कृत्तिका

नक्षत्र
(कृत्तिका नक्षत्र से अनुप्रेषित)

कृत्तिका वा कयबचिया एक नक्षत्र है। इसका लैटिन/अंग्रेजी में नाम Pleiades है। पृथ्वी से देखने पर पास-पास दिखने वाले कई तारों का इस समूह को भारतीय खगोलशास्त्र और हिन्दू धर्म में सप्त ऋषि की पत्नियां भी कहा गया है।

कृत्तिका एक तारापुंज है जो आकाश में वृष राशि के समीप दिखाई पड़ता है। कोरी आँख से प्रथम दृष्टि डालने पर इस पुंज के तारे अस्पष्ट और एक दूसरे से मिले हुए तथा किचपिच दिखाई पड़ते हैं जिसके कारण बोलचाल की भाषा में इसे किचपिचिया कहते हैं। ध्यान से देखने पर इसमें छह तारे पृथक पृथक दिखाई पड़ते हैं। दूरदर्शक से देखने पर इसमें सैकड़ों तारे दिखाई देते हैं, जिनके बीच में नीहारिका (Nebula) की हलकी धुंध भी दिखाई पड़ती है। इस तारापुंज में ३०० से ५०० तक तारे होंगे जो ५० प्रकाशवर्ष के गोले में बिखरे हुए हैं। केंद्र में तारों का घनत्व अधिक है। चमकीले तारे भी केंद्र के ही पास हैं। कृत्तिका तारापुंज पृथ्वी से लगभग ५०० प्रकाशवर्ष दूर है।

कृत्तिका नक्षत्र

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भारतीय ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सत्ताइस नक्षत्रों में तीसरा नक्षत्र। इस नक्षत्र में छह तारे हैं जो संयुक्त रूप से अग्निशिखा के आकार के जान पड़ते हैं। कृत्तिका को पौराणिक अनुश्रुतियों में दक्ष की पुत्री, चंद्रमा की पत्नी और कार्तिकेय की धातृ कहा गया है। कृत्तिका नाम पर ही कार्तिकेय नाम पड़ा है।

नक्षत्र है कृतिका इसके ग्रह स्वामी सूर्य है

अब बता रहा हु इसके चरण फल

  • प्रथम चरण:-* इसमे जन्म लेने वाला व्यक्ति दृढ़ शरीर वाला ,तेजस्वी,विवेकपूर्ण,और स्वाभिमानी होता है यह कार्यो को बीच मे ही अधूरा छोड़ देता है।व नए कार्यो में लग जाता है।इसका जीवन संघर्षशील रहता है।व अपनी मेहनत से सफलता प्राप्त कर भौतिक सुख प्राप्त करता है।इन जातकों को भोग विलास व एसो आराम में जीना पसन्द होता है।व्यक्ति का दाम्पत्य जीवन सुख मध्यम होता है।

आराधना:-इनको विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए व विष्णु सहस्रनाम का पाठ जातको को मुस्किलो से मुक्ति दिलाता है।जैन धर्म अनुसार पुष्पदंत भगवान की पूजा करे।

रत्न:-एनको पुखराज या इसका उपरत्न सुनहला पहनना चाइये।

  • द्वितीय चरण:-* इसमे जन्म लेने वालों व्यक्ति का जन्म कष्ट से भरा हुआ होता है।जातक का वात प्रधान शरीर व नाक मोटी होती है।जातक सदा महत्वकांक्षी व असंतुष्ट रहता है।ये खुद के परिश्रम से अपने कार्य सिद्ध करते है।और लक्ष्य के प्रति अग्रसर रहते है।ये व्यक्ति घूमने का शोक रखते है।व अपने कार्यो से सम्बन्ध में बहुत यात्रा करते है।ये खर्चीले होते है।जिससे इन्हें कई बार कर्ज लेना पड़ता है।जातक की सुंदर पत्नी होती है।लेकिन वैचारिक मतभेद रहते है।

आराधना:-यम देवता के पूजा सभी संकटो से बचाती है।यमुना पाठ से जातक हमेशा सुखी रहता है।जैन अनुसार पार्स्वनाथ भगवान की पूजा करे।

रत्न:-इन्हें नीलम या केथला धारण करना चाहिए।

*तृतीय चरण* :-इसमे जन्म लेने वाला व्यक्ति स्वस्थ मध्यम कद वाला,व कम उम्र में ही अपनी उम्र से बड़े लगते है।व्यक्ति व्यसनी व दुसरो पर आश्रित होता है।ये हमेशा दुखी रहते है।ये आलसी व धीमी गति से कार्य करते है।जिससे व्यक्ति को जीवन मे बहुत संघर्ष करना पड़ता है।व्यक्ति खुद को बड़ा बताने वाला होता है।व्यक्ति संतान द्वारा प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।इनकी पत्नी रोग ग्रस्त होती है।इनकी व्रद्ध अवस्था सुखमय होती है।

आराधना:-इन्हें शिव की पूजा व इनके रुद्र अवतार की विषेश पूजा करनी चाहिए।जैन धर्मानुसार आदीनाथ भगवान का जाप करे।

रत्न:-इन्हें 5 मुखी रुद्राक्ष माला धारण करनी चाहिए।

*चतुर्थ चरण:-* इनका शरीर पुष्ट व ये प्रश्नचित होते है।ये व्यवहार कुशल होते है।व अपने व्यवहार व बोलने की क्षमता से स्वंम के परिवार से लेकर सभी से मान सम्मान प्राप्त करते है।व सबके स्नेही होते है।इनकी तर्क शक्ति प्रबल होती है।ये धार्मिक होते है।इनकी पत्नी सुशील होती है।व भग्यवान होती है।

आराधना:-इनको श्री मद भगवत गीता व कृष्ण जी की आराधना करनी चाहिए।जैन धर्मानुसार पार्स्वनाथ प्रभु की पूजा करे।

रत्न:-इन्हें पुखराज या इसका उपरत्न सुनहला धारण करना चाहिए।

ये है कृतिका नक्षत्र व चरण फल

आचार्य पंडित अर्जुन पालीवाल होपारडी़