'कूत्तु' की प्रस्तुति चाक्यार जाति के कलाकार द्वारा प्रस्तुत की जाती हैं। मंदिर में स्थापित कूत्तंपलम (नाट्यगृह) में कूत्तु प्रस्तुत किया जाता है। जिस मंदिर में कूत्तंपलम् नहीं है वहाँ छोटा सा पंडाल या भोजन गृह (ऊट्टुपुरा) में कूत्तु प्रस्तुत किया जाता है। चाक्यार कलाकार पुराण और इतिहास कथाओं के चंपू काव्य को आधार बनाकर साभिनय प्रवचन करते हैं। वे कथा के प्रत्येक पात्र का अभिनय प्रस्तुत करते हैं। नंपियार मिष़ाव नामक बाजा बजाते हैं। तीखा व्यंग्य और तीक्ष्ण सामाजिक आलोचना कूत्तु की विशेषता है। यद्यपि कूत्तु अनेक प्रकार के होते हैं लेकिन एक ही व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत प्रबन्धकूत्तु अधिक प्रचलित है। आज कल कूत्तु से तात्पर्य प्रबन्धकूत्तु से है। कूटियाट्टम में विदूषक वेष में चाक्यार प्रबन्ध कूत्तु में अपनी कला को प्रस्तुत करते हैं। कूत्तु के अनेक भेद हैं - नंगियार कूत्तु, मतविलासम कूत्तु, अंगुलीयान्कम कूत्तु। पुराने समय में एष़ामन्कम्, ब्रह्मचारिकूत्तु, परक्कुम कूत्तु आदि प्रचलित थे पर अब वे लुप्तप्रायः हो गये हैं। जिस कूत्तु में एक पात्र दूसरे पात्रों का भी अभिनय करता है उसे पकर्न्नाट्टम कहते हैं।


प्रबंधक्कूत्तु

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प्रबंधक्कूत्तु कूत्तु क्री़डा़ में सर्वाधिक प्रचलित है। कूटियाट्टम के विदूषक के वेष में मंच पर आने वाले चाक्यार पुराण कथा सम्बन्धी चम्पू प्रबंध का गान कर अभिनय के द्वारा भाव को विस्तार से समझाते हैं। चाक्यार चम्पू काव्य के गद्य और पद्य की विस्तृत व्याख्या करते हैं। वे उपकथाओं को जोड़ते हुए तथा अपनी कल्पना के अनुसार संदर्भ बनाते हुए समकालीन जीवन की आलोचना करने तथा सभासदों को परिहास करने के अवसर भी निकालते हैं। वे दर्शकों की ओर इशारा कर उसका परिहास कर सकते हैं। समाज ने चाक्यार को इसकी आज़ादी दे रखी है।

चाक्यार की वेशभूषा देखिए। सिर पर लाल रंग के कपड़ा बाँधकर मुख पर चावल का आटा, हल्दी, कालिमा आदि से प्रसाधन करके एक कान में कुण्डल और दूसरे कान पर ताम्बूल घोंसकर तेट्टिप्पूव (एक प्रकार का फूल) लटकाकर चाक्यार पहुँचते हैं। कई तहें डालकर वस्त्र पहनते हैं। वे भद्रदीप जलाकर उसके सम्मुख अपना एकाभिनय प्रदर्शित करते हैं।


नंगियार कूत्तु

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चाक्यार जाति की नारियाँ भी कूत्तु प्रस्तुत करती हैं। कूडियाट्टम् में नंगियार ही नारी वेश धारण कर अभिनय करती हैं। कूडियाट्टम की परिशिष्ट कला है नंगियार कूत्तु। 'सुभद्रा धनंजय' नामक संस्कृत नाटक के द्वितीय अंक की सुभद्रा की दासी का वेष नंगियार कूत्तु में प्रस्तुत होता है। द्वारिका नगर वर्णन, श्रीकृष्ण जन्म, बालक्रीडाएँ इत्यादि से लेकर सुभद्रा और अर्जुन के प्रेम सम्बन्ध तक की कथा का नंगियार व्याख्या के साथ अभिनय करती हैं। वे नर या नारी सभी के भावों की प्रस्तुति करती है। एक ही पात्र द्वारा अन्य कई पात्रों को अभिनय द्वारा प्रस्तुत करने की कला पकर्न्नाट्टम कही जाती है। नंगियार कूत्तु अधिक जनप्रिय नहीं है। उषा नंगियार, मार्गी सति आदि प्रसिद्ध नंगियार कूत्तु कलाकार हैं।