व्यापकरूप में प्रचलित थी। कुटिला लिपि के आधार में नेपाल लिपि, देवनागरी लिपि और तिब्बती लिपि का विकास हुआ था। इन लिपियों के विकास और अन्य लिपियों के प्रचलन से कालान्तर में कुटिला लिपि लोप होती गई।[1]

यह भी पढें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "काँच जैसी नाज़ुक चीज़ कैसे बनती है: देवनागरी लिपि", BBC, 2006-03-25, मूल से 17 अप्रैल 2013 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 2010-06-30, ... ब्राहमी की उत्तरी शाखा से गुप्तवंशीय राजाओं के काल में, यानी चौथी पाँचवी शताब्दी में, जिस गुप्तलिपि का विकास हुआ, उसके अक्षरों का लेखन एक विशेष टेढ़े या कुटिल ढंग से किया जाता था, जिससे आगे चलकर कुटिल लिपि का जन्म हुआ (The Gupta script, which evolved from the northern branch of the Brahmi script during the Gupta dynastic period (4th-5th century), was written in a special 'kutil' or crooked way, and further evolved into the Kutil script ...