कुश एक प्रकार का तृण है। इसका वैज्ञानिक नाम Eragrostis cynosuroides है। भारत में हिन्दू लोग इसे पूजा में काम में लाते हैं।

कुश
Eragrostis cilianensis
Maui, Hawai'i
वैज्ञानिक वर्गीकरण
प्रकार जाति
Eragrostis eragrostis
(syn of E. cilianensis)
(L.) Wolf[1]
पर्यायवाची[2]
  • Acamptoclados Nash
  • Boriskellera Terechov
  • Diandrochloa De Winter
  • Erochloe Raf.
  • Erosion Lunell
  • Macroblepharus Phil.
  • Neeragrostis Bush
  • Psilantha (K.Koch) Tzvelev
  • Roshevitzia Tzvelev
कुश

कुश की पत्तियाँ नुकीली, तीखी और कड़ी होती है। धार्मिक दृष्टि से यह बहुत पवित्र समझा जाता है और इसकी चटाई पर राजा लोग भी सोते थे। वैदिक साहित्य में इसका अनेक स्थलों पर उल्लेख है। अथर्ववेद में इसे क्रोधशामक और अशुभनिवारक बताया गया है। आज भी नित्यनैमित्तिक धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश का उपयोग होता है। कुश से तेल निकाला जाता था, ऐसा कौटिल्य के उल्लेख से ज्ञात होता है। भावप्रकाश के मतानुसार कुश त्रिदोषघ्न और शैत्य-गुण-विशिष्ट है। उसकी जड़ से मूत्रकृच्छ, अश्मरी, तृष्णा, वस्ति और प्रदर रोग को लाभ होता है।

गरुड़ जी अपनी माता की दासत्व से मुक्ति के लिए स्वर्ग से अमृत कलश लाये थे, उसको उन्होंने कुशों पर रखा था। अमृत का संसर्ग होने से कुश को पवित्री कहा जाता है (महाभारत आदिपर्व के अध्याय 23 का 24 वां श्लोक)। मान्यता है कि जब किसी भी जातक के जन्म कुंडली या लग्न कुण्डली में राहु महादशा की आती है तो कुश के पानी मे ड़ालकर स्नान करने से राहु की कृपा प्राप्त होती है।

बाहरी कड़ियाँ

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  1. "IPNI Plant Name Details". IPNI.org. मूल से 29 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 March 2017.
  2. "Tropicos - Name - Eragrostideae Stapf". Tropicos.org. मूल से 23 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 March 2017.